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किरण ८]
तपोभूमि
वजमुष्टिके वाष्पाकुलित कण्ठस निकला-'मंगी- भिखारिनकी तरह देखती रही सूरसेनकी ओर ! कुमारी।.."
पलक मारनेकी सुधि उसे नहीं थी । हृदय, कामक ___ उसने कटीली-आंखोंसे ताकते हुए स्नेह-आह्नित नुकीले-वाणोंसे आहत हो चुका था । स्वरमें कहा-'तुम आगए ?'
वह जैसे फिर बेहोश होने जारही थी। x x x . x
और सूरसेन सोच रहा था-'श्रोफ ! वासना[५]
आग ? 'छलमय नारी हृदय ।' मंगीकी चैतन्यताने सूरसेनको भी कम आनन्दित कि लाजकी हत्याकर, निर्लज्ज-मंगी पैरों पर नहीं किया । यही तो उसकी भी साध थी, कि मंगी गिर पड़ी, और कहने लगी-'प्यारे ! मुझे प्यार पति-प्रेमको समझ सके ।...
___ करो। मैं तुम्हारे प्रेममें पागल हुई जा रही हूं । मैं जंगलकी हरी-हरी घासपर मंगी बैठी पतिकी तुम्हारे बिना न बनूंगी, तुम्हारे रूपने मुझे बेहोश प्रतीक्षा कर रही थी । वजमुष्ठि गया था-साधुः कर दिया है।' अर्चन के लिए, सहस्र दल-कमल लेने।
सूरसेन अडिग। मंगी अकेली थी।
युवक-तेजसे संयुक्त ! सहसा सूरसेनके मनमें आया- वजमुष्टिका सोचने लगा-'जब परीक्षा ली है तो पूरी ही प्रेम तो देखा । क्या मंगी भी उसे इतना ही प्यार होनी चाहिए।' . करती है ? क्या यह वैसी ही है, जैसा कि वजमुष्टि फिर बोला-'मैं भी तुम्हारे ऊपर मोहित हूँसमझे हुए है ?'
सुन्दरि ! लेकिन मजबूर हूँ, कि मैं तुम्हें प्रेम नहीं कौतुकने उसके मनमें जिज्ञासा भर दी । वह कर सकता।' बढ़ा, अपने छिपे-स्थानसे शंका-समाधान के लिए। क्यों ???'-मंगीने पूछा।
और जा खड़ा हुआ, अलक्षित - भावसे मंगीके 'इसलिए कि तुम्हारा पति बलवान है, मैं उसे समीप।...
अपने लिए खतरा समझता हूं, डरता हूं उससे ।। मंगीने देखा, और देखते-देखते जैसे वह समा मंगी हँसी । फिर बोली-'उसकी ओरसे तुम गया उसके हृदयमें ! वह चकित, चंचल और उद्विग्न बेफिक्र रहो। वह तभी तक जिन्दा है, जब तक मैं हो उठी। उठती उम्र, गोग-लुभावक-शरीर, और उधर देखती नहीं।' सुन्दर वेष भूषा। सांचा-'हो न हो, राजकुमार है सूरसेन हट गया। कोई।
__ भक्ति और हर्षसे पूर्ण वजमुष्ठि पत्र-पुष्प और निर्निमेष देखती रही, कुछ देर । मंत्रमुग्धकी सहस्र-दल-कमल लेकर आ पहुंचा था।
सरसन अवाक् ।
मंगीने पतिके साथ-साथ गुरुपूजन किया, वंचना मके भीतर जैसे पीड़ा जाग पड़ी कह दीन- की, स्तवन पढ़ा। और जब वह पुष्पांजलि क्षेपण