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________________ किरण १ ] समयसार की महानता [ ३३ संकलन करनेकेलिये भास्करनन्दिकी हालमें प्रकाशित सं० १०५० में रचे गये 'पराणतिलक' में चामुण्डराय होकर प्राप्त तत्त्वार्थवृत्ति हाथमें आई। इस ग्रन्थकी की विशेष कृपाका उल्लेख किया है। यही चामुण्डराय प्रस्तावनामें पं० शान्तिराजजी शास्त्रीने समन्तभद्रके प्रसिद्ध गोम्मटेश्वरकी मूर्तिके निर्माता और नेमिचन्द्र भाष्यके सम्बन्धमें विचार किया है । उन्होंने समन्तभद्र- सिद्धान्तचक्रवर्तीद्वारा अतिशय प्रशस्य हुए हैं। मतभाष्यके उल्लेखोंमें एक उल्लेख विद्वानोंके लिये खास लब यह कि चामुण्डरायका उक्त उल्लेख बहुत कुछ तौरसे विचारने योग्य और प्रसिद्ध उल्लेखोंसे प्राचीन प्रामाणिक और असन्दिग्ध है। उसमें दो वाताका एवं नया उपस्थित किया है। यह उल्लेख निम्न प्रकार स्पष्ट निर्देश है एक तो यह कि समन्तभद्रदेवने तत्त्वा. र्थभाष्य रचा हैं और दूसरी यह कि वह तर्कशास्त्र अभिमतमागिरे 'तत्त्वा ग्रन्थ है । नहीं कहा जा सकता कि भाष्यमं तर्कशास्त्रम' बरेदुवचो-। चामुण्डगयने समन्तभद्रके भाष्यका उल्लेख किल आधारसे किया ? क्या उन्हें उक्त ग्रन्थ प्राप्त था अथवा विभवदिनिलेगेसेद 'समं अनुश्र ति मात्र थी? इस सम्बन्धमें समन्तभद्रभाष्यतभद्रदेवर' समानरेबरुमोलरे ॥५॥ प्रेमी विद्वानोंको अवश्य विचार करना चाहिये और ___यह उल्लेख चामुण्डरायके प्रसिद्ध त्रिषष्टि लक्षण उसका अनुसन्धान करते रहना चाहिये। महापुराणका है जो कनड़ी भाषामें रचा गया है और ..उक्त उल्लेखमें एक बात यह भी ध्यान देने योग्य जिसे उन्होंने शक सं० १०० - वि० सं० १०३५ है कि समन्तभद्र वादिराजसूरिसे पूर्व भी 'देव' उपपदमें समाप्त किया है। चामुण्डाराय गंगनरेश के साथ स्मृत होते थे और 'समन्तभद्रदेव' इस नामसे राचमल्लके प्रख्यात मंत्री थे। राचमल्लका भी विद्वान उनका गुण कीर्तन करते थे। राज्यकाल वि० सं० १०३१ से २०४१ तक है। १०जनवरी, १९४८ दरबारीलाल कोठिया कनड़ी भाषाके प्रसिद्ध कवि रन्नने अपने वि० १ देखो, प्रेमीजीकृत -जैन साहित्य और इतिहास । समयसार की महानता ( प्रवक्ता- पूज्य श्रीकानजी) [पाठकगण, श्रीकानजी स्वामीसे अपरिचित नहीं करते रहते हैं । परन्तु अभी हालमें श्रीकानजी स्वामीका हैं। वे वर्तमान युगके उन सन्तोंमें हैं जो जडवादके 'आत्म-धर्म' में वह प्रवचन प्रकट हुआ है जिसे उन्होंजालसे व्याप्त इस विश्वमें श्राध्यात्मका उद्दीप्त दीपक ने गत श्रुतपञ्चमीके अवसरपर किया था। इस जलाये हुए हैं और जिसके प्रकाशको न केवल आस- प्रवचनमें श्रीकानजी महाराजने समयसार पर जो पास ही, अपितु भारतके सुदूरवर्ती अनेक कोनोंमें भी, उद्गार प्रकट किये हैं उनसे समयसारकी महानता अपने विद्वत्ता और मार्मिकतासे भरे हुए प्रवचनोंद्वारा और अगाधताका जैसा कुछ परिचय मिलता है वह प्रसृत कर रहे हैं। यों तो आप और आपका विवेको देखते ही बनता है। हम पाठकोंके लिये उनके इस संघ दोनों 'समयसार' के महत्व और उसकी अगाधता- प्रवचनके कुछ अंशको यहां दे रहे हैं।] को खूब अनुभव करते हैं तथा सदैव उसे प्रकट भी -स० सम्पादक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527251
Book TitleAnekant 1948 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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