________________
वार्षिक मूल्य ५)
वर्ष ९
किरण ३
न क
विश्व तत्त्व-प्रकाशक
Jain Education International
ॐ अर्हम्
नीतिविरोधध्वंसी लोकव्यवहारवर्तकः सम्यक् । | परमागमस्य बीजं भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ॥
( १ ) ज्ञान-गुलाल पास नहि, श्रद्धा
2
समता रङ्ग न रोली है । नहीं प्रेम- पिचकारी कर में केशर - शान्ति न घोली है ॥ स्याद्वादी सुमृदङ्ग बजे नहिं
"
नहीं मधुर - रस - बोली है । कैसे पागल बने हो चेतन !
कहते 'होली होली है' !!
वोर सेवामन्दिर ( समन्तभद्राश्रम), सरसावा, जिला सहारनपुर फाल्गुण, वीरनिर्वाण संवत् २४७३, विक्रम संवत् २००४
होली होली है !!
वस्तु तत्त्व-संघोतक
भीगी नहीं ज़रा भी देखो
--------
एक किरणका मूल्य II)
(२)
ध्यान - अग्नि प्रज्वलित हुई नहि,
कर्मेन्धन न जलाया है । असद्भावका धुआँ उड़ा नह
"
सिद्ध-स्वरूप न पाया है ॥
मार्च १९४८
For Personal & Private Use Only
स्वानुभूतिकी चोली है । पाप-धूलि नहिं उड़ी, कहो फिरकैसे 'होली होली है' !!*
रचयिता - 'युगवीर'
* श्रीसम्मेदशिखरकी बीसपन्थी कोठीके जैनमन्दिरकी एक दीवारको इस रचनासे अलकृत किया गया है-सुन्दर पेंटिंगद्वारा मोटे अक्षरों में इसे उसपर लिखा गया है।
www.jainelibrary.org