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________________ पाकिस्तानी - पत्र [हमारे कई मित्रोंके पास पाकिस्तानसे पत्र श्राते रहते हैं और कुछ उर्दू पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहते हैं, जिनसे साम्प्रदायिक उपद्रवोंपर काफ़ी प्रकाश पड़नेके अतिरिक्त लिखने वालोंकी स्वच्छ और वास्तविक मनोवृत्तिका पता लगता है । देशके बटवारेसे लोगोंको जो श्राघात पहुँचा है, उसका भी दिग्दर्शन होता है । हम ऐसे बहुमूल्य पत्र इस स्तम्भमें देनेका प्रयत्न करेंगे । नीचेका पत्र 'शायरके' सम्पादकको लिखा गया है और मार्चके शायरसे उसका श्रावश्यक श्रंश धन्यवादपूर्वक प्रकाशित किया जा रहा है । अनेकान्तकी अगली किरणोंमें और भी महत्वपूर्ण पत्र प मित्रोंसे मँगाकर देनेका विचार है । — गोयलीय ] लाहौर, ८ अप्रेल १९४८ गये । कितने सब कुछ लुटाकर खाली हाथ मुर्दोंसे भी बदतर जिन्दगी बसर करनेके लिये बच रहे । पञ्जाब, अब वोह पहला-सा पञ्जाब नहीं, जहाँ हर वक्त फारिग उलबाली और खुशीके सोते उबलते रहते थे । अब वह लाखों बेघर चलती-फिरती लाशोंका दफ़न है । बिरादरे मुहतरिम, तस्लीम ....... पञ्चाबकी खानाजङ्गीकी खूँ चाँ दास्तानोंका कुछ हिस्सा आप तक पहुँचता रहा होगा। क्या बयान करूँ इस शादाब और मसरूर ख्रित्तेको इसके अपने ही बेटोंने लाखों बेगुनाहोंके खूनसे किस क़दर दारादार बना दिया है। हजारों बरस पेश्तरके इन्सानोंके दिमाग़ और रूहपर से तहजीब और तमहुन का मुलम्मा काक्रूर हो गया था और अपने पीछे इन्सान के भेस में एक वहशी दरिन्दा छोड़ गया था, जिसने अपने भाइयोंको फाड़ खाया, अपने बेटोंका कलेजा नोच लिया, अपने बापदादाओंकी बूढी हड्डियोंको पाँवसे कुचला और अपनी माँ, बहनों और बेटियोंपर वोह सितम ढाये कि खुद जुल्म ब दरिन्दगी भी अँगुश्तबदन्दाँ रह गए । अल्लाह, अल्लाह, कैसा इन्कलाब हो गया ! अपनी क़िस्मका पहला अनोखा तबाहकुन इन्कलाब ! कितने अहबाब व अजीज इस खूनी सैलाब में बह Jain Education International इन आँखोंने महाजनकी तबाही और खस्तगी के बहुत जाँगुदाज, सीन देखे हैं। दुनियासे जी बेतार हो गया था, कुछ भी अच्छा नहीं लगता था । हरवक्त दिलपर गहरी उदासी छाई रहती थी। खुदाए पाकका शुक्र है कि अब लोगोंकी तकलीफें कुछ कम हुई हैं। अच्छे-बुरे सब अपने-अपने ठिकाने लग गये हैं, ख़ुदा उनपर अपना फज्रल फरमाए । बतनकी यादकी तकलीफ यूं मरते दमतक दिलको कचोके देती रहेगी, लेकिन अब इसकी शिद्दत में कुछ कमी गई है। For Personal & Private Use Only आपकी बहन शीरीं www.jainelibrary.org
SR No.527255
Book TitleAnekant 1948 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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