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विषय-सूची
विश्व
होली होली है ! (कविता)-['युगवीर' २.. समन्तभद्र-भारतीके कुछ नमूने (युक्त्यनुशासन)-[सम्पादक ३. गांधीजीका पुण्य-स्तम्भ-[श्रीवासुदेवशरण अग्रवाल ४. रत्नकरण्डके कर्तृत्व-विषयमें मेरा विचार और निर्णय-[सम्पादक ५. पं० गोपालदासजी वरैया-[अयोध्याप्रसाद गोयलीय ६, यशोधरचरित्र-सम्बन्धी जैन-साहित्य-[श्रीअगरचन्द नाहटा ७. शङ्का-समाधान-[दरबारीलाल कोठिया ८. भिक्षुक-मनोवृत्ति-[अयोध्याप्रसाद गोयलीय ९. सम्पादकीय-[अयोध्याप्रसाद गोयलीय १०. निरीक्षण और सम्मति-[पं० कैलाशचन्द्र जैन शास्त्री ११. साहित्य-परिचय और समालोचन-[दरबारीलाल कोठिया
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विद्वत्परिषद्का चतुर्थ वार्षिक अधिवेशन
श्री भा० दि. जैन विद्वत्परिषदका चतुर्थ वार्षिक अधिवेशन पूज्यपाद प्रातःस्मरणीय न्यायाचार्य पं० गणेशप्रसादजी वर्णीकी, जिन्होंने अब शुल्लकके महनीय पदकी दीक्षा ले ली है. अध्यक्षतामें ता० २४. २५ मार्च सन् १९ (झाँसी)में अपूर्व समारोहके साथ सम्पन्न हुआ। इस अधिवेशनमें भाग लेनेके लिये इन्दौर, बनारस, बड़ौत, सूरत, जबलपुर, सागर, बीनाललितपुर,पपौरा, मथुरा, देहली, मेरठ, सहारनपुर, देहरादून, सरसावा आदि देशके विविध भागोंसे विद्वान् और धार्मिक-जन पधारे थे । क्षुल्लकजी महाराजके संघमें अनेक त्यागी, ब्रह्मचारी-ब्रह्मचारिणी, दुल्लक श्रादि व्रतीजन पहलेसे ही मौजूद थे और जिनका भी एक महत्वका व्रती सम्मेलन हुआ । अष्टाहिका पर्वका समय होनेके कारण बहुत धार्मिक अानन्द रहा । अनेक लोगोंने व्रतादि ग्रहण किये । वात्सल्य-मूर्ति बाबू रामस्वरूपजी बरुआसागरकी श्रोरसे सिद्धचक्र विधान हुश्रा और अन्य समस्त प्रायोजन भी इन्हींके द्वारा हुए । विद्वानोंके महत्वपूर्ण मार्मिक भाषण हुए। इस अधिवेशनमें विद्वत्परिषद्ने नये अनेक प्रस्ताव पास न कर पुराने प्रस्तावोंको ही तत्परताके साथ अमल में लानेके लिये दोहराया। महात्मा गाँधीकी मृत्युके शोक-प्रस्तावके अतिरिक्त एक महत्वका :नया प्रस्ताव यह किया गया है कि जैनसमाजसे अनुरोध किया जाय कि वह अपने योग्य विद्यार्थियोंको अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान, श्रादिकी उच्च शिक्षा प्राप्त करनेके लिये विदेशोंमें भेजनेके वास्ते एक वृहत् छात्रवृत्ति फण्ड कायम करें । इसी फण्डसे विदेशोंमें जैन-संस्कृति
अहिंसा-प्रधान जैनधर्मका प्रचार करनेके लिये योग्य विद्वान् भेजे, जो एक वर्ष तक विद्वत्परिषद्के नियन्त्रणमें रहकर उच्चतम धार्मिक शिक्षा और आचरणका अभ्यास करें ।
अधिवेशनमें और भी अनेक समस्याओंपर गहरा विचार हुआ । वर्णीजी (अब क्षल्लकजी) की अध्यक्षतासे विद्वत्सम्मेलनको एक सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि विद्वानोंमें उच्च चारित्रकी भावना दृढमूल होती जारही है और उसमें पर्याप्त वृद्धिकी श्राशा है । शङ्का-समाधान विभाग पूर्ववत् कायम रहा । उसमें बाबू रतनचन्दजी रि० मुख्तार सहारनपुरका नाम और शामिल किया गया है । इस तरह यह अधिवेशन विचार-लाभ, धर्मलाभ,-सजन-समागम श्रादि कई दृष्टियोसे महत्वपूर्ण रहा । और सनीने वर्णीजीकी अमृतवाणीका अपूर्व लाभ लिया। दरबारीलाल कोठिया
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