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________________ श्रीपाल - चरित्र - साहित्यके सम्बन्धमें शेष ज्ञातव्य [ले० - श्री० अगरचन्द नाहटा, सम्पादक 'राजस्थानी ' ] এর h त्रा नेकान्त वर्ष २ की द्वितीय किरण में, “श्रीपाल "चरित्र साहित्य" शीर्षक हमारा लेख प्रकाशित हुआ है। इसमें श्रीपाल चरित्र सम्बन्धी ४६ श्वे० और १५ दि० कुल ६१ ग्रन्थों की सूची दी गई है । उसके पश्चात् उन ग्रन्थों सम्बन्धी विशेष ज्ञातव्य एवं कुछ नवीन साहित्यका पता चला है, उसीका संक्षिप्त परिचय इस लेख में दिया जा रहा है । जैन समाज में श्रीपाल चरित्रका लोकादर दिनोंदिन बढ़ रहा है । श्रभी कई मास पूर्व कलकत्ते में मैना सुन्दरी नाटक भी खेला गया था व ग्रामोफोन में 'मैनासुन्दरी' के नामसे कई रेकार्ड भी निकल चुके हैं। कन्नड भाषा के भी श्रीपाल चरित्रोंका पता चला है । * पूर्व लेखमें संख्या ४२/१६ सूचित की है पर रत्नशेखर रचित चरित्रकी ४ टीकाओंके नम्बर बढ़ाने से ६२ होते हैं, उनमें रैधू कविके चरित्रका उल्लेख दोबार हो गया है उसे देने पर संख्या ६१ होती हैं । पूर्व लेख में मुद्रण दोषवश नीचे लिखी महत्वपूर्ण अशुद्धियाँ रह गई हैं पाठक उन्हें सुधार लें। ताकि उस के द्वारा और कोई फिर भूल न कर बैठें - अशुद्ध पृ० १५५ पंक्ति १३ – २ बड़ी भंडार पृ० १६१ पंक्ति ११ – रत्नलाल पृ० १३२ पंक्ति १६ – मगदानन्द प० १६३ पंक्ति ६ – सं० १४३६ शुद्ध लोंबड़ी भंडार रत्नलाभ सागरानंद सं० २४३६ विशेष ज्ञातव्य पूर्व लेख में श्रीपालचरित्र सम्बन्धी सबसे प्राचीन ग्रंथ सं० १४२८ का बतलाया गया है पर मैनासुंदरी का नाम निर्देश बारहवीं शताब्दीके खरतर गच्छीय विद्वान् श्राचार्य जिनवल्लभसूरि (स्वर्गे सं० ११६७) के वृद्ध नवकार में भी मिलता है, अतः श्वेताम्बर समाजमें भी १२वीं शताब्दी के पूर्वका रचित कोई ग्रंथ अवश्य था यह सिद्ध है। पंडित कैलाशचन्द्रजी शास्त्रीके पास दि० भंडारोंकी जो प्राचीन सूचियाँ हैं उनमें भी पंडित नरसेन कृत प्राकृत श्रीपाल चरित्रका उल्लेख है, श्रुतः दि० विद्वानों को खोजकर प्रकट करना चाहिये कि वह कबका रचित है ? संभवतः वह प्राचीन होगा | दि० चरित्रों में से जिन ग्रन्थोंका केवल उल्लेख ही मिला था पर प्रतियों का पता पहले मुझे नहीं मिला था उनमें से जिन जिनका पता चला है वे इस प्रकार हैं: १ ब्र० नेमिदत (सं० ) भ० सकलकीत एवं दौलतरामजी की भाषावनिका की प्रतियाँ जयपुर के दि० भंडारोंमें उपलब्ध हैं । कलकत्ते बड़े दि० जैन मंदिर में सकलकीर्ति और परिमल कवि रचित चरित्रोंकी प्रतियाँ भी मैंने स्वयं देखी हैं उनके सम्बंध में जो विशेष बातें ज्ञात हुई वे ये * 'मासुंदरी' ती परे नवपय भांगण करंत | (हमारे प्र० अभयरत्नसार पृ० १५४)
SR No.527162
Book TitleAnekant 1940 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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