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अनेकान्त
जिन जिन ग्रंथोंमें ये प्रशस्तियां पाई जाती हैं वे प्रसिद्ध तर्कग्रंथकार पभाचंद्रके ही ग्रंथ होने चाहिएँ ।
२- यापनीयसंघाप्रणी शाकटायनाचार्यने शाकटायन व्याकरण और अमोघवृत्ति के सिवाय केवलिभुक्ति और स्त्रीमुक्ति प्रकरण लिखे हैं । शाकटायनने अमोघवृत्ति, महाराज अमोघवर्ष के राज्यकाल ( ई० ८१४ से ८७७ ) में रची थी । आ० प्रभाचंद्रने प्रमेयकमलमार्त्तण्ड और न्यायकुमुदचंदमें शाकटायन के इन दोनों प्रकरणों का खंडन श्रानुपूर्वी से किया है । न्यायकुमुदचंद्र में स्त्रीमुक्तिप्रकरण से एक कारिका भी उद्धृत की है । अतः प्रभाचंद्रका समय ई० ९०० से पहिले नहीं माना जा सकता ।
३–सिद्धसेनदिवाकरके न्यायावतारपर सिद्धर्षि गरिएकी एक वृत्ति उपलब्ध है । हम 'सिद्धर्षि और प्रभाचंद्र' की तुलना में बता आए हैं कि पूभाचंद्रने न्यायावतारके साथ ही साथ इस वृत्तिको भी देखा है । सिद्धर्षिने ई०९०६ में अपनी उपमितिभवपपञ्चा कथा बनाई थी । अतः न्यायावतारवृत्ति के द्रष्टा पूभाचंद्रका समय सन् ६१० के पहिले नहीं माना जा
सकता ।
४ – भासर्वज्ञका न्यायसार प्रन्थ उपलब्ध है । कहा जाता है कि इसपर भासर्वज्ञकी स्वोपज्ञ न्यायभूषण नामकी वृत्ति थी । इस वृत्तिके नामसे उत्तरकालमें इनकी भी 'भूषण' रूपमें प्रसिद्धि हो गई थी । न्यायलीलावतीकारके कथनसे २ ज्ञात होता है कि भूषण क्रियाको संयोगरूप मानते थे । पूभाचंद्रने म्यायकुमुदचंद्र ( पृ० २८२ ) में भासर्वज्ञके इस मतका
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खंडन किया है। प्रमेय कमलमार्त्तण्ड के छठवें अध्याय जिन विशेष्यासिद्ध आदि हेत्वाभासोंका निरूपण है वे सब न्यायसारसे ही लिए गए हैं। स्व० डा० शतीशचंद्र विद्याभूषण इनका समय ई० ९०० के लगभग मानते हैं । अतः पूभाकेंद्रका समय भी ई०९०० के बाद ही होना चाहिये ।
५ - श्र० देवसेनने अपने दर्शनसार ग्रंथ (रचनासमय ९९० वि०, ९३३ ई० ) के बाद भावसंग्रह ग्रंथ बनाया है । इसकी रचना संभवतः सन् ६४० के आसपास हुई होगी। इसकी एक 'नोकम्मकम्महारो' गाथा प्रमेयकमलमार्त्तण्ड तथा न्यायकुमुदचंद्र में उद्धृत है । यदि यह गाथा स्वयं देवसेनकी है तो पभाचंद्रका समय सन् ६४० के बाद होना चाहिए।
१ न्यायकुमुदचंद्र द्वितीयभागकी पूस्तावना पृ० ३६ ॥ २. देखो; न्यायकुमुदचंद्र पृ० २८२ टि०५ । २ न्यायसार पूस्तावना पृ० ५ ।
६ - ० भाचंद्रने प्रमेयकमलमा० और न्यायकुमुद० बनाने के बाद शब्दाम्भोजभास्कर नामका जैनेन्द्रन्यास रचा था । यह न्यास जैनेन्द्रमहावृत्तिके बाद इसी के आधार से बनाया गया है। मैं 'अभयनन्दि और प्रभाचंद्र' की तुलना करते हुए लिख आया हूं" कि नेमिचंद्र सिद्धान्तचक्रवर्तीके गुरु श्रभयनन्दिने ही यदि महावृत्ति बनाई है तो इसका रचनाकाल अनुमानतः ९६० ई० होना चाहिये। अतः पूभाचंद्रका समय ई० ६६० से पहिले नहीं माना जा सकता ।
७- पुष्पदन्तकृत अपभ्रंशभाषा के महापुराण पर पूभाचन्दने एक टिप्पण रचा है। इसकी प्रशस्ति रत्नकरण्डश्रावकाचारकी पूस्तावना ( पृ० ६१ ) में दी गई है। यह टिप्पण जयसिंहदेव के राज्यकाल में लिखा गया है । पुष्पदन्त अपना महापुराण सन ९६५ ई०
समाप्त किया था । टिप्पणकी पूशस्तिसे तो यही मालूम होता है कि प्रसिद्ध पभाचंद्र ही इस टिप्पण के
१ न्यायकुमुदचंद्र द्वितीयभाग की पूस्तावना पृ० ३३ ।