SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६२ अनेकान्त [वर्ष ९ और कराया है । भारतवर्षीय जैन-शिक्षा-प्रचारक प्रताप', मदन', प्रकाश की जैसी राजनैतिक समितिका सङ्गठन स्वर्गीय दयाचन्द्र गोयलीय और आत्मोत्सर्गी चौकड़ियाँ मेरे सामने इस असमर्थ उनके वर्गके अन्य सत्यहृदयी कार्यकर्ता-मोती', दशामें भी चिर आराध्य-पदपर आसीन हैं; प्रातः१ स्वर्गीय वीर-शहीद मोतीचन्द सेठीजीके शिष्य थे। स्मरणीय आदर्श पण्डित-राज गोपालदासजी वरैया, उन्हें श्राराके महन्तको वध करनेके अभियोगमें दानवीर सेठ माणिकचन्द्र और महिला-ज्योति मगन (सन् १९१३)में प्राण दण्ड मिला था। गिरफ्तारीसे बहनके आदिके नेतृत्व-मण्डलका मैं अंगीभूत पुजारी पूर्व पकडे जानेकी कोई सम्भावना नहीं थी। यदि अद्यावधि हूँ और पर्देकी ओटमें उन सबकी सत्ताशिवनारायण द्विवेदी पुलिसकी तलाशी लेनेपर वाटिकाका निरन्तर भोगी भी हूँ और योगी भी। स्वयं ही न बहकता तो पुलिसको लाख सर पटकने कौन किधर कहाँसे यहाँ क्या और वहाँ क्या इत्यादि पर भी सुराग़ महीं मिलता। पकड़े जानेसे पूर्व प्रत्येक प्रश्नके उत्तरमें मेरे लिये तो उक्त दिव्य महासेठीजी अपने प्रिय शिष्योंके साथ रोजानाकी मोतीचन्द और दूसरेका नाम था माणिकचंन्द्र या तरह घूमने निकले थे कि मोतीचन्दने प्रश्न किया जयचन्द्र। इन सभी विसवियोंके मनके तार ऐसे 'यदि जैनोंको प्राणदण्ड मिले तो वे मृत्युका ऊँचे सुरमें बंधे थे जो प्रायः साधु और फकीरोंके आलिङ्गन किस प्रकार करें ?' बालकके मुँहसे ऐसा बीच ही पाया जाता है। वीरोचित किन्तु असामयिक प्रश्न सुनकर पहले तो १ प्रतापसिंह वीर-केसरी ठाकुर केसरसिंहके सुपुत्र सेठीजी चौके, फिर एक साधारण प्रश्न समझकर और सेठीजीके प्रिय शिष्य थे। सेठीजीके उपदेश उत्तर दे दिया। प्रश्नोत्तरके १ घण्टे बाद ही पुलिस परसे ये उस समयके सर्वोच्च क्रान्तिकारी नेता ने घेरा डालकर गिरफ्तारकर लिया, तब सेठीजी स्वर्गीय रासविहारी बोसके सम्पर्कमें रहते थे। उनकी मृत्युसे वीरोचित जूझनेकी तैयारीका अभि- इनके जाँबाज कारनामे और आत्मोत्सर्गकी वीरप्राय समझे । ये मोतीचन्द महाराष्ट्र प्रान्तके थे। गाथा 'चाँद' वगैरहमें प्रकाशित हो चुकी है। इनकी मृत्युसे सेठीजीको बहुत आघात पहुंचा था। २ मदनमोहन मथुरासे पढ़ने गये थे। इनके पिता इनकी स्मृतिस्वरूप सेठीजीने अपनी एक कन्या सर्राफा करते थे। सम्पन्न घरानेके थे। सम्भवतः महाराष्ट्र प्रान्त जैसे सुदूर देशमें ब्याही थी। सेठी इनकी मृत्यु अचानक ही होगई थी । इनके छोटे भाई जीके इन अमर शहीद शिष्योंके सम्बन्धमें प्रसिद्ध भगवानदीन चौरासीमें ११-१४-१५में मेरे साथ विलववादी श्री० शचीन्द्रनाथ सान्यालने "बन्दी- पढ़ते रहे है, परन्तु मदनमोहनके सम्बन्धम काई जीवन" द्वितीय भाग पृ० १३७में लिखा है- बात नहीं हुई । बाल्यावस्थाके कारण इस तरहकी "जैनधर्मावलम्बी होते हए भी उन्होंने कर्तव्यकी बातें करनेका उन दिनों शऊर ही कब था? खातिर देशके मङ्गलके लिये सशस्त्र विप्लवका मार्ग ३ प्रकाशचन्द सेठीजीके इकलौते पुत्र थे। सेठीजी पकड़ा था। महन्तके खूनके अपराधमें वे भी जब की नजरबन्दीके समय यह बालक थे । उनकी फाँसीकी कोठरीमें कैद थे, तब उन्होंने भी जीवन- अनुपस्थितिमें अपने-परायोंके व्यवहार तथा आपमरणके वैसे ही सन्धिस्थलसे अपने विप्लवके दाओंके अनुभव प्राप्त करके युवा हुए । सेठीजी साथियों के पास जो पत्र भेजा था, उसका सार ५-६ वर्षकी नजरबन्दीसे छूटकर आये ही थे कि कुछ ऐसा था-"भाई मरनेसे डरे नहीं, और उनकी प्रवास-अवस्थामें ही अकस्मात मृत्यु होगई। जीवनकी भी कोई साध नही है। भगवान् जब सेठीजीको इससे बहुत आघात पहुँचा । इन्हीं जहाँ जैसी अवस्थामें रक्खेंगे, वैसी ही अवस्थामें। प्रकाशकी स्मृति-स्वरूप इनके बाद जन्म लेने वाले सन्तुष्ट रहेंगे।" इन दो युवकोंमेंसे एकका नाम था पुत्रका नाम भी उन्होंने प्रकाश ही रक्खा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527254
Book TitleAnekant 1948 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages46
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy