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अनुसार शान्तिका पाठ पढ़ाना तथा संतोषका बेसुरा राग अलापना एक अक्षम्य अपराध तथा महापाप है, कायरताकी निशानी है तथा पनकी अलामत है।
हमारे सामाजिक, पारिवारिक और व्यक्तिगत जीवनमें धर्म और ईश्वरवाद बढी व चा डालता है। इसीकी आइ अन्धविश्वासका अन्धेरा हमको आच्छादित किये हुए है । इसके नामपर करोड़ों मर मिटे है खून की नदियां वह चुकी हैं। धर्मामा दुखी और धर्मामा सुखी दिखाई देते हैं या दूसरे शब्दोंमें दुःखका तथा हमारी मौजूदा अधोगतिका कारण धर्म ही है।
अनेकान्त
विचारशील लोगोंके चित्त की उपरो तरंगें अवश्य उठा करती है, मानव जातिका उत्कों और सर्वोसध्येय क्या होना चाहिये यह प्रश्न जटिल होनेपर भी दवा रोचक, गंभीर और महत्वशाली है, उद्देश्य और ध्येयके मूलभूत तत्वोंसे इसका सम्बन्ध है, समस्त सिद्धान्तों और दर्शनोंका यही सार है सारा संसार युगके आदिले शान्ति और सुखकी खोज में रत रहा है। यही कारण है कि ज्ञान और अनुभवकी मात्रा उत्तरोतर बढ़ती गई। ज्ञानराशिकी ऐसी श्रीवृद्धिको देखते हुए उपरोक का हल आसानीसे यदि प्रश्नोंका नहीं तो काफी गवेषय व अन्वेषण के उपरान्त निकाला जा सकता है। हां, वर्तमान के नये आविष्कार और खोज शनके सदुपयोगमें बाधा डालने के लिए हमारी बुद्धिको भ्रममें डाल रहे हैं। यही कारण है कि धर्मके साथ २ सुख और शान्ति दुनियासे विदा होती जा रही है, अंधकारमय अधर्मरूपी अशान्तिका साम्राज्य होता जा रहा है । ग्रास्तिकतापर नास्तिकताकी विजय गौरवकी चीज समझी जा रही है। सद्बुद्धि और सत्प्रवृत्ति सारे संसारसे ऐसी गायब हो रही है; जैसे मानसरोवरसे मुकाफल घुगने वाले हंस स्वार्थकी । मात्रा बढ़ती जा रही है, नीति और सत्यका गला स्वार्थ साधनके लिये घोटा का रहा है। इनके पास उपति इसीका नाम है, किन्तु इसमें ही रूपनति बीजरूपसे छिपी न रह कर अपना विकराल रूप प्रकट कर रही है:
"राह वो चलते है जगती है जिसमें ठोकर काम हम करते हैं यह — जिसमें जरर देखते हैं।"
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भूमण्डलके इन आधुनिक विद्वानोंने या पूंजीरतियोंने धनद्वारा ही जगतकी सभी वस्तुओंका मूल्य निर्धारित
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करना सीखा है, अपनी आमाकी महानता को भी धमकी तराजू पर तोलना चाहा है। इन दूषित विचारोंकी हवा हमारे दिल और दिमागको विला और गन्दा बनाती जा रही है। स्व० गुरुदेव रवीन्द्रनाथजीने विश्व-कल्याणका एक सस्ता और अच्छा नुसखा दुनिया वालोंको दिया है। हिंसा ही दुनियाको प्रेम और अहिंसाका रामय संगीत सुनाया है। इनके रोचक शब्दोंमें इस मर्जका इलाज चतुराई (Politics) और साँपे नहीं किन्तु प्रेम, श्रद्धा और त्याग है। अग्नि का शमन नहीं कर सकती, उसी प्रकार पाप पापका शमन नहीं कर सकता । शक्तिकी शनिका विकास ही उन्नतिका सहायक होगा। स्वनामधन्य विश्वविख्यात स्व० गुरुदेवीका मत है कि पश्चिमी सभ्यताने आज मनुष्यकी आमाको साथीलाओंसे बद्र करके घोर अवनति के कारागार में बन्द कर दिया है। मानवताके सधे विकासके लिए उनके शब्दोंका सार यहाँ दिया जाता है
"मनुष्यजातिकी वर्तमान सन्तानमें आधी मनुष्यता और आधी पशुता एवं बरता पाई जाती है। इसका मौजूदा भयानक रूप पूर्व ऐतिहासिक युगके (PreHistoric Period) दानवोंकी अपेक्षा अधिक सन्ताप जनक और फलतः श्रापत्तिजनक है। उन दानवोंमें केवल पशु-बल था, किन्तु ध्रुव मनुष्यसन्तानमें पशुबल तथा विनाशकारी बुद्धिवलका सम्मिलन है। इसने ऐसी बीम को जन्म दिया है, जिसकी वासनामें हृदयका अभाव और अस्त्र-शस्त्रको छल-कपटपूर्ण बना दिया है, इसने कधी पासनाको शत्रिशाली और कार्यक्षम बना दिया है। 'एक समय था जब एशिया के विचारशील पुरुषोंने मनुष्य में विद्यमान पशुता और क्रूरताको रोकने के लिए एडी से चोटका जोर लगा दिया था। किन्तु खेद है कि श्राज इस रोशन जमाने में वुद्धिकी इस पाशविक सताने हमारी नैतिक और अध्यात्मिक सम्पत्तिको छीन लिया है। पशुओंकी क्षमता जड़ नहीं थी, जीवनसे उसका संयोग अवश्य था। वह प्राणियोंकी ही सत्ता थी, किन्तु आजकल के वैज्ञानिक युगके आविष्कार उदाहरणार्थ सर्वनाशकारी यमके गोले, विषैली गैसें प्राणघातक हवाई जहाज, इ. लयकालको लानेवाले रोवों बम अॅटम बम, आदि भयंकर अस्त्र सर्वथा जब है।
जड़
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