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________________ जै (६). अनेका एकेनाकर्षन्ती श्लथयन्ती वस्तुतवमितरेण । अन्तेन जयति जैनी नीतिर्मन्धाननेत्रमिव गोपी ॥ उभयानुभव दृष्टि नयापेक्षा वर्ष ४ किरण ८ नात्मिका निषेधाऽनुभय-दृष्टि उभयानुभय तत्त्व निषेध्यानुमय स्यात तत्व * विध्यनुभयदृष्टि विधेयानुभय तत्त्व भंगरुपा Piter Registered No. -731 स्यात् अनुभय-दृष्टि (सहार्पिता) विधि-दृष्टि elhet अनेकान्तात्मक स्पात् वस्तुतत्त्व गुणमुख्य कल्पा यात् अनुभय तत्त्व विधेय तत्त्व 181 निषेध्य तत्त्व (उभय तत्त्व "निषेध-दृष्टि उभय-दृष्टि (कमा न सम्यग्वस्तु-ग्राहिका, सापेक्षवादिनी ति विधेयं वार्य चानुभयमुभयं मिश्रमपि तद्विशेषः प्रत्येकं नियमविषयैश्वाऽपरिमितैः । सदाऽन्योऽन्यापेक्षैः सकलभुवनज्येष्ठगुरुणा त्वया गीतं तत्त्वं बहुनय-विवक्षेतस्वशात् ॥ सम्पादक- जुगल किशोर मुख्तार यथातत Kohler papilar Skukia • सितम्ब १९४१
SR No.527177
Book TitleAnekant 1941 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1941
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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