SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४६ अनेकान्त [भाद्रपद, वीर निर्वाणसं०२४६६ शब्द कोई छोटी बात नहीं। 'विध्वस्तैकान्तपक्ष' गा ? ऐसी अवस्थामें नृपतुंगने एकान्त पक्षको का अर्थ 'एकान्तपक्ष' को समूल नष्ट करने वाला निर्मूल किया, इस प्राचायक वचन पर कैम है, 'एकान्तपक्ष' याने भागवत वैष्णव धर्म *। पर विश्वास कर सकते हैं ? इतिहासको एक तरफ़ यह नगतुंपके किसी भी शासनम, उसके सम्बन्ध ढकेलकर ही इसके कहे हुए वचन पर विश्वास में उसके समकालीन और कोई लिखे हुए लेखोंसे कर सकते हैं ? यदि विश्वास नहीं कर सकते और उसके सम्बन्धमें जिनसेन-गुणभद्रादि द्वारा हैं तो इस नपतुंगको 'स्याद्वाद-न्यायवादी' याने कहे हुए वचनोंसे, तथा उसके सम्बन्धमें अब तक 'जैनधर्मी' प्रतिपादन करने वाली बात पर कैसे उपलब्ध इतिहाससे, मुगल बादशाह औरंगजेबके विश्वास कर सकते हैं ? । हिन्दू धर्म और हिन्दु मन्दिरोंको विध्वंस करने अथवा इस आचार्यका अभिप्राय वैसा नहीं(तथा सुन्नी होकर शियाओंकी मसजिदोंको बर्बाद याने नपतुंगने एकान्त पक्षको या एकान्त पक्षकरने) के समान इस नृपतुंगने किया या करवाया सम्बन्धी धर्ममन्दिरोंको या एकान्तपक्ष वालों या प्रयत्न किया, इस बातको सिद्ध करने वाले को विध्वंस किया यह अर्थ नहीं; पर अपनेमें तब कोई प्रमाण हैं क्या? अपने 'कविराजमार्ग' काव्यमें तक रहे हुए एकान्त पक्षके विश्वास-श्रद्धाका भी किसी प्रकारका समयविरुद्ध कार्य नहीं करना निर्मूल करके, अर्थात एकान्त स्वधर्मका त्याग चाहिये (१,१०४ ) इस तरह मुक्त कंठसे कहने करके, धर्मान्तरका ग्रहण करके आप स्याद्वादन्यायवाला यह धर्म-विध्वंसके कार्यमें क्या हाथ डाले- वादी' जैन हुआ, यह अर्थ यदि उस आचार्य____ * 'एकान्तपक्ष' अथवा 'एकान्तधर्म का अर्थ वचनसे निकलता है तो उस पर विचार करें। 'महाभारत' के 'शान्तिपर्व' ( मोक्षधर्म ) के 'नारा- इस नृपतुंगने जिनसेनके उपदेशसे . जैन यणोपाख्यान' में तथा 'श्रीमद्भगवद्गीता' में कहा दीक्षा ली हो तो वह जिनसेनके मरणके पहिले मा अहिंसाप्रधान भागवत वैष्णव धर्म है. इसे पांच- ही होनी चाहिये-हमारे विचारसे ई०सन ८४८के रात्र' नाम भी है । (Vide Bhandarkar's . पहले होनी चाहिये, उसके पीछे नहीं। पर इसके पह "Vaishnavism, Saivism and other शासनकालके ५२ वें वर्ष (ई० सन् ८६६) के शार minor religions systems"-Strassburg), पहिले दिये हुए शासन के शिरोलेखमे यह हरिहरा इसके सम्बन्धमें 'गरुडपुराण' में (अध्याय १३१) भागवतमें वैष्णव धर्मके हरिहरों में भेद नहीं यह इस प्रकार कहा है : बात 'शांतिपर्व'. के उसी 'नारायणोपाख्यान' ( अध्या० १६८ ) में कही है। “जो शंकरकी पूजा एकान्तेनासमो विष्णुर्यस्मादेषां परायणः । नहीं करते हुए मुझे पूजेंगे तो उनकी हानि होगी, वे तस्मादेकान्तिनः प्रोक्तास्तद्भागवतचेतसः ॥ मेरे निग्रहके पात्र हैं;हम दोनों में भेद नहीं" ('श्रीकृष्णप्रियाणामपि सर्वेषां देवदेवस्य स प्रियः। राज वाणीविलास) नामकी महाभारतकी कर्णाटक आपत्स्वपि तदा यस्य भक्तिरव्यभिचारिणी॥ टीका; शान्ति पर्वमें 'मोषधर्म' पृ० २६८)
SR No.527165
Book TitleAnekant 1940 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy