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________________ . अनेकान्त [वर्ष उसके प्रति अपना विद्वष और उसपर पुरुषजानिका सर्वा- बौद्ध भिक्षु सुमन वात्स्यायनके अनुसार बुद्धकालीन धिकार चरितार्थ किया है। उदाहरणार्थ:- . . समाज स्त्रियोंको इतनी हेय और नीच दृष्टसे देखता था कि ईसाइयोंकी बाइबिल में नारीको सारी बुराइयोंकी जड़ सर्व प्रथम जब बुद्धकी मौसी और मातृवत् पालन पोषण (root of all evil) कहा है, ईसाई धर्मयाजकोंने उसे . करने वाली प्रजापति गौतमीके नेतृत्व में स्त्रियोंने संघमें शैतानका दरवाजा (Thou art the devil's शामिल होनेकी बुद्धसे प्रार्थना की तो उन्हें हिचकिचाहट gate!) कहकर पुकारा है। छठी शताब्दी ईश्वीमें ईसाई हुई। इसे स्त्रियोंके प्रति वुद्धकी दुर्भावना ही समझा जाता धर्मसंघने यह निश्चित किया था कि स्त्रियों में श्रात्मा नहीं होती। है। बुद्धने उन्हें पहले गृहस्थ ही में रहकर ब्रह्मचर्य और - इस्लाम धर्मकी कुरानमें स्त्रियोंका. ठीक ठीक क्या निर्मल-जीवन द्वारा अन्तिम फल पानेके लिये उत्साहित स्थान है, यह बात समझाकर बनलाना कठिन है ।हानवेक किया; बादको जब परिस्थितियोंसे विवश होकर भिक्षुणी और रिकाट (Hornbeck. Ricaut) आदि ग्रंथ- संघ बनानेका आदेश भी दिए तो उसके नियमोंमें भिक्ष कारीका तो यह कहना है कि मुसल्मानोंके मतसे भी नारीके' संघ भेद भी किये, जिन्हें देशकाल अौर परिस्थितियोंके . श्रात्मा नहीं होती और नारियों को वे लोग पशुत्रोंकी तरह कारण श्रावश्यक बताया जाता है । बुद्ध ने भी. स्त्रियोंकी समझते हैं। उत्तर कालीन वैदिक धर्ममें स्त्रियोंको शास्त्र निन्दा की ही है और पुरुषोंको उनसे सचेत रहनेका श्रादेश सुनने तकका अधिकार नहीं है (यीन श्र तिनोचरा), दिया है। वस्तुत:. श्रीमती सत्यवती मल्लिकके शब्दोंमेंx मनु श्रादि स्मृतिकारोंने स्पष्ट कथन किया है कि स्त्रियाँ "जातक अन्यों एवं अन्य बौद्ध साहित्यमें अनेक स्थलोर जनने और मानव-सन्तान उत्पन्न करने के लिये ही बनाई नारीके प्रति सर्वथा अवांछनीय मनोवृत्तिका उल्देख है।" गई है। अन्य हिन्दु पौराणिक ग्रन्थीमें भी नारीको पतिकी बौद्धप्रधान चीनदेशकी स्त्रियोंकी दुर्दशाकी कोई सीमा नहीं है दासी, अनुगामिनी, पूर्णत: श्राज्ञाकारिणी रहने और और उन्हीं जैमी अवस्था नापानकी स्त्री जातिकी थी, किन्तु मन-वचन-कायसे उसकी भक्ति करने तथा उसकी भृ युार जापान अपनी स्त्रियोंका स्थान उसी दिनसे उन्नत कर सका जीवित ही चितापर जलकर सहमरण करनेका विधान किया जिस दिनसे अपनी सामाजिक रीति-नीतिके अच्छे बुरेका गया है। मध्यकालीन प्रसिद्ध हिन्दु धर्माध्यक्ष शंकराचार्यने विचार वह धर्म और धर्म-व्यवसाइयोंके चंगुलसे बाहिर नरकका द्वार (द्वारं किमेकं नरकस्य नारी) घोषित किया निकाल सका। है। और नीतिकारोंने तो 'स्त्रियश्चरित्रं पुरुषस्य भाग्य जैन-धार्मिक साहित्यकी भी. चाहे वह श्वेताम्बर हो देवा न जानन्ति कुतोमनुष्याः' कह कर उसके चारित्र- अथवा दिगम्बर, प्रायः ऐसी ही दशा है । श्वेताम्बर श्रागमको यहाँ तक संदिग्ध, रहस्मय अथवा अगम्य बतलाया है साहित्यके प्राचीन प्रतिष्ठित 'उत्तराध्ययन' सूत्र में एक कि- उसे मनुष्योंकी तो बात ही क्या, देवता भी जान स्थान पर लिखा है कि स्त्रियाँ राक्षसनियाँ हैं, जिनकी छातीपर नहीं पाते! . .... ... दो मासपिण्ड 'उगे रहते हैं, जो हमेशा अपने विचारोंको * प्रजानर्थ स्त्रियः मष्टाः सन्तानार्थं च मानवाः (मनु -६६) बदलती र ती है, और जो मनुष्यको ललचाकर उसे गुलाम उत्पादनमपत्यस्य जातस्य परिपालनम् । बनाती है। इस सम्प्रदायके अन्य ग्रन्थों में भी एसे अनेक प्रत्यहं लोकयात्रायाः प्रत्यक्षं स्त्रिनिबन्धनम् ॥ (मनु०६-२७) उल्लेख मिलते हैं। पांचवें अङ्गसूत्र भगवतीके (शतक ३-७) + वृद्ध रोगबस जड़ धनहीना, अंध बधिर क्रोधी अति दीना। देवानन्द-यसंगमें चीनांशुक, चिलात और पारसीक देशकी ऐसे हु पतिकर किये अपमाना, नारि पार्क जमपुर दुख नाना। दासियों का, ज्ञाताधर्मकथानके मेघकुमार-प्रसंगमें १७ एक धर्म एक व्रत नेमा, काय बचन मन पति-पद प्रेमा । विभिन्न देशोंकी दासियोंका तथा उइवाइ सूत्र में भी अनेक देशोकी दासियोंका उल्लेख है। इसी भाँति दिगम्बर (रामचरितमानस) २.विशील: कामवृत्तो वा गुणैर्वा परिवर्जितः। साहित्य मी स्त्री निन्दा-परक कथनोंसे अछून नहीं रहा है। उपचर्यः स्त्रिया माध्च्या सततं देववत्पतिः ॥(मनु०५-१५४) x प्रेमीअभिनन्दनग्रंथ पृ० ६७२-(भारतीय नारीकी बौद्धिकदेन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527238
Book TitleAnekant 1946 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1946
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size3 MB
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