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किरण ६-७ ]
आकृतियों परसे लीगई हैं ? गजनीकी मीनारो के तलभागों की आकृतियों को देखते हुए प्रथम निष्कर्ष की संभावना सी प्रतीत होती है; किन्तु अनको मन्दिरों, विशेषकर मैसूर तथा अन्य स्थानों के जैन मन्दिरों की ताराकृति (सितारेनुमा शकल) से यही प्रतीत होता है कि वे मूलतः भारतीय ही हैं।
कुतुबकी मस्जिद
प्राचीन जैनमन्दिरोंके ध्वंसावशेषों से निर्मित मस्जिदें
कुतुबुद्दीनकी मस्जिद, जो कि सारे 'कुव्वतुल इस्लाम' (इस्लामकी शक्ति ) कहलाती है, सामनेसे पीछे की ओर, स्थूल रूपसे १५० फीट लम्बी है और आजू बाजू उसकी आधी (लगभग ७५ फीट) चौड़ी है । उनके मध्यका खुला आंगन १४२ फीट लम्बा और १०८ चौड़ा है। पूर्वी और उत्तरी दिशाके द्वार अभी भी समूचे हैं और उनपर मस्जिदकी स्थापना- संबंधी अभिलेख अंकित हैं। दक्षिणी दिशाका द्वार और उसके साथ ही पश्चिमी सिरेका बहुभाग तथा दक्षिणी दीवार की सम्पूर्ण पश्चिमी स्तंभावली अस्य हो चुकी हैं। यद्यपि यह मस्जिद पूर्णतः भारतीय 'बल्कि - वस्तुतः जैनमंदिरों की सामग्रीसे निर्मित है तथापि इसका प्रत्येक भाग दुबारा ही निर्मित हुआ है। ये मत भी, कि श्रांगनका प्राकारमूल तथा विस्तृत महराबदार परदेके पीछे वाले स्तंभ उसी प्रकार अवस्थित हैं जैसे कि वे भारतीयों द्वारा निर्मित किये गये थे, वैसे ही भ्रमपूर्ण हैं। इसमें शक नहीं कि प्रारंभ में दीवारों का बाहिरी भाग उसी प्रकार प्लास्टर से पूर्णतया ढका हुआ था जैसा कि अन्दरूनी भागके खंभे; किन्तु यह सब प्लास्टर अब उतर चुका
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है । पूर्वी द्वारके बीचसे जो दृश्य दीख पड़ता है वह बड़ा ही मनोहर है और मध्य गुम्बदके दोनों ओर स्थित क्रमबद्ध स्तंभावलीका जो दृश्य छोरपरसे दीख पड़ता है वह अत्यन्त कमनीय है । यह गूढ़छन्नपथ (Corridor) प्रायः पूर्ण है, किन्तु उत्तर ओर वाले ऐसे पथका तीन चौथाई भाग तथा दक्षिणी पथ एवं अपेक्षाकृत अधिक सादे स्तंभों का अत्यल्पांश ही अब अवशेष रह गया है। सर्वाधिक सुन्दर स्तंभ पूर्वी आच्छादित पथकी उत्तर दिशा में स्थित हैं; उनके ऊपर अंकित पुष्पपात्रों (फूलदान, गमले) जिनमें से फूल पत्तियाँ बाहरको लटक रही हैं, प्रथानुसारी पुष्पमालायुक्त व्याघ्रमुखों, गुच्छेदार रस्सियों, जंजीरोंसे लटकती घंटियों और अनेक कौसुमी ( फूलदार) रचनाओंका उत्कीर्णीकरण ध्यानपूर्वक परीक्षण करने योग्य हैं । दीवारखे दूसरी पंक्तिमें, मध्यस्थलसे उत्तर की ओर पांचवें स्तंभ एक सयुक्त गौ (गाय-बछड़ा) अति है, और उमी पंक्ति में आंगनके सिरेपर पांचवा स्तंभ समस्त स्तंभों में शायद सर्वाधिक सुन्दर स्तंभ है । अनेकों अधखंडित जैनमूर्तियाँ और कितनी ही अखंडित भी, जो कि मास्टर द्वारा पूर्णतया छिपाई जा सकती थीं, इन स्तंभों पर उत्की हुई देख पड़ेंगी।
नोट- प्रस्तुत लेख, ला० पन्नालालजी जैन अग्रवाल देहली द्वारा प्रेषित 'All about Delhi' ( सब कुछ देहली सम्बन्धी) नामक पुस्तक के पृ० ४१, ४४-४५, ४६४७, ५१, १८७ परसे लिये गये अंग्रेजी उद्धरणोंका अनुवाद है
— ज्योतिप्रसाद जैन, एम. ए.
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