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________________ ५३४ अनेकान्त [ ज्येष्ठ अषाढ़, वीर- निर्वाण सं० २४६६ अनुप्राणित करते थे । अधिक शोचनीयरूपसे आहत १२ व्यक्तियों में से चार मर गये; परन्तु बाकी आठ इतने पूर्णरूपसे उसके प्रभावके नीचे आ गये कि, वे सबके सब उस महासंकटमेंसे बचकर निकल आये । डाक्टर और नरसें एक समान अनुभव करती थीं और इतने उच्च स्वरसे कि, जिसे सब कोई सुन सकता था, कहती थीं, “मैं बिलकुल तन्दुरुस्त हूँ ।” – बादको जब वह आशावादी रोगी चङ्गा होकर अस्पताल से चला गया, एक सर्जन मिला। उसने मुझे बताया कि, अस्पताल के वार्ड में प्रत्येक व्यक्ति विश्वास करता कि उस आयरिशमैन ने उसे मृत्युके मुख से था, निकाला है। उदास लेटे हुए सिपाही से कहिये कि, मेरे शरीर के भीतर १३ से २० तक छेद हैं और मैं फिर भी तन्दुरुस्त होकर पुन: रण-क्षेत्रमें जाऊँगा ।" उस व्यक्तिसे कहिये, - जो समझ रहा है कि, उसे पक्षाघात हो जायगा, — कि, "यह युद्ध अभीतक आरम्भ ही नहीं हुआ" और कहिये कि - “जितनी जल्दी हो सके, वह अपने काम पर चला जाय।” एक अफसरका दायाँ पार्श्व छरें से उड़ गया था । उससे इसने कहा, "जब तक आपकी छाती में हृदयमें मौजूद है, आपको कुछ भी चिन्ता नहीं करनी चाहिये | आप जैसा नवयुवक बड़ेसे बड़ा कष्ट सहन करके भी जीता बच सकता है। जब मैं चङ्गा होकर वापस घर जाऊँगा, तो अपने छोटे बच्चोंसे कहूँगा कि अस्पताल में मैंने एक मास की 'फलो' की छुट्टी काटी है ।" विदा के दिन मैं उनको नमस्कार कहनेके लिये ठहर गया। मैंने कहा,— डाक्टर ! मुझे अपना पता बताते रहना, मैं आपको पत्र लिखूंगा। इस प्रकार आपको मालूम हो जायगा कि, मैं कब अपनी रेजीमेंट में वापस जाता हूँ। वीर मनुष्य यहाँ लेटकर नरसोंसे सेवा कराते हुए जीवन नहीं बिता सकता । डाक्टर ! नमस्कार, मेरी कुछ चिन्ता न करना ।" ये आशाजनक शब्द अनिवार्यरूपसे रोज दुहराये जाते थे और अस्पताल में प्रत्येक व्यक्तिको उस सिपाहीने मुझे सिखाया कि, हतोत्साहित सिपाही मृत्यु- मुखकी ओर खिसकने लगता है और आशा के बिना दवा-दारू कुछ भी काम नहीं देती। मैं युद्ध से जो निशानियाँ लाया हूँ, उनमें एक चिट्ठी है, जो मोरचेमेंसे एक ऐसे सिपाहीकी लिखी हुई है, जो तन्दुरुस्त होकर पुन: अपनी रेजीमेंट में गया था । वह मैं यहाँ पूरीकी पूरी उधृत करता हूँ "डाक्टर ! मैं बिलकुल तन्दुरुस्त हूँ, मेरी कुछ चिन्ता न कीजिये ।" ( गृहस्थ से )
SR No.527163
Book TitleAnekant 1940 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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