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________________ अनेकान्त [आश्विन, वीर निर्वाण सं०२४६६ आपको उन आचरणोंमय बना देनेको 'धार्मिक उन्नति' चरण कम होने वाले प्राणीकी अपेक्षा नीच गोत्रका भी करना कहते हैं। यह धार्मिक उन्नति प्रत्येक मनुष्यकी उदय है। और प्रत्येक प्राणीकी भिन्न भिन्न प्रकारकी होती है और इस धार्मिक उन्नतिको एक दूसरे प्रकारसे भी नित्य-निगोदसे निकलते ही यह धार्मिक उन्नति प्रारम्भ बतलाया जा सकता है और वह यह कि, इस धार्मिक हो जाती है । उदाहरण के लिये तीन मनुष्योंको लीजिये, उन्नतिके भी असंख्यात स्थान हैं, परन्तु समझने के जिनमें से एक तो देवगुरु-धर्मकी श्रद्धा-पूर्वक अष्ट मूल लिये यहाँ केवल एक शत स्थानोंकी कल्पना कीजिये । गुणोंका पालन करता है; दूसरा पंच अणुव्रतों और एक प्राणीने तो सिर्फ पांच स्थान तक उन्नति की है, सप्त शीलवतोंके अनुष्ठानमें लीन रहता है, और तीसरा दूसरेने पैंतालीन स्थान तक, तीसरे ने पचपन स्थान तक, अहिंसादि व्रतोंके अनष्ठानपर्वक सप्तम प्रतिमातकके चौथेने पिच्यानवें स्थान तक उन्नति की है। जिसने पांच आचरणको लिये हुए पूर्ण ब्रह्मचर्यका पालन करता है। स्थान तक उन्नति कीहै उसके अपनेसे नीचेके स्थानोंकी इनमें से पहलेकी बाबत कहना होगा कि उसने दूसरे- अपेक्षा ऊँच गोत्रका उदय है और अपनेसे ऊपर वाले तीसरेकी अपेक्षा कम धार्मिक उन्नति की, दूसरेने पहलेसे पैत्तालीस आदि स्थानों वाले प्राणियोंकी अपेक्षा नीच अधिक और तीसरेसे कम उन्नति की,और तीसरेने पहले गोत्रका उदय है । जिसने पैतालीस स्थानोंतक उन्नति की तथा दूसरे दोनोंकी ही अपेक्षा अधिक धार्मिक उन्नति है उसके अपने पाँच आदि स्थान वाले प्राणियोंकी की। इस धार्मिक उन्नतिको दूसरे शब्दोंमें यं भी बतलाया अपेक्षा ऊँच गोत्रका उदय है और अपनेसे ऊपर के जा सकता है कि, पहले मनुष्यके अंदर दूसरे तथा पचपन आदि स्थानों वाले प्राणियोंकी अपेक्षा नीच तीसरेके मुकाबिलेमें धर्माचरण कम और असंयमाचरण गोत्रका उदय है । इसी तरहसे जिसने पचपनस्थान तक अधिक है, अतः दूसरे तथा तीसरे की अपेक्षा इसके नीच उन्नति की है वह अपनेसे नीचे के पैंसालीस आदि स्थान गोत्रका उदय है । तीसरे मनुष्य के अन्दर पहले तथा वाले प्राणियोंकी अपेक्षा ऊँचा है-बड़ाहै - और अपने दसरेके मुकाबिलेमें असंयमाचरण कम और धर्माचरण से ऊपरके पिच्यानवें श्रादि स्थान वाले ईश्वरत्वको प्राप्त अधिक है अतः पहले और दूसरेकी अपेक्षा इसके ऊँच हुये अात्माओंसे नीचा है-छोटा है और जिसने पिच्यानवें गोत्रका उदय है । और तीसरे मनुष्य के अन्दर पहलेकी स्थान तक उन्नति की है वह अपनेसे नीचे वाले पचपन अपेक्षा तो असंयमाचरण कम और धर्माचरण अधिक आदि स्थान वाले प्राणियोंकी अपेक्षा बड़ा है ऊँचा है हैं अतः पहलेकी अपेक्षा इसके ऊँच गोत्रका उदय है तथा अपनेसे ऊपर वाले स्थान वालोंकी अपेक्षा छोटा है और तीसरेकी अपेक्षा धर्माचरण कम और असंयमा- इस तरह पर प्रत्येक प्राणीके अन्दर किसी एक अपेक्षा चरण अधिक है, अतः तीसरेकी अपेक्षा इसके नीच से ऊँच गोत्रका उदय है, और किसी दूसरी अपेक्षासे गोत्रका भी उदय है । इस तरह पर प्रत्येक मनुष्य और नीच गोत्रका उदय है-अर्थात् अपनी २ अलग र प्रत्येक प्राणीके अपनेसे असंयमाचरण अधिक और अपेक्षासे प्राणी मात्रमें बड़ापना और छोटापना दोनों धर्माचरण कम होने वाले प्राणीकी अपेक्षा ऊंच गोत्रका धर्म पाये जाते हैं। इस कारण ऊँचगोत्री कहलाना भी उदय है और अपनेसे धर्माचरण अधिक और असंयमा- अपने २ धार्मिक सदाचरणोंको श्रादि लेकर नाना..
SR No.527166
Book TitleAnekant 1940 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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