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________________ वर्ष ३, किरण १०] नृपतुगका मतविचार २१ ने अपनी मध्यमावस्था में-अर्थात ४०-४५ वर्षके करके पश्चात आदिपुराण लिखना प्रारंभ किया पहिले ही लिखा होगा, यह बात उसकी वर्णना यह बात वास्तविक है; ऐसी अवस्था में इसे उसने वैखरी इत्यादिसे मालूम पड़ती है । इसे जिनसेन- अपनी ८४-८५ वर्षको अवस्थाके पश्चात् लिखना ने ई० सन् ८०० से पहिले ही लिखा होगा; याने प्रारंभ किया होगा,पर वह इसे पूर्ण नहीं कर सका; नृपतुंगके गद्दी पर आरूढ़ (ई० स० ८१५) होनेके इसके ४२ पर्व तथा ४३ वें पर्वके ३ श्लोक मात्र करीब १५ ( या ज्यादा ) वर्षोंके पहिले लिखा (याने कुल १०,३८० श्लोकोंको) लिखने पर वह होगा । ( पर 'हरिवंश' में इस काव्यका जिक्र न जिनधामको प्राप्त हुआ। उस उन्नतावस्थामें भी बानेसे यह ई० सन् ७७८-७८३ के पहिले नहीं १०,३८० श्लोकोंके लिखने में उसे १० वर्ष तो लगे बनकर पीछे लिखा गया ऐसा कहना चाहिये ।) होंगे । उस वक्त उनकी ९५ वर्षके करीब तो ऐसी अवस्थामें इस 'पार्वाभ्युदय' में कहा गया अवस्था होनी चाहिये। ऐसी अवस्थामें उनका 'अमोघवर्ष' राष्ट्रकूट गुजरात-शाखाका दूसरा देहावसान ई० सन् ८४८ के आगे या पीछे हुआ 'कक्क' नामका अमोघवर्ष होगा क्या ? क्योंकि होगा। जिनसेनने अपनी 'जयधवला' टीकाको गुर्जरनरेश ४ जिनसेनके मरणानंतर उसके शिष्य गुणसे पालित मटग्राममें लिखकर समाप्त किया है। भद्रने इस ग्रंथमें करीब १०,००० श्लोकोंको जोड़ नपतुंगकी (या उसके पिता गोविन्दकी) राजधानी कर, करीब २०,००० श्लोक प्रमाण इस 'महापुराण' मान्यखेटमें या अन्य किसी जगहमें नही लिखा को* समाप्त किया। अपनी रचना-समाप्ति-समय जानेसे जिनसेनके पोषक राष्ट्रकूट वंशज गुजरात- के सम्बन्धमें वह उसकी प्रशस्तिमें । इस प्रकार शाखावाले शायद होंगे, इस शंकाको स्थान मिलता कहता है :है। अथवा 'पाश्र्वाभ्युदय' को जिनसेनने अपनी अकालवर्षभूपाले पालयस्यखिलामिलाम् ॥३२॥ आयुकं ६० वर्ष पश्चात स्वयं लिखा होगा तो उसमें कहा गया अमोघवर्ष इस लेखका नायक नृपतुंग श्रीमति लोकादित्ये ....................॥३३॥ ही होगा। चेलपताके चेल्लध्वजानुजे चेल्ल केतनतनूने । ३ आदिपुराण ( अथवा पूर्वपुराण)-यह जैनेन्द्रधर्मवृद्धिविधायिनि.......... - ॥३॥ जिनसनका अन्तिम ग्रन्थे है । जिनसेनने अपने व वनवासदेशमखिलं भुजति निष्कंटकं सुखं सुचिरं । ज न गुरु वीरसनके स्वर्गारोहणानंतर उनसे नहीं पूरी की गई-बची हुई 'जयधवला' टीकाको स्वयं पूर्ण ___इसमें 'आदिपुराण' (अथवा 'पूर्वपुराण' ) की कुल श्लोकसंख्या १२,०००, 'उत्तरपुराण' की संख्या + 'हरिवंश' में 'जिनेन्द्रगुणसंस्तुति' रूपसे ८,००० है, ये दोनों भाग मिलकर 'महापुराण' कहइसी काव्य ग्रंथका उल्लेख जान पड़ता है। लाता है। - सम्पादक जै० सि० भा० भाग १, पृ २८
SR No.527164
Book TitleAnekant 1940 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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