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विविध-विषय
अतःकालीन सरकार सामान्यतः मस्लिम दो दलों में विभक हो जायगी और तब उसके वायसरायके लीगके केन्द्रस्थ कांग्रेती सरकारमें सम्मिलित होनेका देशमें श्राधीन रहने और उसके द्वारा नियन्त्रित होनेकी ही सर्वत्र सहर्ष स्वागत किया जाता; किन्तु इस नवीन सम्मि
सम्भावना है, किन्तु इस परिस्थितिको काँग्रेस कभी भी लनके प्रति देश वस्तुतः अत्यन्त उदासीन एवं निरुत्साह ही
स्वीकार नहीं करेगी। इस राजनैतिक समझौते के-या इसे रहा। मि० जिन्ना द्वारा प्रस्तुत समस्या के हल करने के प्रयत्नको
जो कुछ भी नाम दिया जाय उसके-फलस्वरूप साम्प्रदायिक 'अत्यन्त रूखा' कहकर ठीक ही बयान किया गया है। खींचतानके भी कम होनेके कोई खक्षण नहीं दीख पड़ते । उनके स्वयं के अनुयायियों में भी, छोटे बड़े सब ही इससे नोभाखोजीकी भयङ्कर दुरवस्था किसी भी भारतीय देशभत्रको माखुश रहे । उन्होंने अन्त:कालीन सरकारसे अलग रहनेकी यह महसूस करने नहीं दे सकती कि देशने अपनी कठिनाइयों अपनी मूर्खताको भी महसूस किया और उसका प्रतिकार और संकटोंसे मुक्ति पाली है । एक मात्र यही सन्तोषकी बात करना चाहा। कांग्रेस और लीगके बीच समझौता कराने के है कि (अन्त:कालीन सरकारके) कांग्रेसी दलमें देशके लिये नवाब भौगल द्वारा किया गया हस्तक्षेप भी विफल विद्यमान सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति ही सम्मिलित हैं; और संभव है रहा; अन्तमें, परिणामस्वरूप, मि० जिनाको वायसरायके थे ऐसी स्थिति में भी सामञ्जस्यकी भावनायें सञ्चारित हाथोंसे वही स्वीकार करना पड़ा जोकि नेहरू सरकार उन्हें करने में सफल हो जाय जहाँ उसकी कोई पाशा नहीं है। पहले ही स्वयं दे रही थी। उन्होंने नेहरू सरकारकी अपेक्षा किन्तु यह मात्र एक श्राशा ही है, यदि अभिलाषा नहीं।' वायसरायके हाथों वे ही पांच स्थान लेने पसन्द किये।
-के. एम. मुन्शी । इस बातसे उनके मस्तिष्कका मित्रता अथषा सहायता पूर्ण
कांग्रेस सभापतिका सन्देश- गत २२-२३-२४ होना सूचित नहीं होता। उन पांच स्थानों से एक स्थान
मधम्बरको मेरठ में अ. भा. राष्ट्रीय महासभाका ५४ वाँ उन्होंने एक कांग्रेस-विरोधी हरिजनको इस आशामें देदिया
अधिवेशन सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ। उक्त अवसरपर कि उससे भारतीयः हरिजनोमें फूट पड़ जायगी । इस बातसे भी उनके इरादोंमें मित्रभावका अभाव झलकता है। प्रत
देश के मनोनीत राष्ट्रपति प्रागर्य कृपलानीने जनताको
स्वावलम्बी बनने के लिये प्रेरित किया। आपने कहा-'श्राप इसके, यह भारतकी राष्ट्रीय एकताको भंग करनेका उनका
लोगोंको अपनी रक्षाके लिये अन्तःकालीन सरकार, प्रान्तीय एक साहसिक प्रयत्न था। नेहरू सरकारने पहिले ही अपने
सरकार, फौज या पुलिसकी ओर न देखकर अपनी शकि, ऊपर संयुक्त उत्तरदायित्व लेकर शनि और सामजस्यकी एक
अपने संगठन तथा अपनीब हादुरीपर निर्भर रहना चाहिये। पाश्चर्यजनक प्रथा डालदी थी। इस सरकारके लिये यह
आप लोगोको जातिपातके बंधन स्याग देने चाहिये, अच्छे एक आसान बात थी, क्योंकि इसके सदस्य या तो कांग्रेसी
पड़ोसियों के साथ मित्रता कायम करनी चाहिये और साहस थे या पके राष्ट्रवादी । क्या ये नये पाँच सदस्य, जो अब
तथा संगठनके साथ गुण्डेपनका विरोध करना चाहिये।' पाकिस्तान प्राप्त करनेकी श्राशा लगाये बैठे हैं इस संयुक्त उत्तरदायित्वको अपनायेंगे अथवा नहीं, यह एक अत्यन्त प०
पं. नेहरूजीका जन्मदिवस-ता० १४ नवम्बसन्दिग्ध प्रश्न है, यदि वे ऐसा नहीं करते तो नेहरू सरकार को देश विदेशमें, भारतीय राष्ट्र के शिरमौर पं. जवाहरलाल
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