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________________ वर्ष ३, किरण १२] तामिल भाषाका जैनसाहित्य ७२५ - - - - - - Sa. - सम्मिलित होने के लिये समुद्र तट पर गया। जबकि राजधानीको छोड़कर मदुराके लिये रवाना हो वे एक कौनेमें बैठे थे, कोवलनने माधवीके हाथमे गया। मार्गमें वह कावेरीके उत्तरतटकी ओर स्थित वीणा ले ली और वह प्रेमकी कुछ मधर गीनि- जैन साधओंके एक आश्रममें पहुँचा। उस आश्रम में काएँ बजाने लगा। माधवीको तनिक शंका हुई कि उनको कौंडा नामकी साध्वी मिली, जो उन दोनोंके उसके प्रति कोवलनका प्रेम कम हो रहा है। साथ चलनेको इसलिए बिल्कुल राजी थी, कि उसे किन्तु जब उसके हाथसे माधवीने वीणा लेकर पांड्यन राजधानी स्थित अपना गीत प्रारंभ किया, तो कोवलनको इम आचार्योस मिलनेका सौभाग्य प्राप्त होगा। ये तीनों बातका संदेह होने लगा कि माधवीका गुप्त रूपमे मदुराकी ओर रवाना होगये । कावरी नदीको पार किसी अन्य व्यक्तिके साथ सम्बन्ध है । इस पार- करनके उपरांत जब कौलवन और उसकी स्त्री एक स्परिक संदेहसे उनमें जुदाई हो गई, और तलाबके तटपर बैठे, तब अपनी दुष्टा प्रेयसीके साथ कोवलन एक सम्माननीय गृहस्थके रूपमें फिरसे वहां भ्रमण करने वाले एक दर्जनने कोवलन और जीवन आरंम्भ करनेके पवित्र संकल्पको लेकर उसकी पत्नीका बहुत तिरस्कार किया । इससे पूर्ण गरीबीकी अवस्थामें घर लौटा । उसको शोल- उनकी साध्वी मित्र कौंडी उत्तेजित हो उठी और वती पत्नीने, उसकी अतात उच्छं खलवृत्ति पर उसने इनको शृगाल बननेका शाप दिया । परन्तु क्षोभ व्यक्त करनेके स्थानमें उसे स्नेहके साथ कोवलन एवं कएणकीकी हार्दिक प्रार्थनाओं पर धीरज बँधाया, जो शीलवती महिलाके अनुरूप उस शापमें यह परिवर्तन किया गया कि वे अपने था, और उसके निजके व्यवसायको पुन: पूर्वरूपको एक वर्षमें प्राप्त कर लेंगे। आरंभ करके जीवन प्रारंभ करने सम्बन्धी निश्चय इस लम्बी यात्राके कष्टोंको भोगते हुए वे मदुरा को प्रोत्साहित किया। उसके पास तो दमड़ी भी के समीप पहुंचे, जो पांड्यन राजधानी थी। अपनी नहीं बची थी कारण जब वह अपनी प्रेयसी माधवी पत्नी कएणकीको कौण्डीके पास और उसकी में आसक्त था, तब वह अपना सर्वस्व स्वाहा कर जिम्मेदारी पर सौंपकर कौवलनने नगरमें प्रवेश चुका था। किन्तु उसकी पत्नीके पास दो चार किया, ताकि वह उह उचित स्थानका निश्चय करे, भूषण विद्यमान थे। वह स्त्री उनको देने को तैयार जहाँ पर व्यवसाय प्रारम्भ करेगा। जब कौबलन थी, यदि वह उनको बेचकर प्राप्त कर द्रव्यसे अपना अपने मित्र मादलनके साथ नगरमें अपना समय व्यवसाय प्रारम्भ करनेमें पूंजी लगानेकी सावधानी व्यतीत कर रहा था, तब कौण्डी कगणकीको माधरी करे । किन्तु वह अपनी राजधानीमें अब बिल्कुल नामकी साधुस्वभाव वाली वहाँकी भेड़ चराने भी नहीं ठहरना चाहता था। इससे उसने इन चरण वाली के यहाँ छोड़ना चाहती थी। जब कौवलन भूषणोंको पांड्यन राजधानी मदुरामें जाकर बेचने नगरसे वापिस आया, तब वह और उसकी स्त्री का निर्णय किया । किसीको भी परिज्ञान हुए अयरवाड़ी लाए गए और वे उस गड़रियेकी स्त्रीके बिना वह उसी रातको अपनी पत्नीके साथ चोल यहां ठहराए गए। उस गड़रिया स्त्रीकी लड़की
SR No.527166
Book TitleAnekant 1940 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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