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अनेकान्त
योग्य बनायें कि हर उपयुक्त स्थानपर हमारी उपादेयता प्रकट हो । “योग्य व्यक्तियोंके स्थानपर भी हम अयोग्यको इसलिये लिया जाय कि हम अमुक वर्ग से सम्बन्धित हैं" यह नारा मुसलमानों, सिक्खों, अछूता रहा है। हम इस नारेको हरगिज न दुहराएँगे। हमें तो अपने को इस योग्य बनाना है कि विरोधी पक्ष इच्छा न होते हुए भी अपने लिये निर्वाचित करें । परमुखमचेट्टी कांग्रेसके प्रबल विरोधी होते हुए भी केवल योग्यताके बलपर कॉंग्रेसी सरकार में सम्मिलित हुए। उसी तरह जैनोंको सम्प्र दाय के नामपर नहीं, अपनी योग्यता, वीरता, धीरता, को लेकर आगे बढ़ना है । हम जैन अपने को इतना श्रेष्ठ नागरिक बनाएँ कि जैनत्व हो श्रेष्ठताका परिचायक हो जाय। जिस तरह विशिष्ट गुण या अवगुणके कारण बहुत सी जातियां ख्याति पाती हैं । उसी तरह हमारे लोकोत्तर गुणोंसे जैनत्व इतनी प्रसिद्धि पाजाय कि केवल जैन शब्दही हमारी योग्यता प्रामाणिकता, सौजन्यता, भद्रताका प्रतीक बन जाय । ६- पाँचवें सवार-
अपनी समाज में कुछ ऐसे चलते हुए लोग भी हैं, जिनका न राजनीति में प्रवेश है और न देशके लिए ही उन्होंने कभी कोई कष्ट सहन किया । श्रपितु सदैव प्रगतिशील कार्यों में विघ्न स्वरूप बने रहे हैं। दस्सा पूजनाधिकार अन्तर्जातीय विवाह, शास्त्रोद्धार, नुक्ता प्रथाबन्दी बाल-वृद्ध विवाह आदि आन्दोलनों के विरोधी रहे हैं। हर समाजोपयोगी कार्योंमें रोड़े
टकाते रहे हैं । सुधारकों और देशभक्तोंको अधर्मी कहते रहे हैं, उनका बहिष्कार करते रहे हैं वही आज इन लोगों के हाथमें सत्ता आते देख खुशामदी लेख लिख रहे हैं, पत्रोंके विशेषांक केवल उनके लेख पाने के लोभसे निकाल रहे हैं, और जैन स्वत्व अधिकार के नामपर मनमाना प्रलाप करके समाजके मस्तकको नीचा कर रहे हैं । समाजके किए गये बहुमूल्य बलिदानका मोल तोल कर रहे हैं ।
जो जैन अपनी योग्यता और लोकसेवी कार्योंके बलपर अधिक से अधिक जाने चाहियें। वहां ये
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वर्ष
अपनी घातक नीतिके कारण केवल एक सीट के लिये पृथ्वी आकाश एक कर चुके हैं। अभी तक यह लोग विनेकावार और दस्से जैनों के लिये पूजा पाठ रोके हुए थे। चाहे जिसका बहिष्कार करके दर्शन-पूजा बन्द कर देते I अब हरिजनोंकेलिये मन्दिर खुलते देख इन्हें भय हुआ कि जब हरिजन ही मंदिरों में प्रवेश पा जाएंगे, तब इन अभागे दस्सों को कैसे रोका जायगा ? अतः चट एक चाल चली और "जैन हिन्दू नहीं हैं" यह लिखकर उस क़ानून के अन्तर्गत जैन उपासना - गृहोंको नहीं आने दिया । पर इन दयावतारोंने यह नहीं सोचा कि जैन यदि बहुसवयक जातिके साथ क़ानून में नहीं बंधते हैं तो उन् बहुसंख्यक जातिको मिलने वाली सारी सुविधाओंसे वचित होना पड़ेगा । और यह नीति आत्मघातक सिद्ध होगी । हिंदुओंसे पृथक् समझने वाली मुसलमान जातिका आज भारत में क्या हश्र हुआ ? वे अपने ही वतनमें बदसे बदतर हो गये । उनकी मस्जिदें वोरान होगई, व्यापार चौपट होगये, और घर से निकलना दुश्वार होगया, यहां तक कि बाइज्जत मरना भी उनके लिये मुहाल होगया । ऐं ग्लोइण्डियन्सका जिनका ख़ुदा इंगलेण्ड में रहता था, आज भारतमें क्या व्यक्तित्व रह गया है ? तब क्या जैन समाजके ये जिन्हा जैनोंको भी उसी तरह बर्बाद करना चाहते हैं । उस जिन्हामें सूम थी, बुद्धि थी, अक्ल थी, कानून की अपार जानकारी थी । मुसल - मानोंके लिये उसके पास धन था और समय था । जिसने अपने प्रलयङ्ककारी आन्दोलन से पर्वतों को भी विचलित कर दिया था । बाजालमें अच्छे-अच्छे राजनीतिज्ञोंको फँसा लिया था, फिर भी वह मुसलमानोंका अनिष्टकारक ही सिद्ध हुआ। फिर जैन समाज के ये जिन्हा जिन्हें अक्ल कभी मांगे न मिली, जैन स्वत्वके नामपर वायवेला मचाते हैं तो यह समझने में किसी समझदारको देर न लगेगी कि जैनसमाजकी नैया जिस तूफानसे गुज़र रही है, उसे चकनाचूर करने और डुबाने में कसर न छोड़ेंगे ।
- गोयलीय
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