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________________ अमर मानव [ लेखक - श्री सन्तराम बी० ९० ] क फौजी डाक्टर लिखता है, – “चिकित्साशास्त्र ही रोगियोंकी प्राण-रक्षा नहीं कर सकता । कोई भी डाक्टर, जिसने युद्ध क्षेत्र में काम किया है, यह बात जानता है । अनेक ऐसे मनुष्य देखने में आये हैं, जिनको दवा-दारू और शस्त्र चिकित्सा बचाने में सर्वथा विफल रही और घायल मनुष्य केवल अपनी इच्छाशक्तिसे ही तन्दुरुस्त होकर पुन: लड़नेके लिये क्षेत्र में चले गये ।" मैं एक उदाहरण देता हूँ । सन् १९९८ में शेरोथियरी के मोर्चे के पीछे एक अस्थायी अस्पतालमें कई घायल सिपाही पड़े थे । उनमें आयोवाका एक आयरिशमैन भी था । एक गोली उसके दाहिने पार्श्वमें, हँसलीकी हड्डी के पीछेसे घुसी और उसके फेफड़े, डायाफ्राम ( Diaphragm ) पित्तकोष और यकृत मेंसे होकर निकल गयी थी । उसकी अंतड़ियों में १३ छेद हो गये थे, उनमें से छ: दुहरे रन्ध्र थे । मैंने पूछा - " क्या वह होश में था ?" " बिलकुल होशमें, और बातें करता था । जब हम उसके शरीरकी परीक्षा कर रहे थे और आपरेशन की तैयारी हो रही थी, तो उसने इतने उच्च स्वरसे कहा, जिसे कि अस्पतालमें मौजूद प्रत्येक सचेत मनुष्यने सुना, - " डाक्टर ! मैं बिल कुल तन्दुरुस्त हो जाऊँगा, मेरी कुछ चिन्ता न कीजिये ।" हमने उसे ईथर से अचेत किया, उसका पेट चीरकर खोला, उसके छेदोंको सिंया और दूसरी सभी आवश्यक बातें की। बड़े आश्चर्य की बात है कि, वह जीता बच निकला । ईथरका असर दूर होते ही वह बड़े बल के साथ बोला - "मैं बिलकुल ठीक हूँ ।" उसके निकट ही एक दर्जन दूसरे सिपाही भयङ्कररूपसे आहत पड़े थे । उनमें से एक खम्भ की तरह उठकर बैठ गया । उसने आयोवाके सिपाहीको ध्यानपूर्वक देखा और खिलखिलाकर हँस पड़ा । वह बोला, – “यदि यह इस कष्ट से जीता निकल सकता है, तो मैं भी बच सकता हूँ ।" उस दिन से लेकर एक सप्ताह पीछेतक, जब मैं बदलकर दूसरे सेचनमें चला गया, रोगी मुझे प्रणाम कहने के बजाय यही कहा करता"डाक्टर ! मैं बिलकुल तन्दुरुस्त हो जाऊँगा, नेरी कुछ चिन्ता न कीजिये ।" वह एक ऐसा मानव बन गया, जो मरेगा नहीं और उसने अपने इर्द-गिर्द के दूसरे घायलोंमें जीते रहनेका निश्चय कर दिया ! उसकी अवस्था कई बार बिगड़ी, तापमान बहुत ऊँचा हो गया, नाड़ी तेजीसे चलने लगी और बड़े ही दुःखद लक्षण प्रकट हुए; परन्तु अपने बारबार होनेवाले चित्तभ्रमों में एकबार भी उसका यह विश्वास शिथिल न हुआ कि, चङ्गा हो जाऊँगा । उसने यर्सके द्वारा सन्देश भेजने आरम्भ किये । वह नर्स से कहता, "आप जाकर उस
SR No.527163
Book TitleAnekant 1940 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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