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भनेकान्त
[श्रावण, वीर निर्वाण सं०२४६३
ही प्रकार बाज़ारसे कुछ कपड़ा लाकर कुछकी टोपी, है, परन्तु उस बेचारेको तो इसका कुछ भी ध्यान नहीं कुछ की लंगोटी और कुछका जता साफ करनेका है कि क्या हो रहा है। इसे ही तरह एक आदमी गाड़ी झाड़न बना लिसे प्रकार के सबभेद ज़करत या में बैठी रही है, गौड़ाके चलनेसे बेहद मर्दा उड़ता अवसरके अनुसार आकस्मिक या इत्तफाकिसा ही होते, जा रहा है, जिससे उसको भी बहुत दुख हो रहा है रहा करते हैं । पहलेसे तो उनका कोई भाग्य बना हुआ और उस रास्ते पर चलने वाले दूमरोंको भी। गाड़ीके होता ही नहीं, जिसके अनुसार यह सब घटनायें होती हों। पहियोंकी रगढ़ और बेलोके पैरों की टापोंसे रास्ते पड़े __बेजान सोमा शिया मर जैसा कि हुए अनेक छोटे छोटे . मी कुचले जा रहे हैं। अजीब पदार्थों पर होता है वैसा ही जीवों पर भी होता जिनके कुचलनेका इमदा गाड़ी वाले के मन में बिल्कुल है । जेठ-आषाढ़के कड़ाके की घूप में छोटे छोटे कीड़े भी नहीं है, तब यह सब अकस्मात् ही तो होरहा है । मर जाते हैं, तालाबका पानी सूख जाता है, जिससे .
सब कुछ भाग्यसे ही होता रहना उसकी सब मछलियाँ और अन्य भी जीव मर जाते हैं। बरसातकी पूर्वी हवा चलनेसे फलों और फलोंमें कीड़े
असंभव है पड़ जाते हैं, पानीके बरसनेसे अनेक प्रकारके कीड़े यदि यह कहा जाय कि यह सब कुछ अचानक पैदा हो जाते है और लाखों करोड़ों मर भी जाते हैं; नहीं हुआ किन्तु उन जीवोंके भाग्य से ही हुआ तो साथ परन्तु जेठ भाषाढमें कड़ी धूपका पड़ना, बरसातमें ही इसके यह भी मानना पड़ेगा कि इन जीवोंके भाग्य पूर्वी हवाका चलना और पानीका बरसना, यह सब तो ही गाडीको खीच कर यहाँ लाये । परन्तु गाड़ी वाले उन वस्तुओंके अपने स्वभावसे ही होता रहता है, किसी पर और गाड़ीके बैलों पर सड़क के इन जीवोंके भाग्य जीवके भाग्यसे नहीं होता । इस वास्ते उनसे जीवों पर की जबरदस्ती क्यों चली ? इसका कोई भी सही जवाब जो असर पड़ता है वह तो अकस्मात् ही होता है। न बन पड़नेसे अकस्मात् ही इनका कुचला जाना ____ हवा, पानी, अग्नि आदि अजीब पदार्थों में तो ज्ञान मानना पड़ता है । कसाईने गायको मारकर उसका नहीं, इच्छा नहीं, इरादा नहीं, इस कारण उनकी तो मांस बेच, अपने बाल बच्चोंका पेट पाला, तो क्या सब क्रियायें उनके स्वभावसे ही होती हैं, किन्तु जीवों गायके खोटे भाग्यने ही कसाईके हाथों गायके गले पर की जो क्रियायें इच्छा और इरादेसे होती हैं उनसे भी छुरा चलाया । डाकूने साहूकारके घर डाका डाल कर दूसरी वस्तुओं पर ऐसे असर पड़ जाते हैं, ऐसे अलटन- उसको और उसके सब घर वालोंको मारकर सब माल पलटन हो जाते हैं जिनकी न उनको इच्छा ही होती है लूट लिया, तो क्या साहूकारका भाग्य ही डाकूको बैंच
और न इरादा ही। जैसे कि जंगलका एक हिरण कर लाया और यह कृत्य कराया ? तब तो न तो शिकारीसे अपनी जान बचानेके वास्ते अंधाधुंध दौड़ा कसाईने ही कुछ पाप किया और न डाकूने हो कोई जा रहा है, परन्तु जहाँ जहाँ उसका पैर पड़ता जाता अपराध किया; बल्कि उल्टा गायके भाग्यने ही कसाई है वहाँ के पौधे घास पात और मिट्टी सब चूर चूर होते को गायके मारनेके वास्ते मजबूर किया और साहूकार चले जा रहे हैं, छोटे छोटे जीव भी सब कुचले जारहे का भाग्य ही बेचारे डाकूको खींचकर लाया । यदि