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________________ वर्ष ३, किरण १० ] का यह कर्तव्य हो जाता है कि वह सिर्फ लिये हुए पदके शब्दों के अर्थको जानने तक ही सीमित नहीं रहे, वरन् उसमें क्या रहस्य भरा हुआ है, इसका सबसे प्रथम मनन करनेका प्रयत्न करे । जैसे जैसे वह उस रहस्यकी तली में पहुँचता जावेगा, उसे ज्ञात होगा कि तैसे २ मैं प्रतिक्षण एक उत्तरोत्तर और अपूर्व आनन्दका अनुभव कर रहा हूँ | वास्तवमें आत्म-मनन वस्तु ही ऐसी है ! एक महात्मा कहते हैं परम ब्रह्म में जब रत होता मन मधुकर मतवाला, सफेद पत्थर अथवा लाल हृदय सत्, चित् आनन्दसे भर उठता, अन्तरतमका प्याला ! ज्ञानी चेतन ज्ञान- कुण्ड में, खाता फिर फिर गोते; मलिन भाव और अशुभ कर्मबत पन पक्षमें क्षय होते । ५७७ लोग सांसारिक श्रमजाल और मिथ्यान्धकारमें फँसकर पागल हो रहे हैं, वरना मुक्तिका एक • मात्र अमोघ और सरलसे सरल साधन प्रत्येक पुरुषका आत्मा तो उसके घटसे बाहिर सिर निकाल निकालकर अपने हाथों के इशारेसे उसको उच्च स्वरमें बुला बुला कर कह रहा है - बयाँ ऐ शेख ! दर खुमखानए मा । शराबे खुर कि दर कौसर न बाशद ! ख्वाज़ा हाफ़िज़ ( ऐ शेन ! यहाँ मेरे शराबखाने में आ और उस मदिराका पान कर जो कि स्वर्ग में भी दुर्लभ है ! ) सफ़ेद पत्थर अथवा लाल हृदय एक प्रसिद्ध कालेज में एक प्रख्यात प्रोफेसर रहते थे । उनके पास के नगर के मुख्य व्यक्तियोंका एक डेपुटेशन आया, किसी धर्मस्थानके आँगन में सङ्ग-मरमर लगानेके लिए चन्दा लेने ! प्रोफेसर साहेबने पूछाः "पहले भी काम चलता ही जा रहा है सङ्ग-मरमरकी क्या ज़रूरत है ?" डेपूटेशनने ' उत्तर दिया कि एक तो साधरण चबूतरेका फर्श सुन्दर मालूम नहीं होता, दूसरे जनताके पाँव खराब हो जाते हैं । "आप पहले जनताको तो सुन्दर बना लें" प्रोफेसर साहेबने अहसास भरे शब्दों में कहा--"जिस जनताको धूप और वर्षामें नंगे पाँव चलना फिरना पड़ता है, जिस जनताके अनेक सदस्यों को पेट भर कर रोटी नहीं मिलती, उसकी रूखी सूखी रोटी छीन कर, हृदयोंका रक्त निचोड़ कर, आप उन्हें सफेद पत्थर सा बना रहे हैं; यदि आप मुझसे पूछते जहाँ जहाँ संगमरमर लगा हुआ है, उसे बेचकर उसका अनाज लेकर मखी जनताका पेट आपको भरना चाहिए ।" ( दीपकसे
SR No.527164
Book TitleAnekant 1940 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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