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________________ प्राकृत पंचसंग्रहका रचना-काल [ले०-प्रो० हीरालाल जैन एम. ए.] पाचीन जैन साहित्यका बहु भाग अभी भी प्रमाणके अभी इस विषयमें कुछ भी नहीं कहा जा अंधकारमें है। हर्षकी बात है कि अब सकता है, तो भी इससे इतना तो ध्वनित है कि धीरे धीरे अनेक प्राचीन ग्रंथ प्रकाशमें आ रहे हैं। पंचसंग्रहकी रचना कुन्दकुन्दसे पहिले या कुछ अभी अनेकान्त वर्ष ३ कि० ३ के पृ० २५६ पर पं० थोड़े समय बाद ही हुई होगी”। पंचसंग्रहकी एक परमानन्दजी शास्त्रीने अब तक अज्ञात एक 'अति गाथा सर्वार्थसिद्धि वृत्तिमें भी पाई जाती है जिस प्राचीन प्राकृत पंचसंग्रह' का परिचय प्रकाशित परसे लेखकके मतसे "स्पष्ट है कि पंचसंग्रह पूज्यकिया है । इसकी जो प्रति लेखकको उपलब्ध हुई पादसे पहिलेका बना हुआ है"। वह सं० १५२७ में टवक नगरमें माघ बदी ३ पंचसंग्रहमें तीन गाथाएँ ऐसी भी हैं जो जयगुरुवारको लिखी गई थी और उसकी पत्र संख्या धवलाके मूलाधार गुणधर आचार्य कृत कषाय ६२ है । ग्रन्थमें प्रशस्ति आदि कुछ नहीं है अतः प्राभृतमें भी पाई जाती हैं किन्तु यहाँ लेखकने यह उसपरसे उसके कर्ता व समयका कोई ज्ञान नहीं अनुमान किया है कि " उक्त तीनों गाथाएँ कषाय होता। किन्तु इस ग्रंथमें बहुत सी ऐसी गाथाएँ प्राभृतकी ही हैं और उसी परसे पंचसंग्रहमें उठापाई गई हैं जो धवलामें भी उद्धत पाई जाती हैं। कर रक्खी गई हैं।" इसपरसे उक्त परिचयके लेखकने यह निर्णय हमारे सामने उपर्युक्त पं० परमानन्दजीके किया है कि "श्राचार्य वीरसेनके सामने 'पंच लेखके अतिरिक्त पंचसंग्रहको प्रति आदि कोई संग्रह' ज़रूर था। इसीसे उन्होंने उसकी उक्त गा- सामग्री ऐसी नहीं है जिस परसे हम उक्त ग्रंथके थाओंको अपने ग्रन्थोंमें उद्धृत किया है । आचार्य निर्माण-कालका कोई अनुमान लगा सकें। किन्तु वीरसेनने अपनी धवला टीका शक सं० ७३८ उपर्युक्त प्रमाणों परसे लेखकने जो उस ग्रंथको ( विक्रम सं० ८७३ ) में पूर्ण की है। अतः यह वीरसेन व पूज्यपाद देवनन्दीसे पूर्व कालीन रचना निश्चित है कि पंचसंग्रह इससे पहिलेका बना सिद्ध की है वह युक्ति संगत नहीं जान पड़ता, हुआ है।" यही नहीं, पंचसंग्रहमें एक गाथा ऐसी क्योंकि यह अनिवार्य नहीं कि वीरसेन व पूज्यभी है जो आचार्य कुन्दकुन्दके 'चरित्र प्राभृत' में पादने इसी संग्रह परसे वे गाथाएँ उद्धृत की हों। भी उपलब्ध होती है । इससे लेखकने यह निष्कर्ष जैसा · कुन्दकुन्दकी रचनाओं में उसकी एक निकाला है कि 'बहुत सम्भव है आचार्य कुन्द- गाथा पाये जानेसे लेखकने केवल यह अनुमान कुन्दने पंच संग्रहसे उद्धृत की हो और यह भी किया है कि दोनोंमेंसे कोई भी आगे पीछे को हो सम्भव है कि चरित्र प्राभूतसे पंचसंग्रह कारने सकती है, वैसा वीरसेन व पूज्यपादके सम्बन्धमें उठाकर रक्खी हो । परन्तु बिना किसी विशेष भी कहा जा सकता है । पंचसंग्रहको कुन्दकुन्दसे
SR No.527161
Book TitleAnekant 1940 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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