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________________ किरण ३] धार्मिक कथाओं में मुख्यत: तीन प्रकारकी भावना काम कर रही प्रतीत होती है । कई कथायें वास्तविक चरित्रको उपस्थित करने को, कई धार्मिक अनुष्ठानों को अपनानेसे अनेक प्रकार के सुख प्राप्त करनेके प्रलोभन एवं रोचक ढङ्गसे उपस्थित करनेको, कई बुरे कामोंसे नरकादिके दुःख पानेको बताने वाली भयानक कथाओंको रचना हुई है । यशोधरचरित तीसरे प्रकार की कथा है। वर्तमान शिक्षासे वैज्ञानिक विचारधाराका विकास अधिक हो चुका है। अतः बहुतसे नवशिक्षितोंको इन कथाओं में अतिरञ्जितपना एवं अस्वाभाविकता नजर आयेगी, पर कथाकारों का उद्देश्य पवित्र था । उन्होंने अपने अनुकूल वातावरण उपस्थित करने व लोकरुचिको प्रभावित करनेके लिये ही मूलकथामें इधर-उधर की बातें जोड़ भी दी हों तो वे क्षम्य ही समझी जानी चाहिएँ। ऐसी कई कथाओं को पढ़ते हुए जिस रूपमें वे वर्णित हैं, कर्म - सिद्धान्तसे, उनकी कई बातें मेल नहीं खातीं भी प्रतीत होती हैं; पर इस विषयपर विशेष विचार आणि कारी विद्वान ही कर सकते हैं । यशोधरचरित्र सम्बन्धी जैन साहित्य मैं स्वयं इस बातका अनुभव करता हूँ कि प्रस्तुत लेखमें यशोधरके कथानकको लेकर विभिन्न ग्रन्थकारोंने उसमें क्या-क्या परिवर्तन एवं परिवर्द्धन किया है, उसपर तुलनात्मक दृष्टिसे विवेचन किया जाना आवश्यक था । इसी प्रकार इसी ढङ्गकी अन्य भी जो कथायें प्राप्त हैं उनका पारस्परिक प्रभाव भी स्पष्ट किया जाता तो लेख बहुत उपयोगी होजाता, पर अभी उसके लिये मुझे समय एवं साधन प्राप्त नहीं हैं । अतः इस कार्यको किसी योग्य व्यक्तिके लिये छोड़कर यशोधर चरित्रोंकी सूची देकर ही लेखको समाप्त किया जारहा है । आशा है मेरे अधूरे कार्यको कोई विद्वान् शीघ्र ही पूर्ण करनेका प्रयत्न करेंगे । यशोधरचरित्र सम्बन्धी दिगम्बर साहित्य संस्कृत १ यशोधरचरित्र – प्रभंजन ( वि० ८३५ पूर्व) मूडबिद्री भण्डार पत्र ४ श्लोक ३६ । Jain Education International १११ ( प्रभंजनका उल्लेख दि० श्वे० दोनों विद्वानों' ने किया है । अतः ये किस सम्प्रदाय के थे ? ठीक नहीं कहा जासकता ) । २ यशस्तिलक चम्पू' – सोमदेवसूरि (शक सं०८८१ चै० शु० १३ गङ्गधार में) रचित ३ यशोधरचरित -श्लो० २९६ (४ सर्ग) वादिराज (सं० १९८२) कृत । ४ यशोधरचरित्र - पद्मनाभ कायस्थ (सं० १४६१ के लगभग) निर्मित । [ इसकी एक प्रति बीकानेर में कुँ मोतीचन्दजी खजाँचीके संग्रह में है ग्रन्थप्रशस्ति महत्वकी है, उसकी प्रतिलिपि हमारे संग्रह में है पर वह अभी पास में नहीं होनेसे विशेष प्रकाश नहीं डाला जा सका ] । ५ यशोधरचरित - वादिचन्द्रकृत अङ्कलेश्वर सं० १६५७ ६ यशोधरचरित्र - वासवसेन कृत ७ यशोधरचरित्र - पद्यनन्दिकृत ८ यशोधरचरित - सकलकीर्तिकृत ९ यशोधरचरित - ( ८ सर्ग) सोमकीर्ति (सं० १५३६ पो० ० ५ मेवाड़के गोढल्या में) रचित । [ इसकी प्रति बीकानेर के अनूप संस्कृतलाइब्रेरीमें ३३ पत्रोंकी है ] । १० यशोधरचरित - जानकी ( मूडबिद्री भं० पत्र १६ श्लोक ३८०) कृत । ११ यशोधरचरित - कल्याणकीर्ति सं० १४८८ (श्लोक १८५०) रचित | [अनेकान्त वर्ष १ में उल्लेख हैं ] १२ यशोधरचरित - ज्ञानकीर्ति सं० १६५९ (प्र० १४०० ) । वादिभूषण शि० १३ यशोधरचरित - ब्र० नेमिदत्त (सं० १५७५) १४ यशोधर चरित - पूर्णदेव १५ यशोधरचरित - मल्लिसेन For Personal & Private Use Only १६ यशोधरचरित - श्रुतसागर (संभवतः टीका हो) १७ यशोधरचरित - सर्वसेन १८ यशोधरचरित - चारूकीति १ इसपर श्रीदेवरचित पंजिका एवं श्रुतसागरकी टीका प्राप्त हैं। www.jainelibrary.org
SR No.527253
Book TitleAnekant 1948 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size3 MB
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