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________________ - वीर सेवामन्दिरको सहायता वीरसेवामन्दिमें पं० वंशीधरजी न्यायालंकार गत किरण (४-५ ) में प्रकाशित सहायताके बाद वीर सेवा मन्दिरको सदस्य फीस के अलावा जो सहायता प्राप्त हुई है वह निम्न प्रकार हैं, जिसके लिये दातार महानुभाव धन्यवाद के पात्र हैं गत अक्तूबर मास में विद्वद्वर्य श्रीमान् पं० वंशीधर जी न्यायालंकार, इन्दौर, अपने साथ श्री पं० मनोहरलालजी वर्णी, श्री चम्पालालजी सेठी तथा बा० नेमीचन्दजी २५०) श्रीमती जयवन्ती देवी, नानौता जि० सहारनपुर (श्री वकील सहारनपुरको लेकर वीरसेवामन्दिर सरसावा में पधारे । दादीजी के स्वर्गवाससे पहले निकाले हुए १००१). के दानमेंसे ग्रन्थप्रकाशनार्थ) । १५०) सकल दिगम्बर जैन पंचान कलकत्ता ( दशलक्षण पर्व के उपलक्ष में) मार्फत सेठ बलदेवदासजी सरावगी, कलकत्ता । आपने मन्दिरके पुस्तकालय और कार्यालयका निरीक्षण किया श्रद्धेय मुख्तार साहिब तथा मन्दिरके अन्य विद्वानों के साथ तात्त्विक एवं साहित्यिक विषयोंपर चर्चा की और मन्दिर में जो शोध खोज तथा ग्रन्थ- निर्माण सम्बन्धी कार्य चल रहे हैं उन्हें देखा । श्राप यहाँकी कार्यपद्धति श्रौर उसके महत्व से बहुत प्रभावित हुए तथा समय निकालकर कुछ दिनोंके लिये वीर सेवामन्दिर में श्रानेका वचन दिया । साथ ही संस्थाकी निरीक्षणबुक में अपनी शुभ सम्मति निम्न प्रकारसे अंकित की - ८०) श्रीमती विशल्यादेवी धर्मपत्नी साहू प्रकाशचन्दजी जैन, नजीबाबाद (लायब्रेरी में ग्रन्थ मंगानेके लिये ) मार्फत बा० नरेन्द्रप्रसादजी सहारनपुर । २१) जैनशास्त्रसभा नयामन्दिर देहली । मार्फत ला० जुगल किशोरजी कागजी, देहली। १५) ला० धवलकित मेहरचन्दजी जैन सहारनपुर ( चि० नरेशचन्द्र के विवाहकी खुशी में । १०) बा० पीताम्बरकिशोरजी जैन एजीक्यूटिव इंजीनियर, रुड़की जिo सहारनपुर । १०) ला० पारसदासजी जैन स्यालकोट निवासी ( पुत्री कान्तादेवीके विवाहकी खुशीमें) मार्फत पं० रूपचन्द जैन गार्गीय, पानीपत । ३||) ला०विमलप्रसादजी जैन, सदर बाजार, देहली । ५३६॥) कान्तको सहायता गत चौथीपाँचवीं किरण में प्रकाशित सहायता के बाद श्रनेकान्तको जो सहायता प्राप्त हुई है वह निम्न प्रकार है, जिसके लिये दातार महानुभाव धन्यवादके पात्र हैं । ११) ला० देवीदास शंकरदासजी जैन, कलरमर्चेन्ट चूड़ी सराय मुलतान (सेठ सुखानन्दजीके स्वर्गवास के समय निकाले हुए दानमेंसे) । ५) मंत्री दि० जैन पंचायत कमेटी, गया । ५) ला० व्रजलालजी जैन सौदागर संतर जि० मुरार (पिता जी के स्वर्गवास के समय निकाले हुए दान मेंसे) । व्यवस्थापक 'अनेकान्त' २१) श्रधिष्ठाता 'वीर सेवामन्दिर' Jain Education International " श्राज ता० १६ १०-४६ को वीरसेवामन्दिर में आया, श्रीमान् पं० जुगलकिशोरजी के दर्शन से बहुत ही प्रसन्नता हुई। मुख्तार साहबने इस युग में जिस पद्धति से जैनदर्शन जैनसाहित्य, जैनइतिहासके पर्यवेक्षण, श्रन्वेवं मीमांसा करते हुए कितनी गम्भीरता के साथ विवेचन करते हुए विविध ग्रन्थोंका प्रकाश किया है, वह भूरिभूरि प्रशंसा के योग्य है। मुझे तो वर्तमान दि० जैन समाजमें एक मात्र श्रद्वितीय विद्वद्वन प्रतीत होते हैं। आपकी जैनवाङ्मयको सिलसिलेवार नवीन रूपसे लोगों के सामने प्रकाशित करनेकी बहुत बड़ी लगन है । दि० जैन समाज के धनाढ्य पुरुषोंका कर्त्तव्य है कि वे पंण्डितजी के मनोरथोंको पूर्ण करने में मुक्तहस्त हो भरपूर सहायता दें। यदि वे ऐसा करेंगे तो जैनाचायोंके बहुत बड़े उपकारोसे उपकृत हुए कृतज्ञ कहे जा सकेंगे। विशेष क्या लिखूँ वीर सेवामन्दिर में वास्तविक और ठोस कार्य किया जा रहा है। इसके लिये पं० दरबारीलालजी एवं पं० परमानन्दजी शास्त्रीका सहयोग सराहनीय है।" J, P. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527238
Book TitleAnekant 1946 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1946
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size3 MB
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