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________________ Registered No. A-731 अपूव ग्रथ छपकर तैयार है! महात्मा गांधीजी लिखित महत्त्वपूर्ण प्रस्तावना और संस्मरण सहित महान ग्रंथ * श्रीमद राजचन्द्र गुजरात के सुप्रसिद्ध तत्त्ववेत्ता शतावधानी कविवर रायचन्द्रजी के गुजराती ग्रंथ का हिंदी अनुवाद अनुवादक -प्रोफेसर पं० जगदीशचन्द्र शास्त्री, एम० ए० महात्माजी ने इसकी प्रस्तावना में लिखा है "मेरे जीवन पर मुख्यता से कवि रायचन्द्र भाई की छाप पड़ी है। टॉल्स्टाय और रस्किन की अपेक्षा भी रायचन्द्र भाई ने मुझ पर गहरा प्रभाव डाला है / रायचन्द्र जी एक अद्भुत महापुरुष हुए हैं, वे अपने समय के महान तत्त्वज्ञानी और विचारक थे। महात्माओं को जन्म देने वाली पुण्यभूमि काठियावाड़ में जन्म लेकर उन्होंने तमाम धर्मो का गहराई से अध्ययन किया था और उनके सारभूत तत्त्वों पर अपने विचार बनाये थे / उनकी स्मरणशक्ति राजब की थी, किसी भी ग्रन्थ को एक बार पढ़ के वे हृदयस्थ (याद) कर लेते थे, शतावधानी तो थे ही अर्थात् सौ बातों में एक साथ उपयोग लगा सकते थे। इसमें उनके लिख हुए जगत कल्याणकारी, जीवन में सुख और शान्ति देने वाले, जीवनोपयोगी, सर्वधर्मसमभाव, अहिंसा, सत्य आदि तत्त्वों का विशद विवेचन है। श्रीमद् की बनाई हुई मोक्ष माला, भावनाबोध, आत्मसिद्धि आदि छोटे मोटे ग्रंथों का संग्रह तो है ही, सब से महत्व की चीज है उनके 874 पत्र, जो उन्होंने समय समय पर अपने परिचित मुमुक्षु जनों को लिखे थे, उनका इसमें संग्रह है। दक्षिण अफ्रीका से किया हुआ महात्मा गाँधी जी का पत्रव्यवहार भी इसमें है। अध्यात्म और तत्त्वज्ञान का तो खजाना हो है। रायचन्द्र जी की मूल गुजराती कविताएँ हिंदी अर्थ सहित दी हैं। प्रत्येक विचारशील विद्वान और देश-भक्त को इस ग्रंथ का स्वाध्याय करके लाभ उठाना चाहिये / पत्र-सम्पादकों और नामी नामी विद्वानों ने मुक्तकण्ठ से इसकी प्रशंसा की है। ऐसे ग्रंथ शताब्दियों में विरले ही निकलते हैं। गुजराती में इस ग्रंथ के सात एडीशन होचुके हैं। हिंदी में यह पहली बार महात्मा गाँधी जी के आग्रह से प्रकाशित हुआ है बड़े आकार के एक हजार पृष्ठ हैं, छः सुन्दर चित्र है, ऊपर कपड़े की सुंदर मजबूत जिल्द बंधी हुई है। स्वदेशी काग़ज पर कलापूर्ण सुंदर छपाई हुई है। मूल्य 6) छः रुपया है, जो कि ला गतमात्र है / मूल गुजराती ग्रंथ का मूल्य 5) पांच रुपया है। जो महोदय गुजराती भाषा सीखना चाहें उनके लिये यह अच्छा साधन है। खास रियायत--जो भाई रायचन्द्र ज न शास्त्रमाला के एक साथ 10) के ग्रंथ मंगाएँगे, उन्हें उमास्वातिकृत 'सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्र' भाषाटीका सहित 3) का ग्रन्थ भेंट देंगे। मिलने का पता:परमश्रुत-प्रभाव कमंडल, (रायचन्द्र जैनशास्त्रमाला) खारा कुवा, जौहरी बाजार, बम्बई नं०२ MEEVISVASMIRMIRVasNarWasMissVASNAVasWARVaMaslaxMaVaslasNasMaxMIGNIVEMasVsNOTVIVAXVacVaVasalaxMaxMARNAMAVAVVAKNOVAGVATV2KVVVX 1 DO
SR No.527171
Book TitleAnekant 1941 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1941
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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