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________________ अनेकान्त ....[ज्येष्ठ, प्राषाढ़, वीर-निर्वाण सं०२४६६. स्वास्थ्यमें स्थापन करना चाहता है। ऐसे ही दुःख . मार्ग निकाल लेता है, वह मार्ग पर चलकर सदाके स्वयं अनिष्ट नहीं; अनिष्ट का उत्पादक नहीं, यह लिये कृतकृत्य हो जाता है, पूर्ण हो जाता है, अक्षयतो अनिष्टकी चेतावनी है, जो प्राणोंको खेंच खेंच सुखका स्वामी हो जाता है । परन्तु जो दुखकी कर, हृदयको मसल मसल कर, मनको उथल कटुतासे डर कर चुभे हुए शूलको तनसे नहीं पुथल कर निरन्तर मूलभाषामें पुकारता रहता निकालता भीतर बैठे हुए रोगके कारणोंका बहिहै-"उठो, जागो, होशियार हो, यह जीवन इष्ट कार नहीं करता, वह निरन्तर दुःखका भोग जीवन नहीं। यह जीवन की रुग्ण दशा है, वैभाविक करता रहता है। .. . . दशा है, बन्ध दशा है।" यह तो अनिष्ट निरोधका जो दुःखसे डर कर दुःखका : साक्षात् करना उद्यम है । जो यथा तथा जीवनको अनिष्टसे नहीं चाहता, उसके अनुभवोंसे प्रयोम करना नहीं निकाल कर इष्टमें स्थापन करना चाहता है ।।..चाहता, उसकी सुझाई हुई समस्यामोंको हल इसीलिये संसारके सब ही महापुरुषोंने, करना नहीं चाहता, उसके जन्म देने वाले कारणों जिन्होंने सत्य का दर्शन किया है। जिन्होंने अपने पर-उसका अन्त करने वाले उपायों पर विचार जीवन को अमर किया है, जिन्होंने अपने आदर्श करना नहीं चाहता, जो धर्म-मार्ग पर चल कर से विश्व हितके लिये धर्ममार्गको कायम किया है, उन कारणोंका मूलोच्छेद करना नहीं चाहता, जो इस दुःखानुभूतिको अपनाया है, इसके आलोकमें केवल दुःखानुभूतिको भुलानेकी चेष्टामें लगा है रहकर अन्तःशक्तियों को लगाया है इसे श्रेयस और वह मूढ़ अपनी ठगाईसे खुद ठगा जाता है, कल्याणकारी कहा है। बार बार जन्म-मरण करता हुआ दुःखसे खेद जो दुःखसे अधीर नहीं होता, इससे मुँह नहीं खिन्न होता है ! छुपाता, जो इसे सच्चे मित्रके समान अपनाता है, यदि जीवन और जगत्के रहस्योंको समझना इसके अनुभवोंके साथ प्रयोग करता है, इसकी है, लोक और परलोकके मार्गोको जानना है तो आवाजको सुनता है, इसके पीछे पीछे चलता है, आत्माको प्रयोगक्षेत्र बनाओ, दुःख-अनुभवोंको वह जीवन-शत्रुओंको पकड़ लेता है, वह जन्ममरण प्रयोगके विषय बनाओ, इनका मथन और मनन के रोमका निदान कर लेता है, वह दुःखसे सुखका करने के लिये आत्मचिन्तवनसे काम लो।... * (4) क, उप २.१..... . जैसे कमलका मूल पंकमें छुपा है, बसन्तका (भा) तत्त्वार्थ सूत्र है....... . मूल हिममें छुपा है, ऐसे ही धर्मका मूल दुःखमें (इ) मनुस्मृति ६.४७, ४८, २७ छुपा है। . . (६) Blessed are the poor it spirit;"for their पानीपत, ता०.२६-५-१९४० मी. is the knigdom of hdáveis Blessed are they : that touin, for they-shall beiamforted. :: . . .: SARAM M ..
SR No.527163
Book TitleAnekant 1940 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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