SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण २ । सोमनाथका मन्दिर महमूद ग़ज़ नबीके मकबरेपर लगे हुवे दरवाजोंको आक्रमण होते रहे। सन् १२६८ में देहलीके बादशाह ही सोमनाथके चन्दन-द्वार समझकर वृथा ही उखाड़ अल्लाउद्दीन खिलजीके सिपहसालार अलफखाँने इस लाया जो अब तक आगरेके किलेके एक कोने में पड़े हैं। मन्दिरको फिर धराशायी किया। लिङ्गको जड़से ___महमूद लूटका माल ले भागनेको जल्दीमें केवल इस आशयसे उखाड़ा कि नीचे दबा हुवा धन मिलेगा लिङ्ग तोड़ सका। इस अत्याचारसे हिन्दुओंमें रोष जैसाकि धन-लोलुप मन्दिर-ध्वसंक मुसलमानोंकी छा गया, और कई राजा, आबू के राजा परमर्दीदेवके रीति थी। उसने मन्दिरका नामो निशान मिटानेको नेतृत्वमें अरबली पहाड़ियों और कच्छकी रणके चेष्टा की। बीचसे जाने वाले मार्गको रोकने के लिये आगे बढे, राजा महीपाल देवने (१३०८-१३२५) फिर इस ताकि महमूदको रोक लिया जावे, किन्तु महमूद मन्दिरका निर्माण किया। सन १३१८ में सोमनाथ लड़ाईसे बचने के लिये दूसरे मार्गसे अर्थात् पश्चिमकी मन्दिरपर फिर मुसलमानोंका आक्रमण हुवा, और ओर कच्छ और सिन्धके बीचसे होता हुवा निकल मन्दिर नष्ट कर दिया गया, परन्तु राजा महीपालदेव भागा। वापसीमें सिन्ध नदीके किनारे मुलतानकी के सुपुत्र श्री खगार चतुर्थने (१३२५-५१ ) इस तरफ जाट इसकी सेनाके पिछले भागपर टूट पड़े मन्दिरको फिर निर्मित किया और सोमनाथ लिङ्गकी जिससे इसके बहुतसे सैनिक और घोड़े ऊंट मारे गये। प्रतिष्ठा की। महमूद २ अप्रेल सन् १०२६ में ग़ज़नी वापिस सन् १३६४ में गुजरातके शासक स्वधर्मत्यागी पहुंचा। मुजफ्फरखांने पड़ोसी हिन्दु राजाओंके विरुद्ध भयङ्कर ___ भागनेसे पहले कहते हैं, महमूदने मीठा-खां धार्मिक युद्ध (जहाद) छेड़ा, और सोमनाथके मंदिरको नामके अफसरको नियुक्त किया जिसने सोमनाथ फिर एकबार ध्वस्त किया और इसकी जगह मसजिद मन्दिरको पूर्णरूपसे नष्ट किया। परन्तु अनिहिलवाड़ बना दी । इतिहासकार फरिश्ता लिखता है कि पट्टनके महाराज भीमदेवने ( सन् १०२१-१०७३ ) मुजफ्फरखाने जितने मन्दिर तोड़े, उनकी जगह मीठा-खको मार भगाया और सोमनाथके मन्दिरका मसजिद बनाता गया। इस्लाम धर्म के प्रचार और पुनर्निर्माण किया। महाराज सिद्धराज (सन् १०६३- प्रसार के लिये मौलवियोंको नियुक्त किया, और इसीने ११४३) ने इसको भूषित और सुसज्जित किया और यहां पहली बार मन्दिरोंको मसजिदोंमें परिणत अन्तमें महाराज कुमारपालने सन् १९६८ में जैनाचार्य करने का काम शुरू किया था। श्री हेमचन्द्र सूरिके परामर्शानुसार ७२ लाख रुपये परन्तु हिन्दुओंने सोमनाथ मन्दिरको फिरसे बना. (जो कि उनके राज्यकी एक वर्षकी पूरी प्राय थी) लिया। इसके बाद सन् १४१३ में मुजफ्फरखांके लगाकर इस मन्दिरको सम्पूर्ण किया। कई इतिहास पोते अहमदशाहने, जो अहमदाबाद के अहमदशाही कारोका मत है कि यह नया मन्दिर पुराने मन्दिरकी वंशका संस्थापक था, जूनागढके राजापर आक्रमण जगहमें बना था। कई लेखक इसको कल्पना मानते कियाऔर सोमनाथके मन्दिरको नष्ट किया जहांसे हैं। उनका मत है कि सरस्वती नदीके महानेसे तीन उसे बहुमूल्य सम्पत्ति प्राप्त हुई। , और भीडिया मन्दिरसे प्रायः . गुजरातके शासक महमूद बेगरा (मुजफ्फर२०० गज दूरीपर जो भग्नावशेष हैं, वहींपर सोमनाथ द्वितीय) ने भी सोमनाथ मन्दिर के अवशेषोंपर आक्रका मूल मन्दिर था। मण किये। सन् १७०२-३ में जब औरङ्गजेब ८४ वर्षका हुवा अन्य अाक्रमण तो उसने अहमदाबादके अपने सूबेदार शुजातखांको महमूदके बाद भी इस मन्दिरपर मुसलमानों के फरमान भेजा कि उसके जीवित रहते रहते सोमनाथ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527252
Book TitleAnekant 1948 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy