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________________ किरण २] अद्भुत बन्धन ७१ फिर श्री माधोप्रसादजी बिड़लाने अपने उन बोरे बाजारके दलालोंकी भी एक अलग सोममित्रों के नामोंका उल्लेख किया, जिनसे सहायताके नाथ-मन्दिर-कोष-सबकमेटी बनाई गई जिसमें निम्न वचन उन्होंने प्राप्त कर लिये हैं और उपस्थित सज्जनों लिखित सदस्योंके नाम हैं-श्रीयुत परमेश्वरीलालजी से चन्दा लिखवाने की अपील की। १॥ डेढ़ लाख गुप्ता, जानकीदासजी बेरीवाला, बद्रीप्रसादजी परसरुपयेसे अधिककी सहायता सोमनाथ मन्दिर-कोषके रामपुरिया, बनारसीलालजी फमारनिया, हरिकिसन लिये हेशियन बोराके व्यापारियोंसे प्राप्त हो चुकी है। जी आचार्य। इस सब-कमेटीको भी अन्य सदस्य चन्दा लिखाने के लिये एक सोमनाथ मन्दिर-कोष- लेनेका अधिकार है। समिति भी बनाई गई जिसमें निम्नलिखित सदस्योंके हमें पूर्ण विश्वास है कि सभी हिन्दु भाई इस नाम हैं-श्रीयुत माधोप्रसादजी बिड़ला, केसरदेवजी कोषमें प्रचुर सहायता प्रदानकर् अखण्ड-हिन्दु-जाति जालान, देवीप्रसादजी गोयनका, छोटेलालजी कानो- (राष्ट्र) को सुदृढ़ बनायेंगे। ड़िया, रामसहायमलजी मोर, जयलालजी बेरीवाला, अन्तमें हम श्री बिडला बन्धओंको धन्यवाद देते भागीरथजी कनोडिया, बिलासरायजी भिवानीवाला, हैं कि इस हिन्दु जागरणके कायमें वे सबसे आगे छोटेलाल जी सरावगी। इस सब कमेटीको अन्य आकर इस फण्डकी सफलताके लिये तन, मन, धनसे सदस्य लेनेका अधिकार है। . पूर्ण प्रयत्नशील हुये हैं। अद्भुत बन्धन ! बता बता रे ! बन्दी ! मुझको, बता ! बनाई किसने तेरी, बांधा किसने आज तुझे ? . यह अटूट अति दृढ बेड़ी ? बोला-"मेरे स्वामीने ही, बोला बंदी-"बड़े यत्नसे, ____ कसकर बांधा आज मुझे ॥ . इसको मैंने स्वयं घड़ी ।। सोचा था धन-बल ही से मैं, सोचा था करलेगा बन्दी, .. लाङ्घ सकू सारा संसार । . जगको मेरा प्रबल प्रताप । और धरा धन निजी कोष वह, सदा भरूंगा शान्ति-सहित मैं, था जिसपर नृपका अधिकार ॥ एकाकी स्वाधीनालाप ॥ निद्राके हो वशीभूत मैं, अत: रात दिन अथक परिश्रम, लेट गया उस शय्यापर । करनेका सब भार लिया। जो मेरे मालिकको प्यारी भट्टी और हथोड़ों द्वारा, . थी मनहर अति ही सुन्दर । बेड़ीको तैयार किया । बात हुई मुझको सब बातें, कडियां पूर्ण अटूट हुई सब, जब निद्रासे जाग चुका। .. सभी कार्य सम्पूर्ण हुआ। हा! मैं बन्दी बना हुआ हूं, ज्ञात हुआ इनहीने मुझको, अपने ही कोशालयका ॥" हा ! बन्धनमें बांध लिया। [ रचयिता-रवीन्द्रनाथ ठाकुर, अनुवादक-अनूपचन्द जैन न्यायतीर्थ ] Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527252
Book TitleAnekant 1948 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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