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________________ . ॐ अहम् . नतत्त्व-सघातक विश्वतत्त्व-प्रकाशक - . वार्षिक मूल्य ५) एक किरणका मूल्य ॥ | नीतिविरोषध्वंसीलोकव्यवहारवर्तकः सम्यक् ।। | परमागमस्य बीज भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः । वर्ष ९ । किरण ५ वीरवासना वीरसेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम), सरसावा, जिला सहारनपुर वैशाख शुक्ल, वीरनिर्वाण-संवत २४७४, विक्रम संवत २०५५ १९४८ सम्यग्दृष्टि भेदविज्ञान जग्यौ जिन्हके घट, सीतलचित्त भयौ जिम चन्दन । केलि करें सिवमारगमैं, जगमाहिं जिनेसुरके लघुनन्दन ॥ सत्यसरूप सदा जिन्हकै, प्रगटयो अवदात मिथ्यात-निकन्दन । सांतदशा तिन्हकी पहिचानि, करै करजोरि बनारसि बन्दन ॥१॥ स्वारथके साँचे परमारथके साँचे चित, साँचे साँचे बैन कहैं साँचे जैनमती हैं। काहू के विरोधिनाहिं परजाय-बुद्धि नाहिं, आतमगवेषी न गृहस्थ हैं न जती हैं । र सिद्धि रिद्धि वृद्धि दीसै घटमैं प्रगट सदा, अन्तरकी लच्छिसौं अजाची लच्छपती हैं । . दास भगवन्तके उदास रहैं जगतसौं, सुखिया सदैव ऐसे जीव समकिती हैं ॥२॥ 1. जाकै घट प्रगट विवेक गणधरकौसी, हिरदै हरखि महामोहकौं हरतु है ।। a साँचौ सुख मानै निज महिमा अडौल जाने, श्रापुहीमें आपनौ सुभाउ ले धरतु है ॥ By जैसे जल-कर्दम कतकफल भिन्न करै, तैसैं जीव अजीव विलच्छनु करतु है । • आतम सकति साथै ग्यानको उदी अराधे, सोई समकिति भवसागर तरतु है ॥३॥ -कवि बनारसीदास l Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527255
Book TitleAnekant 1948 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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