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________________ साहित्य- परिचय और समालोचन वर्ष ३, किरण ६ ] बसाली है, वह कृत्कृत्य है, अचल है, ईश है, उसके लिये काम और कंचन क्या ! अरि और मित्र क्या ! स्तुति और निन्दा क्या ! योग और वियोग क्या ! जन्म और मरण क्या ! दुख और शोक क्या ! वह सूर्य के समान तेजस्वी है, वायुके समान स्वतंत्र है, श्राकाशके समान निर्लेप है । मृत्यु उसके लिये मृत्यु नहीं, वह मृत्युकी मृत्यु है, वह मोक्षका द्वार है, वह साहित्य परिचय (१) तन्वन्यायविभाकर – लेखक, प्राचार्य विजयलब्धि सूरि । प्रकाशक, शा० चन्दूलाल जमनादास, छाणी (बडोदा ) | पृष्ठ संख्या, १२४ । मूल्य, आठ श्राना । यह 'लब्धिसूरीश्वर जैन ग्रंथमालाका ४था ग्रंथ है । इसमें १ सम्यक् श्रद्धा, २ सम्यज्ञान और ३ सम्यक चरण ऐसे तीन विभाग करके, पहले में जीवादि नवतत्त्वोंका ( जीव, जीव, पुण्य, पाप, श्राश्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्ष के क्रमसे ) गुणस्थान मार्गणादि निरुपा सहित, दूसरे में मत्यादि पंचज्ञानों-प्रत्यक्षादिप्रमाणों-श्राभासों-सप्तभंगों-नयों तथा वादोंका, और तीसरे में चरया करणभेद से यतिधर्मका वर्णन संस्कृत गद्य में दिया है। वर्णनकी भाषा सरल और शैली सुगम तथा सुबोध है । यतिधर्मका वर्णन बहुत ही संक्षिप्त है और वह बारह भावनाओं, लोक तथा पुलाकादि निर्ग्रन्थोंके स्वरूप कथनको भी लिये हुए है । श्रावकाचार का कोई वर्णन साथमें नहीं है, जिसकी सम्यकूचरण विभाग में होनेकी ज़रूरत थी। प्रस्तावना साधारण दो पृष्ठकी है और वह भी संस्कृतमें। अच्छा होता यदि प्रस्तावना हिन्दी में विस्तार के साथ लिखी जाती और उसमें ग्रंथकी उपयोगिता एवं विशेषताको तुल महोत्सव है I यह सिद्धिमार्ग वेशधारीका मार्ग नहीं, तथागतका मार्ग है । यह मूढ़का मार्ग नहीं । सन्मतिका मार्ग है । यह निर्बलका मार्ग नहीं, वीरका मार्ग है। । 20103 * सूत्रकृतांग' १-१२,' उत्तराध्यण ६-१४, + मुण्डक उप० ३-२-४. औऔर समालोचन नादि द्वारा अच्छी तरह से व्यक्त किया जाता । पुस्तकके साथ में विषयसूची तकका न होना बहुत ही खटकता है । फिर भी पुस्तक संस्कृत जाननेवालोंके लिये पढ़ने तथा संग्रह करने के योग्य है । मूल्य कुछ अधिक है । जमनादास (२) चैत्यवन्दन चतुर्विंशतिः - लेखक, श्रीविजयलब्धिसूरि । प्रकाशक, चंदुलाल शाह, छाणी ( बड़ौदा स्टेट ) । पृष्ठ संख्या ३४ | मूल्य दो चाना । 3 यह लब्धिसूरीश्वर - जैनग्रंथमालाका ८वाँ ग्रन्थ है । इसमें मुख्यतया चौबीस तीर्थंकरोंकी चैत्यवन्दनारूप स्तुति भिन्न भिन्न छंदों में की गई है— २३ तीर्थकरोंकी स्तुति तीन तीन पद्यों में और महावीरकी पाँच पद्यों में है । तदनन्तर सीमंधर जिन, सिद्धगिरि, सिद्धचक्र, पर्व, ज्ञानपंचमी. मौनैकादशी, ऋपभानन जिन, चन्द्राननजिन, वारिषेणजिन और फिर वर्धमान जिन की भी चैत्यवन्दन रूपमें स्तुतियाँ भिन्न भिन्न छंदों तथा एक से अधिक पद्योंमें दी हैं । स्तुतियाँ सब संस्कृत में हैं और जिन छंदोंमें है उनके लक्षण भी संस्कृत में ही फुटनोटों में दिये गये हैं। पुस्तक अच्छी हैं और सुंदर छपी है 1
SR No.527161
Book TitleAnekant 1940 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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