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________________ १५२ अनेकान्त इसीलिये अनेक विष जानने पर भी यह बतलाया नहीं जाता, अनेक प्रकार शास्त्रोंके पढ़ने और मनन करनेसे भी यह दृष्टिमें नहीं आता । इसका बोध बहुत दुर्लभ । है इस धर्मके मर्मको जाने बिना, जीवन उद्देश्यको जानना, उद्देश - सिद्धि के मार्ग को जानना, उत्थान उपायों को जानना, शरीर, गृहस्थ, समाज और राष्ट्र प्रति कर्तव्योंको जानना, उनके अनुसार जीवनको बनाना, नितान्त असम्भव है । जब लक्ष्यका ही पता नहीं, मंजिल काही पता नहीं, तो मार्गका पता कैसे लग सकता है ? इसीलिए जीवन में विविध प्रसंग श्रा पड़ने पर बहुत बार साधारण जन ही नहीं बड़े२ बुद्धिमान भी कर्म-कर्म के मामले में कर्तव्य विमूढ हो जाते हैं । उस वक्त यह निर्णय करना कि अमुक स्थिति में क्या करना चाहिये, क्या नहीं करना चाहिये बहुत मुश्किल हो जाता है । जहाँ धर्म-तत्वको जानना दुर्लभ है, धर्म-मार्गको निश्चित करना कठिन है, वहाँ धर्मतत्व पर श्रद्धा लाना, धर्म-मार्ग पर चलना और भी मुशकिल है, धर्म मार्ग बाला से भी अधिक नेड़ा है, तुर धारसे भी अधिक तीक्ष्ण है । बहुत थोड़े हैं, जो धर्मको जानते हैं बहुत ही कम हैं जो इस पर श्रद्धा लाते हैं । बहुत हो बिरले हैं जो इस पर चलते हैं । मुरडक० उप० ३.२.३ * "वोहिं अच्चत्तदुलहं होदि" द्वादशानुप्रेक्षा ॥८३॥ किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः” - गीता ४.१६. [ ज्येष्ठ, आषार, वीर निर्वाण सं०१४६६ यह मार्ग लक्ष्यमें ज़रासी भ्रान्ति होने से, जरासा प्रमाद होने से नीचेसे निकल जाता है । इसका पथिक मोहके पैदा हो जानेसे श्राचारमें विषमता अजाने से पथसे स्खलित हो जाता 1 * (अ) "सुरस्य धारा निशिता दुरत्यया, दुर्गं पथः तत कवयो वदन्ति” --कठ० उ० ३.१४. (आ) उत्तराध्ययन सूत्र ३.२०; १०,४; १६.४. धर्म-मार्गपर कौन चल सकता है ? जो निर्भ्रान्त है, आस्तिक बुद्धि वाला है, जीवनलक्ष्यको सदा दृष्टिमें रखनेवाला है, जो आध्यात्मिक जीवनको साध्य और अन्य समस्त जीवनको अर्थात् शारीरिक, गृहस्थ सामाजिक, राष्ट्रिक, नैतिक जीवनको साधन मानने वाला है, जो मोक्ष पुरुषार्थको परम पुरुसमझने वाला है। जो समदृष्टि है, सब ही 'प्राणियोंको पार्थ और अन्य समस्त पुरुषार्थोंको सहायक पुरुषार्थं अपने समान देखने वाला है' जो समबुद्धि है; सब ही अवस्था में एक समान रहने वाला है जो सुख के समय हर्ष को और दुःख के समय विषादको प्राप्त नहीं होता वह ही धर्ममार्ग पर चल सकता है। जो तत्वज्ञानी है, श्रात्म अनात्मका भेद जानने वाला है । जो भावनामयी तत्वको आत्मा और नाम, रूप, कर्मात्मक तत्वको अनात्म मानने वाला है, जो विवेकशील है, हित हितका विचार रखने वाला है, जिसके लिये न कुछ अच्छा है, न कुछ बुरा है । जो हित-साधक है वही अच्छा है, जो हित-बाधक है वही बुरा है। जो प्रत्येक कर्मके अच्छेपन और बुपिनको केवल उसके अभिप्रायसे नहीं जाँचता, बल्कि उसके फल, उसके परिणामसे जाँचने वाला है। जो विशाल (इ) "Because strait is the gate and narrow is the way which leadeth unto life, and few there are that find it." ---Bible St. Matthew, 7-14.
SR No.527163
Book TitleAnekant 1940 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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