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________________ किरण १० ] समाज-सेवकों के पत्र [ ४०७ जाकर ४ बजे फरीदकोट पहुँचूँ। वहाँ भाषण देकर ता० १४की रातको चलकर १५को सबेरे देहली आजाऊँ । वहाँसे १५की रातको अवश्य बनारस जाना होगा । ता० १७को वार्षिकोत्सव है । वहाँ जाना बहुत के लिये आप प्रकाशक जरूरी है उससे धर्मकी जागृति होगी। पं० दरबारीलालके लिए सेठ ताराचन्दको बराबर लिखते रहें । काशी ४-७-२७ लखनऊ में हमको एक जैनधर्मके ज्ञाता अजैन विद्वान्से भेंट हुई इनका पता यह है । आगामी जयन्तीपर इनसे भी लेख मँगाइये । पुस्तकों व ट्रैकों का प्रचार करनेको पत्रोंमें नोटिस आदि निकालने चाहिये । भाई चम्पतरायजीसे कोई धार्मिक सेवा लेनी योग्य है । to प्राणनाथ डी. एस. सी. ( लन्दन) पी. एच. डी. ( वायना) विद्यालङ्कार, एम. आर. ए. एस. C/o इलाहाबाद बैङ्क, बनारस वर्धा १६-३-२८ १- लेख भेज चुका हूँ पहुँच दें व सदुपयोग करें सूरत में ही छपन्नावें । (३०) २- काङ्गड़ीमें सार्वधर्म सम्मेलनमें मैं भाषण दे सकता हूँ। एक तो विषय मालूम हो व समय नियत होजावे । आप मण्डल की ओर से भिजवादें व उनका स्वीकारता पत्र मुझे भेज दें तो मैं तैयारी करूँ। वहाँ ठहरने आदिका प्रबन्ध योग्य होना उचित होगा । Jain Education International प्रोफेसर हीरालालको करें, वे छपा हुआ व्याख्यान ऐतिहासिक अच्छा देंगे या जे. एल. है। मोटो आप तज करें। राय लेव । जैनमित्रके खास कापडियाजीसे पत्र व्यवहार करें । जिनेन्द्रमतदर्पण २ प्रति व हिन्दीके दो ट्रैक और (२६) जिनसे जैनधर्मका ज्ञान हो वी० पी० से . सिंघई कमलापत भगवानदास जैन वारासिवनी, जि० बालाघाट सी. पी., शीघ्र भेज दें। (२७) . लखनऊ २६-१-२७ 1 आपकी इच्छानुसार सनातनजैनमत पुस्तक लिखकर बड़े परिश्रमसे आज रजिस्ट्रोसे भेजी है। यह बड़ी उपयोगी पुस्तक है। जल्से में जितने पढ़े-लिखे जैन, अजैन वें सबको बाँटने लायक है सो आप २००० छपवालें, मूल्य भी रखें। अपनी कमेटी के मेम्बरोंको जमाकर सुना दें कोई बात बदलनेकी कहें तो मुझे पत्र द्वारा लिखें, कापीमें न बदलें जैसी मैंने लिखी है वैसी ही छापें, सूरतवाले जल्दी छाप सकेंगे वे मेरे अक्षर पहचानते हैं वहीं अच्छे कागज, टाईपमें छपवावें । मैंने सूरतको लिख दिया है । नत्थनलालजी व शम्भूदयालजीको जरूर बिठा लेना । पुस्तकं सुना कर राय मेरेको लिखना, जिनेन्द्रमतदर्पण ५ प्रति अन्य कुछ हिन्दी-उर्दू के ट्रैक परिषद् में बाँटने को भेज देवे । आप भी मित्रों सहित पधारें अवश्य, यहाँ प्रचार भी कुछ होगा फिर वहाँ से गयाजी चले जावें । - मेरा लेख सनातन जैनमतपर १ || घण्टा होगा | यह प्रोग्राम में रखना, समय रातका रखना, पहले या मध्य में रखना मैं यथाशक्ति की कोशिश करूँगा । आप उत्साहसे काम करें। सर्व भाइयोंसे धर्मस्नेह कहें। (२८) १६-३-२७ आपका जलसा ता० १३. १४, १५को है ठीक लिखें। फरीदकोट वाले जोर दे रहें हैं। मैं ऐसा चाहता हूँ कि ता १३ की रातको देहलीसे जाऊँ या अगर || रातकी गाड़ी में न जा सकूँ तो सबेरे ५ बजे ३ - दक्षिण में पूनाके एक मराठी विद्वानने जैनधर्म धारण किया है वह भाषण भी दे सकता है उसका नाम जैन मित्र इस वर्ष में है. उसका एक लेख छपा है मैं जैनी क्यों हुआ। आप फाइल में देख लेवे वह सकता है उसके लिए आप प्रोफेसर ए. वी लट्टे दीवान कोल्हापुरको व संपादक प्रगति आणिजिन विजय साङ्गलीकेटको लिखें । जीवदया सभा आगरा में दयाके संपादक ब्राह्मण थे विद्वान हैं जैनधर्म धारण किया है वह भी कुछ कह सकेंगे । (क्रमशः) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527260
Book TitleAnekant 1948 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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