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अनेकान्त
[वर्ष ४
करनेके बाद गुरुचरणोंमें झुका, कि मंगीने समीप बोलनेकी युक्ति उसे सूझी ही नहीं ! रक्खी तलवार उठा कर चाहा कि गर्दन पर घातक कहने लगीं-'जब 'वे' ही नहीं रहे तो हमें ही प्रहार करे । कि किसीने पीछेसे कसकर कलाई पकड़ घरमें रहना कहाँ शोभा देता है ?' ली। तलवार ऊँची की ऊँची रह गई !
-और सब, सातों, स्त्रियाँ आर्यिकाजीके निकट पलट कर देखा तो-सूरसेन !
दीक्षित होने चली ! तलवार उसने छीन कर एक ओर रखदी । और रह गया अकेला सुभानु ! चल दिया, मंगीकी ओर धिक्कारकी नजरोंसे देखता चार छह दिन बीते । तबियत न लगी! मजबूरन हुआ!
___ उसने भी विराग स्वीकार किया । निर्विकार-साधु ध्यानस्थ थे। वजमुष्टिने बार बार सिर झुकाया, प्रणाम किया और तब, मंगीका ले, समोद घर लौट गया।
बहुत दिन बाद, एक दिनxx. xx घूमते-फिरते सातों साधु और सातों अर्यिकाएँ
उज्जैन श्रापधारे! छहों-अनुज सम्पत्ति लेकर वापिस आये, तो दर्शकोंके ठठ लग गए ! वजमुष्टि भी आया, और सूरसेनको उन्होंने गंभीर, सुस्त और उदास पाया मंगी भी ! गया । पूछा, तो उसने मंगीकी देखी हुई कथाको वजमुष्टि बैठा, साधु-सभामें । और मंगी अर्यिदोहरा दिया! .
काओं के संघमें। . सभानुको छोड़ कर, सब पर गहरा प्रभाव पड़ा। देवयोग ।। सोचने लगे सब-धिक्कार है दुनियाके चरित्रको!
दानोंने एक ही समयमें, एक ही प्रश्न कियाजिस स्त्री-पुत्र के लिए हम रात दिन पाप करते हैं,
'इतनी-सी उम्र में ही आप लोगोंन क्यों वैराग्य लिया?' हिसा करत है, चारा करते है, वह कोई अपना नहीं। उत्तरम मंगीकी कथा कह कर साधवनने समासब अपने स्वार्थ और वासनाके दास हैं !'
धान किया। सुभानुने बातको दफनानेके इरादेस कहा-'छोड़ा वजमष्टि दंग रह गया! 'क्या मंगीका प्रम झगड़ेको । बाँट होने दो, काकी रकम हाथ लगी है
दम्भ था ? वह हत्या कर रही थी मेरी ? वाहरे आज तो?' .
संसार ! तभी साधु-जन इसे ठुकराकर वैराग्यकी ओर छहोंने मन्शा प्रकट की
बढ़ते हैं !... 'हमें अब कुछ नहीं चाहिए। न धन-दौलत, न और उधर-मंगी लज्जाके मारे मर मिटी ! स्वार्थी-संसार ! आत्म-आराधनके लिए तपोभूमिमें चाहती-धरती फट जाय, और वह उसमें समा सके! प्रवेश करेंगे, ताकि विश्व-बन्धनसे मुक्ति मिल सके।' अनुतापसे उसका मुँह बुझे-कोयलेकी तरह हो
छोटोंको, विरागकी ओर बढ़ते हुए भी सुभानुके गया ! सोचने लगी-'जो हुआ है, वह नारी-धर्मके मनमें आत्म-जागृति न हुई । धन जो सामने पड़ा था! विरुद्ध हुआ है । उसका प्रतीकार सिर्फ वैराग्य-लाभसे वह सब सम्पत्ति ले घर चला। .
ही हो सकता है-अब !' X X X X
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X घर आया, तो यहां भी उसे वैसा ही दृश्य और तब, उपस्थित जनताने देखा-'मंगी और देखना पड़ा । सब स्त्रियोंने अपने-अपने पतिकी वजमुष्टि दोनों वस्त्राभरणी का त्याग कर, साधुचरण कुशल पूछी। उत्तरमें सुभानुने सच ही कहा । झूठ के समक्ष तपोभूमिमें प्रवेश कर रहे हैं-प्रसन्न चित्त !