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________________ किरण ४] सेठीजीका अन्तिम पत्र पुरुषोंकी आत्माएँ ही अचूक परीक्षा-कसौटीका काम वा अव्यवहार्य, लाभप्रद वा हानिकर इत्यादि अनेक देती हैं, चाहे उस समयमें और अब जीवोंके परिणाम रूप-रूपान्तरमें मौजूद हैं। उनमेंसे प्रत्येकका तथा और लेश्याओंमें जमीन आस्मानका ही अन्तर क्यों उनसे सम्बन्ध रखने वाली घटनाओंका गृहस्थ तथा न हो गया हो। त्यागी, श्रावक-श्राविकाओंके दैनिक जीवनपर एवं ___ सतनामें परिषदका अधिवेशन पहला मौका था मन्दिर-तीर्थों अथवा अन्य प्रकारकी नूतन और तब उल्लेखनीय जैनवीर-प्रमुख श्री....................... पुरातन संस्थाओंपर पड़ा है, वह भी आपके सम्मुख के द्वारा आपसे मेरी भेंट हुई थी। मैं कई वर्षों के है । मैं तो प्रायः सबमें होकर गुजर चुका हूँ, और उपयुक्त मौनाग्रहबतके बाद उक्त अधिवेशनमें शरीक उनके कतिपय कड़वे फल भी खूब चाख चुका हूँ और हुआ था । इधर-उधर गत-युक्तके सिंहावलोकनके चाख रहा हूँ। अतः आपका और आपके सहकारी पश्चात् मैं वहाँ इस नतीजेपर पहुँच चुका था कि आप कार्य-कर्ताओंका विशेष निर्णायक लक्ष इस बार में सत्य-हृदयता है और अपने सहधर्मी जैनबन्धुओं अनिवार्य-अटल होना चाहिये। नहीं तो जैन सङ्गठन के प्रति आपका वात्सल्य ऊपरकी झिल्ली नहीं है किन्तु और जैनत्वकी रक्षाके समीचीन ध्येयमें केवल वाधाएँ रगोरेशेमें खौलता हुआ खून है परन्तु तारीफ़ यह है ही नहीं आएँगी, धक्का ही नहीं लगेंगे, प्रत्युत नामोकि ठोस काम करता है और बाहर नहीं छलकता। निशान मिटा देने वाली प्रलय भी होजाय तो मानव जातिके भयावह उथल-पुथलके इतिहासको देखते इस तरह मुझे तो दृढ प्रतीत होता है कि आपके हुए कोई असम्भव बात नहीं है । अल्पसंख्यक सामने यदि मैं जैनसमाजके आधुनिक जीवन-सत्वके जातियोंको पैर फूंक-फूंककर चलना होता है और सम्बन्धमें मेरी जिन्दगी भरकी सुलझाई हुई गुत्थियों बहुसंख्यक जातियों के बहुतसे आन्दोलन जो उन्हींको को रख दूं तो आप उनको अमली लिबासमें जरूर उपयोगी होते हैं. अल्पसंख्यकोंमें घुस जाते हैं और रख सकेंगे। अपेक्षा-विचारसे यही निश्चयमें आया। उनके लिये कारक होनेकी अपेक्षा मारकका काम देते बन्धुवर, हैं। उनकी बाहरी चमक लुभावनी होती है, कई ___आपने राष्ट्रीय राजनैतिक क्षेत्रके गुटोंमें घुल-घुल हालतोंमें तो आँखोंमें चकाचौंध पैदाकर देती है, कर काम किया है, उसकी रग-रगसे आप वाकिफ मगर वास्तवमें Old is not gold glitters हरेक हो चुके हैं और तजरुबेसे आपको यह स्पष्ट हो चुका चमकदार पदार्थ सोना ही नहीं होता। बहसंख्यक है कि हवाका रुख किधरको है। इसीसे परिणाम लोगोंकी तरफसे मखमली खूबसूरत पलङ्गोंसे ढके स्वरूप आपने निर्णय कर लिया कि जैनेतरोंकी ज्ञात हुए खड्डे विचारपूर्वक वा अन्तःस्थित पीढ़ियोंक वा अज्ञात भक्ष्य-भक्ष्यक प्रतिद्वन्द्विताके मुकाबिलेमें स्वभावज चक्रसे तैयार होते रहते हैं जिनके प्रलोभन सदियोंके मारे हुए जैनियोंके रग-पट्ठोंमें जीवन-संग्राम और ललचाहटमें फंसकर अल्पसंख्यक लोग शत्रुको और मूल संस्कृतिकी रक्षाकी शक्ति पैदा हो सकती है ही मित्र समझने लगते हैं, यही नहीं; किन्तु अपने तो केवल उन्हीं साधनों और उपायोंसे जो दूसरे सत्व-स्वत्वकी रक्षाका खयाल तक छोड़ बैठते हैं। लोग कर रहे हैं अथवा जिनमें बहुत कुछ सफलता किमाधिकम् इस स्व-रक्षणकी भावना वासना भी जैनोंके सहयोगसे मिलती है। ......................... उनको अहितकर अँचने लगती है। इसके अलावा आपके सामने आधुनिक काल-प्रवाहके भिन्न- भावी उदयावलीके बल अथवा यों कहूँ कि कालदोष भिन्न आन्दोलन समूह धार्मिक वा सामाजिक, से अभागे अल्पसंख्यकोंमेंसे कोई कंस जैसे भी पैदा वाञ्छनीय वा अवाञ्छनीय, हेय वा उपादेय, उपेक्षणीय होजाते हैं जो अपने घरके नाश करनेपर उतारू वा अनुपेक्षणीय, आदरणीय वा तिरस्कार्य, व्यवहार्य होजाते हैं, गैरोंके चिराग़ जलाते हैं और पूर्वजोंके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527254
Book TitleAnekant 1948 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages46
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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