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________________ २८८ अनेकान्त [श्रावण, वीर निर्वाण सं०२४६६ ये हैं (=प्रभाव ) से उदित हुई (= पैदा हुई ) वह १ उमास्वातिके 'तत्त्वार्थसूत्र' पर इस जिन 'जयधवला' + टीका, गुर्जर ( गुजराती) नरेशके सेनके गुरु वीरसेनने 'जयधवला' नामकी टीका शासनमें विद्यमान 'मटग्राम' नामके नगरमें शक लिखनी प्रारंभ की थी, जिसकी करीब २०००० सं० ७५९ (ई० स० ८३७-८३८) फाल्गुण श्लोकोंकी रचना करके उनके स्वर्गवासी होने शु० दशमीके दिन समाप्त हुई। पर जिनसेनने उसमें पुनः४०००० श्लोकोंको जोड़ अतः इस टीकाको समाप्त करते वक्त जिनकर ६००००श्लोकोंसे युक्त उस ग्रन्थको पूरा किया सेनकी अवस्था करीब ८४-८५ वर्षकी होनी x। उसे पूरा करनेके समय-संबन्धमें जिनसेननं चाहिये । उसके अन्तमें इस प्रकार कहा है: २ पार्वाभ्युदयकाव्य-यह कविकुल गुरु इति श्रीवीरसेनीया टीका सूत्रार्थदर्शिनी। कालिदासके 'मेघदूत' काव्यके ऊपर समस्यापूर्ति मटयामपुरे श्रीमद्गुनरार्यानुपातिते ॥ के रूपमें रचा गया एक छोटासा काव्य है। इसमें फाल्गुने मासि पूर्वाह्न दशम्यां शुक्लपक्षके । जिनसेनने २३ वें तीर्थकर श्रीपार्श्वनाथ स्वामीकी प्रवर्धमानपूजायां नन्दीश्वरमहोत्सवे ॥ कैवल्य-वर्णना बहुत अच्छो की है। इसमें ४ सर्ग हैं और उनमें कुल ३६४ वृत्त हैं । न्त्यिग्रन्थमें इस अमोघवर्षराजेन्द्रप्राज्यराज्यगुणोदया। प्रकार कहा है:निष्टितप्रचयं यायादकल्पान्तमनल्पिका ॥ इति विरचितमेतत्काव्यमावेष्टय मेघ । एकाचषष्टिसमधिकसप्तशताब्देषु शकनरेन्द्रस्य ।। बहुगुणमपदोष कालिदासस्य काव्यं ॥ समतीतेषु समाता जयधवला प्राभृतव्याख्या ॥1 मलिनितपरकाव्यं तिष्ठतादाशशांक । अर्थात-अमोघवर्ष नामक नरेशके प्राज्य भुवनमवतु देवस्सर्वदामोघवर्षः ॥४-७० ॥ (=विस्तृत ) राज्य (=राज्यभार) के गुण इससे यह काव्य अमोघवर्ष मामके एक ___x वीरसेन तथा जिनसेनने 'जयधवला' नामकी नरेशके समयमें रचा गया मालूम पड़ता है । इस जो टीका लिखी है वह उमास्वातिके 'तत्त्वार्थसूत्र' की काव्यको पढ़ते वक्त मालूम पड़ता है कि इसे कवि टीका नहीं है, किन्तु श्रीगुणधराचार्य-विरचित 'कसाय- यह 'जयधवला' टीका सिद्धान्तग्रंथ कहलाती पाहुड' ( कषायप्राभृत ) नामके सूत्र ग्रन्थकी टीका है। है। इसकी पूर्णप्रति अब ( दक्षिण काड जिजाके) जान पड़ता है 'सूत्रार्थदर्शिनी' पद परसे लेखक महा- 'मूडबिदरी' नामक स्थान पर 'सिद्धान्तमंदिर' में है। शयको भ्रम हुमा है और उसने 'सूत्र' शब्दका अभि- यह प्रति कुछ समयके पहिले श्रवणंघेलगुलके 'सिद्धान्तप्राय गलतीसे उमास्वातिका तत्वार्थसूत्र समझ लिया मंदिर' में थी और वहींसे 'मूडबिदरी' को ले गये, इस -सम्पादक प्रकार श्रवणबेलगल के शासनग्रन्थों के उपोद्घाप्तमें कहा 1. सि. भा० १, १. ५० ५२-५३ है। (E.C. Vol. II Introd. P. 28
SR No.527164
Book TitleAnekant 1940 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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