SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४२ अनेकान्त [वर्ष ४ (२) वृत्ति (३) वृत्ति नंबर ३ में 'अवस्थितानि' शब्दकी व्याख्याके सम्बन्ध सयुक्तिक सम्मतिमें इस वृत्ति-प्रकरणको लेकर से द्रव्योंकी इयत्ताका प्रमाण छह है इस प्रकारका यह लिखा गया था कि 'वृत्ति' शब्दसे राजवार्तिकमें वर्णन आया है। उसीको लेकर शंकाकारकी शंका है श्वेताम्बर भाष्य नहीं लिया है किन्तु पं० जुगलकिशोर कि-' वार्तिके वा वार्तिकभाष्ये भवता उक्तानि जीन जो शिलालेखादिके आधारसे बात मानी है वह धर्मादीनि षड् द्रव्याणि परंतु वृत्तौ (सूत्ररचनायां) ठीक है। उसके लिये मैंन जा हेतु दिये थे उनमस धर्मादीनि पंचैत्र अतः कदाचित् तानि पंचत्वं न एक 'वृत्ति' के अर्थ-द्वारा उस विषयके संगत मागेको व्यभिचरन्ति' इस प्रकार गजवार्तिकके भाष्यगत बतलान रूप था, उसके खंडनका उत्तर लेखकने जो शंकाका विस्तारस स्पष्टीकरण है, जिसको कि मैंन प्रयास किया है वह अविचारित होनेसे बेपायेका जान संक्षेपस वार्तिकके शब्दोंका पृथक २ शब्दार्थकरके पड़ता है। कारण कि राजवार्तिकमें 'वृत्ति' शब्दको वार्तिकके भाष्यका अभिप्राय 'सयुक्तिक सम्मति' में लेकर षडव्यके अभावकी शंका की है, वहां 'वृत्ति' लिखा था। उसका उत्तरलेखकने मेरे पाण्डित्यका शब्दसे अकलंकने श्वेताम्बर भाष्यको ग्रहण नहीं नमूना, तोड़-मरोड़ कर दूषित अर्थ करना तथा अककिया है। इसमें एक हेतु तो यह है कि श्वेताम्बर लंकदेवके भाष्यसे अपना अलग भाष्यरचना आदि संप्रदायमें उस भाष्यकी पहले तो 'वृत्ति' शब्दसे बतलाया है और इस प्रकार बिना विचारे कितना हो प्रख्याति ही नहीं है। दूसरे, वृत्ति और भाष्य एक अनाप-सनाप लिख माग है ! यदि मेरे उस अर्थमें अर्थक वाचक हैं, इस लिये कदाचित् श्वेताम्बर भाष्यके अभिप्रायसे कोई असंगतता बतलाई होती सम्प्रदायक किसी आचार्यने उसको 'वृत्ति' भी लिख तब तो उत्तर लेखकका यह सब लिखना भी वाजिब दिया हो तो कोई आश्चर्य नहीं; तथापि राजवार्तिकके समझा जाता; परंतु जो आंख मीचकर लिखे उसका पंचमाध्यायके उस प्रकरणमें श्वेताम्बर भाष्यका कुछ क्या इलाज ? अस्तु, मैंने वार्तिकका 'वृत्तौ तु पंच भी सम्बंध नहीं हैं । राजवार्तिकमें अकलंकदेवन यदि अवचनात् षड्द्रव्योपदेशव्याघातः' ऐसा पदच्छेद कर श्वेताम्बर भाष्यके सम्बंधको लेकर द्रव्योंके पंचत्व- के जो यह हिन्दी अर्थ किया था कि-'वृत्तिमें (सूत्र विषयकी शंका उठाई होती तो उसका समाधान भाष्य रचनामें) तो पांच हैं, अवचन होनेसे (छहद्रव्यका के ही किसी वाक्यसे वे करते परंतु उन्होंने वैसा न कथन न होनेस) छह द्रव्योंके कथनका व्याघात है करके उसका समाधान दिगम्बर सूत्रसे किया है, इस अर्थात् छह द्रव्योंका कथन बन नहीं सकता' इस से स्पष्ट है कि वह शंका दिगम्बर सूत्रकी रचना पर अर्थमें वार्तिक भाष्य के अभिप्रायसे क्या फर्क प्राता है । कारण कि नित्यावस्थितान्यरूपाणि' इस सूत्र है उसे विद्वान् पाठक मिलान कर संगत और असंतक तथा आगे भी बहुत दूर तक सूत्ररचना या सूत्रा- गतका विचार करेंगे ऐसी दृढ़ आशा है। नुपूर्वी में पांच द्रव्योंका ही कथन-आया है-छहद्रव्यों यहां इसी प्रकरणमें प्रो० साहब लिखते हैं कि का कथन नहीं आया है। " 'पंचत्ववचनात्' शब्दका अर्थ खींचतान कर यदि 'नित्यावस्थितान्यरूपाणि' इस सूत्रकी वार्तिक 'पंचतु अवचनात्' किया भी जाय तो उसका केवल
SR No.527177
Book TitleAnekant 1941 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1941
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy