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________________ ४०८ अनेकान्त [ चैत्र, वीर-निर्वाण २०२४६६ सकता था, इसी तरह अनुपमेय मोक्षको, सच्चिदानन्द कुछ जान अथवा देख नहीं सकते; और यदि कुछ स्वरूपमय निर्विकारी मोक्षके सुखके असंख्यातवें भागको जानने में श्राता भी है, तो वह केवल मिथ्या स्वपनोभी योग्य उपमाके न मिलनेसे मैं तुझे कह नहीं पाधि पाती है। जिसका कुछ असर हो ऐसी स्वप्न सकता। रहित निद्रा जिसमें सूक्ष्म स्थूल सब कुछ जान और मोक्षके स्वरूपमें शंका करनेवाले तो कुतर्कवादी देख सकते हों, और निरुपाधिसे शान्ति नींद ली जा हैं । इनको क्षणिक सुखके विचारके कारण सत्सुखका सकती हो, तो भी कोई उसका वर्णन कैसे कर सकता विचार कहाँसे श्रा सकता है ? कोई अात्मिक ज्ञान हीन है, और कोई इसकी उपमा भी क्या दे ? यह तो स्थूल ऐसा भी कहते है कि संसारसे कोई विशेष सुखका दृष्टान्त है, परन्तु बालविवेकी इसके ऊपरसे कुछ विचार साधन मोक्षमें नहीं रहता इसलिये इसमें अनन्त अव्या- कर सकें इसलिये यह कहा है। बाध सुख कह दिया है, इनका यह कथन विवेकयुक्त भीलका दृष्टान्त समझाने के लिये भाषा-भेदके फेर नहीं। निद्रा प्रत्येक मानवीको प्रिय है, परन्तु उसमें वे फारसे तुम्हें कहा है। वीर-श्रद्धाञ्जलि [लेo-श्रीरघुवीरशरण अग्रवाल, एम.ए. 'घनश्याम'] लिच्छिवी वंशके रत्न ! अमर है कीति तुम्हारी। भारत-नभमें चमक रही है ज्योति तुम्हारी ॥ धर्म-कर्म-उद्धार हेतु अवतरित हुए थे। धर्म अहिंसा प्रसर-हेतु सब चरित किये थे॥ (२) जित-इन्द्रिय थे, महावीर ! सच्चे व्रतधारी । जीवोंके कल्याण-हेतु थी देह तुम्हारी ॥ राज सुखोंको छोड़, धर्मकी ध्वजा उठाई। धर्ममयी भारत सुभूमि निज हाथ बनाई । (५) वह ही सच्चा वीर, इन्द्रियाँ जीत सके जो। परम इष्टसे इष्ट वस्तुको त्याग सके जो ।। धन, दारा श्री पुत्र सभी का मोह तजे जो। सत्य-प्रेमसे युक्त हुआ निज-श्रात्म भजे जो ॥ यदपि जन्म को वर्ष अनेकों बीत गये हैं। फिर भी अद्भुत कार्य तुम्हारे दीख रहे हैं। धन्य त्याग है राज-सुखों का यश-वैभव का। महा पुरुष ! था तुम्हें ध्यान नित निज गौरव का। आत्म-सदृश हाँ, सभी जीव तुमने बतलाये। बलि-वधयुत सब यज्ञ पापकी खान जताये ॥ हिसाका कर नाश, दयाके भाव बढ़ाये । परउपकृतिके काम धर्मके. रूप गिनाये ॥ करो नित्य कल्याण सभी विधि भक्तजनों का । भू-तल पर हो चहूँ ओर विस्तार गुणों का ॥ श्रद्धाञ्जलि यह प्रेमपूर्ण अर्पित करता हूँ। प्रभुवरसे बहुबार विनय मनसे करता हूँ ॥
SR No.527161
Book TitleAnekant 1940 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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