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________________ हम और हमारा हमारा यह सारा संसार [ लेखक -- बा० सूरजभान वकील ] उत्थानिका कोई कोई पुरुष भाग्यको ही सब कुछ मानकर, उसके द्वारा ही सब कुछ होना स्थिर करके उसके विरुद्ध कुछ भी न हो सकनेका सिद्धान्त स्थिर कर लेते हैं और हौंसला, हिम्मत, कोशिश और पुरुषार्थ सब ही को व्यर्थ समझ बैठते हैं। जिस देश या जातिमें ऐसी लहर चल जाती है वह नष्ट हो जाते हैं और गुलाम बन जाते हैं । अतः इस लेख के द्वारा इस बातके समझाने की कोशिश की गई है कि भाग्य क्या है वह किस प्रकार बनता है, उसकी शक्ति कितनी है और उसका कार्य क्या है; संसारके जीवों और अजीव पदार्थोंके साथ प्रत्येक जीवका संयोग किस प्रकार होता है और उस संयोगका क्या असर उस जीव पर पड़ता है; वह संयोग किस प्रकार मिलाया जा सकता है, किस प्रकार रोका जा सकता है और किस प्रकार उससे लाभ उठाने "या उसकी हानियोंसे बचने की कोशिश की जा सकती है किस प्रकार आगे के लिये अपना भाग्य उत्तम बनाया जा सकता है और किस प्रकार बने हुए खोटे भाग्यको सुधारा जा सकता है । आशा है पाठक इस लेखको श्राद्योपान्त पढ़कर ही इस पर अपनी मति स्थिर करेंगे और यदि उन्हें यह कथन लाभदायक तथा सबके लिये हितकारी और जरूरी प्रतीत हो तो हर तरह से इसके प्रचारका यत्न करेंगे इसको सब तक पहुँचानेकी पूरी कोशिश करेंगे। धाकस्मिक घटनायें हमारा यह सारा संसार अनन्तानन्त प्रकार के जीवों श्रौर अनन्तानन्त प्रकारके अजीव पदार्थोंसे भरा पड़ा है । सब ही जीव और अजीव अपने २ स्वभाव और शक्ति के अनुसार क्रिया करते रहते हैं, जिसका असर उनके आस पासकी चीज़ों पर पड़कर उनमें भी तरह तरहका लंटन - पलटन होता रहता है। सूरज निकलता है और छिपता है, पृथ्वी पर उसकी धूपके पड़ने से पानीकी भाप बनकर हवा में मिल जाती हैं, कोई वस्तु सूखती है कोई सड़ती है । हवा के चलने से सूखे पत्ते, घास फूंस और धूल-मिट्टी उड़कर कहींसे कहीं जा पड़ती हैं। पानी भी बहता हुआ अपने साथ बहुत चीजोंको बहा ले जाता है और गला सड़ा देता है । श्राग भी किसी वस्तु को जलाती है, किसीको पिघलाती है, किसी को पकाती है और किसीको नर्म या कड़ी बना देती है। संसारके इन अजीव पदार्थों में न तो ज्ञान है और न कोई इच्छा या इरादा, न सुख दुख महसूस करनेकी शक्ति ही है; तब इनमें न तो कोई कर्मबंधन ही होता है और न इनका कोई भाग्य ही बनता है । इस कारण दूसरे पदार्थोंकी क्रियाश्रोंसे इनमें जो श्रलटन पलटन हो जाता है, वह आकस्मिक या इत्तफाकिया ही कहा जाता है । जैसाकि कुछ ईंट बाज़ारसे लाकर उनमें से कुछसे तो रोटी बनानेका चूल्हा बना लिया, कुछसे पूजाकी वेदी और कुछ से टट्टी फिरनेका पाखाना । इस
SR No.527164
Book TitleAnekant 1940 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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