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________________ ४०२ अनेकान्त [चैत्र, वीर-निर्वाण सं०२४६६ 'तीर्थकर, देव, नारकी ओर भोगभूमिया अखंड प्रभाको आदि लेकर ये ही सब सात नरक भूमियां वणित मायु वाले होते है। हैं । यह सूत्र उमास्वाति-तत्त्वार्थसूत्रके तृतीय अध्यायके अकालमरणके द्वारा बद्ध आयुका बीचमें खण्डित प्रथम सूत्रके मूल आशयके साथ मिलता-जुलता है । न होना 'अखण्डायु' कहलाता है। तीर्थंकरों श्रादिका उसमें 'धनाम्बुवाताकाशप्रतिष्ठाः' और 'मधोऽधः' पदों अकालमरण नहीं होता–बाह्य निमित्तोको पाकर उनका के द्वारा इन नरकभूमियोंके सम्बन्धमें कुछ विशिष्ट आयु छिदता-भिदता अथवा परिवर्तनीय नहीं होता- ' एवं स्पष्ट कथन और भी किया है । वे कालक्रमसे अपनी पूरी ही बद्धायुका भोग करते तासु नारकाः सपंचदुःखाः ॥२॥ हैं। दूसरे मनुष्य-तिर्यंचोंके अखण्डायु होनेका नियम 'उन सातों भूमियोंमें नारकी जीव रहते हैं और नहीं वे अखण्डायु हो भी सकते हैं और नहीं भी। वे पंच प्रकारके दुःखोंसे युक्त होते हैं। यह सूत्र उमास्वातिके औपपादिकचरमोत्तमदेहाऽसंख्येय नारकी जीव स्वसंक्लेशपरिणामज, क्षेत्रस्वभावज, वर्णयुषोऽनपवायुषः' इस ५३वे सूत्रकी अपेक्षा बहुत परस्परोदीरित और असुरोदीरित आदि अनेक प्रकारके कुछ सरल स्पष्ट तथा अल्पाक्षरी है, इसमें उक्त सूत्र- दुःखोंसे निरन्तर पीडित रहते हैं। यहाँ उन सब दुःखों जैसी जटिलता नहीं है। को पांच भेदोंमें सीमित किया गया है, जिनके स्पष्ट ____ इति भीप्रभाचंद्रविरचिते तत्त्वार्थसूत्रे द्विती- नाम नहीं मालूम हो सके। उमास्वातिके प्रायः २ से ५ योध्यायः ॥२॥ तकके सूत्रोंका श्राशय इसमें संनिहित जान पड़ता है । 'इस प्रकार श्री प्रभाचंद्र-विरचित तत्वार्थसूत्रमें जम्बूद्वीपलवणोदादयोऽसंख्येयद्वीपोदधयः ॥३॥ दूसरा अध्याय समाप्त हुमा । . 'जम्बूद्वीप और लवणोदधिको मादि लेकर असं. स्यात द्वीप समुद्र हैं।' तीसरा अध्याय . यह स्त्र और उमास्वातिका "जम्बूद्वीपलवणोदा. दयः शुभनामानो द्वीपसमुद्राः' यह सूत्र नं० ७ दोनों रत्नप्रभाद्याः सप्तभूमयः ॥१॥ . एक ही श्राशयको लिये हुए हैं। एकमें द्वीप-समुद्रोंक। रत्नप्रभा आदि सात भूमियां हैं।' 'शुभनामानः' विशेषण है तो दूसरेमें 'मसंख्येय' विशेयहाँ 'पादि' शब्दसे शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पङ्कप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा, महातमःप्रभा इन छह तन्मध्ये लक्षयोजनप्रमः सचूलिको मेरुः ॥ ४ ॥ भमियोंका संग्रह किया गया है, क्योंकि अागम में रत्न- 'उन दीप-समुद्रों के मध्य में लाख योजन प्रमाण श्वेताम्बरीव सूत्रपाठमें 'औपपातिकतरमदेहो- वाला चूलिका सहित मेरु (पर्वत) है ।' - • तमपुरुषा" ऐसा पाठ है जिसके द्वारा सभी चरम शरीरी उमास्वातिने 'तन्मध्ये मेरुनाभिवृ'तो' इत्यादि तथा उत्तम पुलोंको प्रखरता बतलाया है। उसमें सूत्रके द्वारा मेरुपर्वतको नाभिकी तरह मध्यस्थित बत' भी यह द्वितीय अध्यायका मन्तिम सूत्र है पख्तु इसका लाते हुये उसका कोई परिमाण न देकर जम्बूद्वीपको नम्बर कहाँ ५२ है। .. . लक्ष योजन-प्रमाण विस्तार वाला बतलाया है, जब कि
SR No.527161
Book TitleAnekant 1940 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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