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________________ वीरशासन- जयन्ती - उत्सव इस वर्ष वीर सेवा मंदिर में श्रावण कृष्णा प्रतिपदा ता० २० जुलाई सन् १९४० शनिवारको वीरशासन जयन्तीका उत्सव गत वर्ष से भी अधिक समारोह के साथ मनाया गया । नियमानुसार प्रभात फेरी निकली, फंडाभिवादन हुआ, मध्यान्ह के समय गाजे बाजे के साथ जलूस निकला और फिर ठीक दो बजे पं० श्री० मक्खनलालजी अधिष्ठाता ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम चौरासी- मथुराके सभापतित्वमें जल्सेका प्रारम्भ हुआ और वह ५॥ बजे तक रहा | जल्सेमें बाहर से सहारनपुर मुजफ्फरनगर, देहली, मथुरा, नकुड़ कैराना अबदुल्लापुर, जगाधरी और नानौता आदि स्थानोंसे अनेक सज्जन पधारे थे । मंगलाचरण, तिथि- महत्व और आगत पत्रों का सार सुनाने के अनन्तर सभा भाषणादिका कार्य आरम्भ हुआ, जिसमें निम्न सज्जनोंने भाग लिया ला० नाहरसिंहजी सम्पादक जैन प्रचारक सरसावा, चि० भारतचन्द्र, श्रमप्रकाश, मा० रामानन्दजी गायानाचार्य, प्रो० धर्मचन्द्रजी, ब० कौशलप्रमादजी, ला०हुलाशचन्दजी, पं० रामनाथजी वैद्य, पं० राजेन्द्रकुमारजी कुमरेश, पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार, सौ० इन्द्रकुमारी ' हिन्दीरत्न' शारदादेवी और सभाध्यक्ष पं० मक्खनलालजी । भाषणोंमें प्रो० धर्मचन्दजी, बा०कौशलप्रसाद जी, मुख्तार साहब और सभापति महोदय के भाषण बहुत ही प्रभावक एवं महत्वके हुए हैं । इन भाषणों में वीर शासन के महत्वका दिग्दर्शन कराने के साथ साथ उनके पवित्रतम शासन पर अमल करने की ओर विशेष लक्ष दिया गया है । वीर भगवान् के अहिंसा आदि खास सिद्धान्तों का इस ढँगसे विवेचन किया गया कि उससे उपस्थित जनता बड़ी हो प्रभावित हुई । और सभी के दिलों पर यह गहरा प्रभाव पड़ा कि हम वीरशासनकी वास्तविक चर्यासे बहुत दूर हैं और उसे अपने जीवनमें ठीक ठीक न उतार सकने के कारण ही इतनी अवनत दशाको पहुँच गये हैं ।.. अब कि वीरकी हिंसा और सत्य के एक अंशका... • पालन करनेसे गाँवीजी महात्मा हो गये और सारे संसारको दृष्टिमें प्रतिष्ठाको प्राप्त हुए, तब वीर के उन अहिंसा और सत्य आदि सिद्धान्तों का पूर्णतया पालन करके उन्हें अपने जीवन में उतार कर अथवा वीरके नक्शे कदम पर चल करकेसंसारका ऐसा कौनसा प्रतिष्टित पद है जिसे हम प्राप्त न कर सकें । फिर भी हम वीरशासन के रहस्य को भूले हुए हैं - उसके अनेकान्त और स्थाद्वाद सिद्धान्तसे अपरिचित हैं - इसी कारण हम बीर- शासनका स्वयं आचरण नहीं करते और न दूसरोंको ही करने देते हैं; मात्र उसे अपनी बपौती समझ कर ही प्रसन्न हो रहते हैं ! जो शासन संसार के समस्त धर्मोसे श्रेष्ठतम, अवाधित एवं सुखशान्तिका मूल है, जिससे दुनयाके सभी
SR No.527163
Book TitleAnekant 1940 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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