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________________ रानी [ लेखक-'भगवत' जैन] [१] ____ लेकिन यह थी कौन, कोमलांगी, दयाको, ममताकी वह चाँद-सा सुन्दर बालक जब उसकी आँखोंके सामने देवी ?... श्राता, तो वह आन्द-विभोर हो जाती! तन-बदनकी सुध आन्दनवभार हा जाता! तन-बदनका सुष हाँ उसका नाम था-रानी! वह गौरवर्ण, सुन्दर हाँ उसका ना भूल जाती-कुछ देरके लिए-सृष्टिकी समस्त रचनाओंकी शरीर, नव-यौवना विल्लोचिन थी ! जी, हाँ ! वही विल्लोमधुरताको! चिने-जो अपनी बर्बरता, पशुता, नृशंसताके सबब-सब उसका धर्म, उसका कर्म, उसका सुख, उसकी के लिए अातंक होती हैं ! जिस शहरमें वे पहुँच जाती हैं, सम्पत्ति-सब कुछ बस, वही था, तीन सालका विकार वहाँके निवासी उनसे आँख मिलाने तककी अपनेमें शक्ति हीन बालक! वह उसकी मृदुल-मुस्कानमें स्वर्ग-सुखका अनुभव करती नहीं महसूस करते । उनसे लेन-देन या व्यवहारकी बात तो उसके करुण-क्रन्दनमें निष्ठुर-विधाताकी कुटिलताका दर्शन दूर ! शायद बहुत दूर !! करती! जब वह अपनी अनक्षरी-वाणीद्वारा अपने भावोंको दरअसल वे खौफ़नाक, लड़ाकू, दया-हीन और निन्द्यव्यक्त करनेका उपक्रम करता, तो वह हँसते-हँसते दोहरी प्रवृत्ति होती है! जिसने उनसे कुछ खरीदना चाहा, समझ पड़ जाती! जैसे सारे शरीरसे हँस रही हो! लीजिए कि उसकी शामत आगई ! ज्योड़े-दने दामोंमें उसे और बच्चा माँ को हँसते देखता, तो और भी बोलने वह चीज़ लेनी ही पड़ेगी, जिसके बारेमें जुबानसे वह कुछ का साहस करता! तब वह स्वर्गमें डूब जाती, संसारकी भी कह चुका है ! भले ही लड़ाई हो जाय, झगड़ा हो जाय, विषमता उससे दूर रहती! भीड़ जुड़ जाय ! पुरुषको दबानेकी एक तरकीब और वह उसे चूमती, प्यार करती और गोदमें दबोचलेती! इस्तेमाल करती हैं-वे ! कि-'मुझसे मखौल करता है !' बच्चेको थोड़ी तकलीफ करूर होती है, यह बात वह भूलती सच, वे ऐसी ही होती हैं ! उनमें कोमलता नामकी हीं ! लेकिन उसका मन जो अपने आपेमें नहीं रहता! कोई चीन लोग नहीं देखते ! लेकिन क्या सचमुच ऐसा ही मन तो मचलकर कहता है-काश, वह उसे मनमें ही है ? क्या यही वास्तविक है, कि उनके हृदय नहीं होता ? बन्द कर सके ! पर इतना बड़ा समाये कैसे ? लाचारी तो और होता भी है तो उसके अन्दर दया नहीं होती ? क्या यही है! यह सम्भव है ? विश्वास किया जा सकता है ? क्या मजाल जो कभी एक उँगलीसे, मारनेके नाम अगर हाँ! तो फिर दयाको सार्व-धर्म क्यों कहा जाता से छुत्रा हो? यह बात नहीं कि सभी बातें उसकी उसे है ? विश्व-धर्म कहकर क्यों पुकारा जाता है ? पसन्द श्राती, नहीं; कुछ बुरी भी लगतीं, हल्का-पूरा गुस्सा . भी श्राता कभी-कभी! पर, वह उसे मारती हरिन न! श्राप उत्तर देंगे? दुलारा, प्यारा जो था, जी से भी ज्यादह !
SR No.527177
Book TitleAnekant 1941 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1941
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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