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________________ किरण २ ] वह तो भारतमें न रहकर पाकिस्तान में चलोगई । और अपने भारत की पराधीनताको अमिट निशानी "हिंन्दू" यहां छोड़ गई । हिंन्दू परतंत्र पद दलित और विजित भारतका बलात् नाम करण है और मुस्लिम शब्द कोषों में हिन्दूका अर्थ गुलाम या काफ़िर किया गया है । अतः भारतका उपयुक्त प्राचीन नाम तो भारत ही श्रेष्ठ है । और इसके निवासी सभी भारतीय हैं । जैन भी भारतीय जैन हैं । परन्तु हिन्दु शब्द रूढ होजाने से यदि भारतका नाम हिन्द भी रहता है तो यहांके सभी निवासी हिन्दू या हिन्दी है चाहे वे आयें, जैन, बौद्ध, सिक्ख, मुस्लिम, ईसाई पारसी कोई भी क्यों न हों। हां मनुष्य आर्य हिन्दू जैन हिन्दू या मुस्लिम हिन्दू लिखनेका अधिकारी है । किन्तु हिन्दू शब्द भी एकवर्ग विशेषके लिये रूढ़ हो गया है, जिसमें इतर धर्म पर आस्था रखने वालों केलिये स्थान नहीं है । इसीलिये हर राष्ट्रीय विचारका मनुष्य अपने को हिन्दू न कर हिन्दी कहता है । हालांकि दोनोंका अर्थ भारत निवासी ही है । परन्तु प्रचलित रूढ़ि के अनुसार हिन्दू एक सम्प्रदायवादका और हिन्दी भारतीयताका द्योतक बन गया है । और आगे चल कर भाषा के मामले में हिन्दी शब्द भी समस्त भारतीयों की भाषाका द्योतक न होकर नागरीलिपि का रूपक हो गया है। महात्मा गांधी भारतीयता के नाते तो हिन्दी थे; परन्तु भाषा के प्रश्नपर वे हिन्दी के समर्थक न होकर हिन्दुस्तानीके समर्थक थे । जो हिन्दी शब्द सभी सम्प्रदायवाले भारतीयों के एकीकरण के लिये उपयुक्त समझा गया, वही हिन्दी शब्द एक विशेष अर्थ में रुढ़ हो जाने के कारण सभी भारतीयोंकी मिली जुली भाषा के लिये उपयुक्त नहीं समझ कर और उसके एवज "हिन्दुस्तानी" शब्दका प्रचलन किया गया। और अब इसका भी एक रूढ अर्थ हो गया है, अर्थात हिन्दुस्तानी वह खिचड़ी भाषा जिसे कोई भी अपनी न समझे । लावारिस वर्णशंकरी भाषा । श्रेष्ठ नागरिक जानेकी आवश्यकता नहीं । पर हमारे मूलपुरुष यहीं जन्में, यहीं निर्वाण को प्राप्त हुए हैं । भारतको उन्नत बनाने में हमने भरसक और अनथक कार्य किये हैं । अतः हमारे देशका नाम यदि भारत ही रहता हैं तो हम भारतीय जैन हैं और यदि हिन्द रहता है तो हम हिन्दी या हिन्दू जैन हैं। हम अपने लिये न कोई विशेष अधिकार चाहते हैं न अपने लिये कोई नये कानूनका सृजन चाहते है । हमने सबके हित में अपना हित और दुख में दुख समझा है और आगे भी समझेंगे। भगवान महावीर के अहिंसा, सत्य और अपरिग्रहस्व और विश्वबन्धुत्वकी अमृत वाणीको साम्प्रदायिक पोखर में डालकर अपवित्र नहीं होने देंगे राष्ट्रकी भलाई में हम हिन्दू हैं, हिन्दी हैं और भारतीय हैं; किन्तु यदि हिन्दू शब्द किसी विशेष सम्प्रदायवादका पोषक है किसी खास वर्गवादका द्योतक है, और प्रजातन्त्र सिद्धान्तोंको कुचलकर नाज़ी या फासिस्टवाद जैसा सम्प्रदायवाद या जातिवादका परिचायक है तो जैन केवल मनुष्य हैं । सम्प्रदायवाद या साम्राज्यवादका एक महल बनाने में वे कभी सहायक न होंगे । चाहे सभी जैन राष्ट्रपिता बापूकी तरह बलि चढ़ा दिये जाएँ । ५-३ नागरिक-1- श्र ेष्ठ कहने का तात्पर्य है कि जैन, जैन हैं। हम भारत . के आदि निवासी हैं आर्य-अनार्य कौन बाहर से आया और कौन यहांका मूल निवासी है, हमें इस पचड़े में Jain Education International ८७ सम्प्रदायवाद के साथ-साथ जैनोंको राजनैतिक सङ्घर्षो से भी बचना होगा। कभी शासनसत्ता गांधीवादियों, कभी समाजवादियों, कभी कम्यूनिस्टों और कभी किसीके हाथमें होगी । शासनसत्ता हस्तांतरित करनेके लिये व्यापक षडयन्त्र और नर-हत्याएँ भी होंगी। शासकदल विरोधी पक्षको कुचलेगा, विरोधी पक्ष विजयी दलको चैनसे सांस न लेने देगा। ऐसी स्थिति में अल्पसंख्यक जैनसमाजका कर्तव्य है कि वह सामूहिक रूपमें किसी दल विशेषके साथ सम्बन्ध न जोड़े। हां व्यक्तिगत रूप से अपनी इच्छानुसार हर व्यक्तिको भिन्न भिन्न कार्य क्षेत्रों में कार्य करनेका अधि कार है। यह भावना कि हम जैन हैं इसलिये हमें इतनी सीटें और इतनी नौकरियां मिलनी चाहिए" हमारे विकाशमें बाधक होगा । हम अपने को इस For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527252
Book TitleAnekant 1948 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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