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________________ ७२६ अनेकान्त [आश्विन, वीर निर्वाण सं०२४६६ स्थित काकीको अपने ऊपर कहान संकट के सूचक अनेक अपशकुन दिखाई पड़े। जब गड़रियन माधरी वैगई नदीमें स्नान करने गई तब नगरसे लौट कर आने वाली एक गड़रियन कोवलनका हाल विदित हुआ, जो रानीके चरण भूषण चुराने के अपराध में राजाज्ञा के अनुसार मार डाला गया था । जब यह समाचार करणकीने सुना तब वह क्रुद्ध हुई अपने हाथमें दूसरा चरण भूषण लेकर नगर में घुसी ताकि वह राजाके समक्ष अपने पति के निर्दोषपनेको सिद्ध करे । राजमहल में पहुंच कर करणकीने द्वारपालके द्वारा यह समाचार पहुँचवाया कि मैं राजा से मिलना चाहती हूँ ताकि अपने पतिकी निर्दोषताको सिद्ध कर सकूँ, जो उचित जांचके बिना ही फाँसी पर टाँग दिया गया है। उसने राजाको बतलाया कि मेरे पति के पास से गृहीत चोरीके समझे गये मेरे चरण भूषण के भीतर जवाहरात थे, किन्तु महारानीके चरण-भूषण में भीतर की ओर मोती थे। जब काकीके चरण भूषणको तोड़ कर राजाको यह बात दिखाई गई, तब राजानं वैश्यों के एक कुलीन वंशके निर्दोष व्यक्तिका कठोरता पूर्वक प्राणहरण करने की भयंकर भूलको पहचाना। वह चिल्ला उठाकि दुष्ट सुनार मुझसे मूर्खता पूर्ण यह भयंकर भूल कराई है और वह राज्यासनमे गिरकर मूर्छित हो गया एवं तत्काल ही प्राण-हीन हो गया। अपने पतिकी निर्दोषताको सिद्ध करनेके अनन्तर अत्यन्त क्षोभ तथा क्रोध में करणकीने सम्पूर्ण मदुरा नगर को शाप दिया कि वह अग्नि से भस्म हो जाय और उसने अपना बाम स्तन काट कर अपने शापके साथ नगर की ओर फेंक दिया शापने अपना काम किया कण्णकी की सेवा के लिये नियुक्त हुई जो कि अपने पति सहित उस आयरपाडीमें प्रतिष्ठित मेहमान थी । कष्टों तथा क्षतियोंके कारण दुःखी होता हुआ कौवलन अपनी स्त्रीके पास से बिदा होकर चरण भूषखोंमेंसे एकको बेचने के लिए नगरी लौटा। जब वह प्रधान बाजार की सड़क पर पहुँचा, तब उसे एक स्वर्णकार मिला । उसने अपने आपको राजाके द्वारा संरक्षित स्वर्णकार बतलाया और उससे कहा कि मेरे पास रानीके पहनने योग्य एक चरण भूषण है | उसने उससे उसका मूल्य जाँचने को कहा। वह सुनार उसका मूल्य जाँचना चाहता था, अतः स्वामीने उस भूषणको उसे दे दिया । उस दुष्ट स्वर्णकार ने अपने मनमें कोवलनको ठगनेकी बात सोची और उससे पासके घर में ठहरने को कहा और यह बचन दिया कि मैं राजासे इस विषय में सौदा करूँगा, कारण वह चरण-भूषण इतना मूल्यवान है कि केवल महारानी ही उसका मूल्य दे सकेगी। इस प्रकार बेचारे कोवलिनको अकेला छोड़ कर वह उस चरण-भूषणको लेकर राजाके पास पहुँचा और उसने बात बदल कर यह कहा कि कोवलन एक चोर है, उसके पास रानीके पासका एक चरण-भूषण है, जो कुछ दिन पूर्व राजमहल से चोरी गया था । कोई विशेष जांच किए बिना ही राजाने आज्ञा देदी कि चोरको फांसी देदी जाय तथा तत्काल ही चरण-भूषण ले लिया जाय । दुष्ट स्वर्णकार राजाके कर्मचारियोंके साथ लौटा, जिन्होंने मूर्ख राजाकी आज्ञाका अक्षरशः पालन किया, और इस तरह विदेशमें अपना जीवन आरम्भ करनेके उद्योग में कोवलनको अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा । इस अर्से में गड़रियेकी स्त्रीके घर में
SR No.527166
Book TitleAnekant 1940 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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