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प्रतिमा-लेख-संग्रह और उसका महत्त्व
[ लेखक-मुनि श्री कान्तिसागर जी ]
भारतवर्ष सहस्रों वर्षों के अगणित ऐतिहा- गुणोंका कीर्तन करते हैं; क्योंकि स्थायी रहनेवालो
'सिक खण्डरोंकी भूमि है । इन खण्डरोंको गुणोंकी कीर्ति स्वर्गवास देनेवाली होती है। सूक्ष्मदृष्टि से यदि यत्नके साथ खनन किया जाय तो एक अंग्रेज विद्वान् इतिहासके विषयमें इस निःसन्देह भारतीय इतिहासके असंख्य साधन प्राप्त प्रकार कहते हैं :-"History is the first हो सकते हैं। भारत का इतिहास हमारे पास परी तौर thing that should be given to childसे मौजूद है ऐसा हम नहीं कह सकते, लेकिन हमारे ren in order to form their hearts and
under-standing". पास इतिहासकी सामग्री ही नहीं है यह कहनेका भी
-Rolis. हम कदापि साहस नहीं कर सकते । क्योंकि भारतमें
यह भी एक सर्वमान्य नियम है कि अतीतके बहुतसं नगर व प्राचीन स्थान ऐसे हैं, जहाँ कुछ न प्रकाश विना वर्तमान काल कदापि प्रकाशित नहीं कुछ ऐतिहासिक साधन अवश्य मिलते हैं । उनको हो सकता । इतिहासमें वह शक्ति है कि बलहीन शृंखलाबद्ध कर निष्पक्षपाती विद्वान ही इतिहासके मनुष्यमें भी बलका संचार सहूलियतसं कर सकता लिखने में पूर्णरूपसे सफल हो सकता है । हर्षका
है। इतिहास जैसे महान शास्त्रपर विशेष लिखना विषय है कि अभी कलकत्तेमें भारतका इतिहास लिखा र
- सूर्यको दीपक दिखाना है । जारहा है, जिसके मुख्य लेखक यदुनाथ सरकार हैं। भारतीय इतिहासमें जैन इतिहासका स्थान यह सम्पूर्ण इतिहास प्रकाशित होनेपर वेदवचन-तुल्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। विना जैन इतिहासके भारमाना जायगा । अतः प्रत्येक जैनीका यह परम कर्त- तीय इतिहास अपूर्ण है। कोई भी इतिहास-लेखक व्य होना चाहिए कि वह भी उक्त महान कार्यमें चाहे वह भारतीय हो या अभारतीय, उसे जैन इतियथाशक्ति तन, मन और धनसे संहायता करे। हास पर अवश्य दृष्टि डालनी पड़ेगी, क्योंकि जैनियों ___ मानव-जीवनमें इतिहासका स्थान अत्यंत महत्त्व- का इतिहास मात्र धार्मिक दिशा तक ही सीमित नहीं पूर्ण है । इतिहासमें जो गूढ़ शक्तिएँ छिपी हुई हैं वे है, प्रत्युत सामाजिक एवं राजनैतिक आदि अनेक अकथनीय हैं । पड़िहार राजा बाउकके वि० सं० दृष्टियोंसे महत्त्व पूर्ण है। ८९४ के शिलालेखका मंगलाचरण भी इतिहासके इतिहासके अनेक साधनोंमेंसे प्रतिमा - लेख भी गौरवको इस प्रकार बतलाता है :
एक प्रधान साधन है । भारतवर्षमें प्रतिमा-लेख जितने गुणाः पूर्वपुरुषाणां, कीर्त्यन्ते तेन पण्डितैः। जैन समाजमें से प्राप्त होते हैं उतने शायद ही किसी गुणाः कीर्तिन नश्यन्ति, स्वर्गवासकरी यतः।। २॥ अन्य समाजमें उपलब्ध होते हों। पुरातन कालसे अर्थात-पण्डित लोग इसीलिये अपने पूर्वजोंके धातु-प्रतिमा बनानेकी प्रणाली भारतीय जैन समाजमें