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साहित्य- परिचय और समालोचन
प्रेमी अभिनन्द ग्रन्थ — श्रद्धेय पं० नाथूरामजी प्रेमी की चिरकालीन एवं महत्वपूर्ण साहित्यिक सेवाओं के उपलक्ष में उनका अभिनन्दन करनेके लिये, ता० २० अक्तूबरको नागपुर विश्वविद्यालय में होने वाले अ० भा० प्राच्यविद्यासम्मेलनके अवसर पर एक उपयुक्त समारोह किया गया था, और उसमें प्रसिद्ध नेता एवं साहित्यसेवी काका कालेलकरके हाथों प्रेमी जीको यह अमूल्य ग्रंथ समर्पित किया गया था । ग्रंथ समपरण तथा अभिनन्दन समारोहका आयोजन प्रेमो अभिनन्दन समितिकी ओर से हुआ था, जिसके प्रेरक श्रद्धेय पं० बनारसीदासजी चतुर्वेदी, अध्यक्ष डा० वासुदेवशरण जो अग्रवाल, तथा मन्त्री श्री यशपाल जैन बी० ए० एल-एल० बी० थे ।
ग्रंथके सम्पादक मंडल में जैन अजैन, स्त्री-पुरुष, चोटी ४६ साहित्यसेवी विद्वान थे और उक्त मंडलके अध्यक्ष भी डा० अग्रवालजी ही थे । ग्रंथको १८ उपयुक्त विभागों में विभक्त करनेकी योजना थी और इन विभागों की अलग अलग कुशल सम्पादन समितियाँ संयोजित करदी गई थीं । किन्तु बादमें उक्त १८ विभागों को सकुचित करके ६ ही विभाग रक्खे गये जो इस प्रकार हैं
अभिनन्दन, भाषाविज्ञान और हिन्दीसाहित्य, भारतीय संस्कृति पुरातत्त्व और इतिहास, जैनदर्शन, संस्कृत प्राकृत और जैनसाहित्य, मराठी और गुजराती साहित्य, बुन्देलखण्ड, समाजसेवा और नारीजगत तथा विविध । इन विभागों के अन्तर्गत १२७ विभिन्न अधिकृत विद्वान लेखकों द्वारा प्रणीत १३३ महत्वपूर्ण लेख संगृहीत हैं । प्रायः सब ही लेख मौलिक, गवेषणापूर्ण एवं स्थायी मूल्य के हैं । इनमें से ४० लेख जैनदर्शन साहित्य इतिहास समाज आदिके सम्बन्ध में हैं । लेखों के सम्मादनमें सम्पादकाध्यक्ष तथा अन्य संपादक महोदयों ने भी
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यथेष्ट परिश्रम किया है । लेखों के अतिरिक्त ३४ विविध चित्रों से भी ग्रन्थ सुसज्जित किया गया इन चित्रों में २= फोटो चित्र हैं और शेष ६ कलाकार श्री सुधीर नास्तगीर द्वारा निर्मित काल्पनिक चित्र हैं जो यद्यपि कलापूर्ण हैं तथापि विशेष आकर्षक नहीं प्रतीत होते, फोटोचित्रो में भी, व्यक्तिगत चित्रों को छोड़कर अन्य चित्रों में जैनकला एवं पुरातत्त्व संबंधी चित्रों का प्रायः अभाव है जो खटकता है । लेखो में भी जैनसाहित्य इतिहासे कला आदिपर अपेक्षाकृत बहुत कम लेख हैं और जो हैं उनमें भी इन विषयों पर पयाप्त एवं समुचित प्रकाश नहीं पड़ पाया। ग्रंथकी छपाई आदि तैयारी ला जरनल प्रेस, इलाहाबाद में हुई है । अतएव उत्तम तथा निर्दोष है; हाँ प्रूफ आदिकी कुछ अशु द्वियें फिर भी रह गई हैं। कुछ लेखो में अनावश्यक काटछाँट भी की गई प्रतीत होती है जो उन लेखों के लेखकों की स्वीकृति बिना कुछ उचित नहीं जान पड़ती। इसपर भी ग्रंथ सवप्रकार सुन्दर, महत्वपूर्ण, पठनीय एवं संग्रहणीय है, और इसका मूल्य भी मात्र दश रुपये है जो संस्करणकी सुन्दरता विपुलता तथा ठोस सामग्रीको देखते हुए अत्यल्प है।
अनित्य - भावना - वीर सेवामन्दिरकी प्रकीर्णक पुस्तकमाला के अन्तर्गत प्रकाशित यह पुस्तक श्री पद्मनन्द्याचार्य - विरचित संस्कृत 'अनित्यपञ्चाशत' का पं० जुगल किशोरजी मुख्तारकृत ललित हिन्दी पद्यानुवाद, भावार्थ, उपयोगी प्रस्तावना एवं पद्यानुक्रमणिका सहित तथा मुख्तार साहब द्वारा ही सम्पादित, संशोधित परिवर्द्धित तृतीय संस्करण है । पुस्तक बहुत लोकोपयोगी, उपदेशप्रद एवं पठनीय है और जनसाधारण में वितरण करने योग्य है । छपाई सफाई सन्तोषजनक है । मू० चार आने है ।
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