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उपासनाका अभिनय
[ ले० - श्री० पं० चैनसुखदास, न्यायतीर्थ ]
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भगवन् ! तेरी सेवाका व्रत बहुत कठिन है। आने वाली मिसार करतल ध्वनिमें क्या था ?
जगत् प्रलोभनों से प्रेरित होकर उपासकके रूपमें उपासना के रंग-मन पर मैं अनेक बार श्रया । आपको देखते ही मेरे अङ्गोपाङ्ग मानों ताण्डव-नृत्यमें घूमने लगते थे, जैसे मेरे शरीरका प्रत्येक अणु सेवाव्रतका अनुभव कर रहा हो । दर्शक लोग मेरे इस अभिनयको देखकर बड़े प्रसन्न होते और उपासकके महान् पद द्वारा मेरा अभिवादन करते | मैं उनकी मधुर वाणीको सुन कर बड़ा प्रसन्न होता। मैं अनुभव करता कि सच मुच मैं उपासक हो गया हूँ। " जगत् की प्रसन्नतासे तेरा कोई तादात्म्य नहीं है" इस आध्यात्मिक रहस्य का ज्ञान मुझे न था । मैं नहीं जानता था कि तेरी सेवाका व्रत बहुत कठिन है ।
इस अभिनय में अनेक युग बीत गये, पर तुम्हारे बिठाने योग्य एक मनोहर उच्च और पवित्र आसनका निर्माण मैं न कर सका। मद, मत्सर, काम और स्वार्थ के राक्षस इस देवासन के निर्माण में बाधक थे । मैं तुम्हें निमन्त्रण देता, पर स्वागतकी योग्यता न थी । तुम्हारे गीत गाता था, किन्तु तुमसे बहुत दूर रह कर । शायद तुममें तन्मय होनेका वह ढोंग था । तुम्हारे पास रह कर भी मैं तुम्हें न पा सकता था। क्योंकि मेरा विवेक अंधकारसे आवृत था । पर आश्चर्य है कि दुनिया मुझे त्यागी, तपस्वी और उपासक कहती थी !
इस बिडम्बनामें धीरे धीरे जीवन समाप्त हुआ । मैंने बिचारा कि उपासक के लिये देवदूत आवेंगे, पर राक्षसोंने आकर कहा चलो ! मैं उन्हें देखकर भयभीत हो गया ! मैंने कहा- - 'मैं उपासक हूँ, तुम मुझे गलतीसे लेने आये हो। मैं तुम्हारे साथ न चलूंगा ।' यम- किंकर भयंकर मुँह बना कर बोले- 'चुप दंभी ! जीवन भर उपासनाका अभिनय खेल कर भी देवदूतों की आशा करता है ।' मैंने कहा - 'सारा जीवन उपासना में व्यतीत किया है।' मुझे घसीटते हुये उन्होंने कहा - 'अरे मूर्ख ! भावोपासककें लिये देवदूत आते हैं, द्रव्य-पूजकके लिये नहीं ।'
मैं भक्तोंको वन्स मोर (once more) की ध्वनि को सुनकर उन्मत्त हो जाता, इस ध्वनिके उन्मादने मेरे और तेरे अन्तर को और भी अधिक बढ़ा दिया, पर मैं विमूढ इस सूक्ष्म रहस्यको न समझ सका। मैं तो मोहोन्मत्त हो अज्ञातकी ओर खिंचा जा रहा था। समझता था कि जीवन सफल हो रहा हैं; पर यह तो आत्म-वंचना थी । संसार प्रसन्न हो रहा था, किन्तु तुम्हारी उदासीनताका मुझे पता न था । जहाँ से पारितोषिककी आशा थी, वहाँ तो कृपाका लेश भी न था । बाहर से