SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साहित्य- परिचय और समालोचन वर्ष ३, किरण ५ ] अनुवाद, व्याख्यान तथा कोष्ठकों आदि की रचना - द्वारा स्पष्टीकरण किया गया है। एक विषयको एक ही स्थान पर जाने के लिये अनेक गाथाओं का सार एक दम दिया गया है । और इसी प्रकार अनेक गाथा के विषयको मिला कर एक ही कोष्टक भी करना पड़ा है । गाथाओं को क्रमशः अनुवाद पूर्वक साथ साथ देने पर ऐसा करने में दिक्कत होती थी, इस कठिनाईको दूर करने के लिये सब गाथाओं को क्रम पूर्वक अधिकार- विभाग सहित एक साथ ( पृ० ४६६ से ५१२ तक) अलग दे दिया है। कोष्ठकोंके निर्माणसे विषय को समझने ग्रहण करने में पाठकों तथा विद्या •र्थियोंको आसानी हो गई है। इस संस्करण में संदृष्टि आदिको लिये हुए २४५ कोष्टक दिये गये हैं, कोष्ठकोंका निर्माण बड़े अच्छे ढंगसे किया गया है और उनमें विषय दर्पणकी तरह प्रायः साफ़ झलकता है। जहां कोष्टकी किसी विषयको विशेष स्पष्ट करने की जरूरत पड़ी है वहाँ उसका वह सष्टीकरण भी नीचे दे दिया गया है । इस तरह इस ग्रंथको परिश्रम के साथ बहुत उपयोगी बनाया गया है । जो लोग मराठी नहीं जानते वे भी इस ग्रंथ कोष्ठकों परसे बहुत कुछ लाभ उठा सकते हैं । इस ग्रंथको लिखकर तैयार करने में ७ || वर्षका समय लगा है, जिसमें पं० टोडरमल जी की भाषा टीका और श्री केशववर्णी तथा अभयचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती की संस्कृत दीकाका ब्र० शीतलप्रसादजी से अध्ययन काल भी शामिल है । अध्ययन कालके साथ साथ ही भाषान्तर (अनुवाद) का कार्य भी होता रहा है । ता० २० जुलाई सन् १६२६ से कार्य प्रारम्भ होकर २२ फरवरी सन् १९३७ को समाप्त हुआ है । इस संस्करणके तैयार करनेमें वकील श्री नेमिचंद बालचंद्र ३७७ जी गाँधी जी को जो भारी परिश्रम करना पड़ा है उसके लिये आप विशेष धन्यवाद के पात्र हैं । श्रापने इसके लिये ब्र० शीतल प्रसादजीका बहुत श्राभार माना है और यहाँ तक लिखा है कि इसमें जो कुछ भी अच्छी. बात है उस सबका श्रेय उक्त ब्रह्मचारीजीको हैं । तः ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद जी भी ऐसे सत्कार्य में सहयोग देनेके कारण खासतौर से धन्यवादके पात्र हैं । ग्रन्थ में एक छोटासा ( ५ पृष्ठका ) शब्दकोश भी लगा हुआ है, जिसस दो भाग हैं- पहले में कुछ शब्दों का अर्थ मराठी भाषा में दिया है और दूसरे में कुछ शब्दों के अर्थ के लिये उन गाथाओं के नम्बर सामने लिखे हैं। जिनमें उनका अर्थ दिया है। साथ ही '२१ पेजकी ' विस्तृत विषय सूची भी लगी हुई है जिसमें ग्रंथके ४०७ विषयों का उल्लेख है, दोनों ही उपयोगी हैं। इनके श्र तिरिक्त ६ पेजका शुद्धिपत्र और ३ पेजका “मी काय केलें" नामका अनुवादकीय वक्तव्य भी है । इस वक्तव्य में मूल ग्रंथका निर्माणकाल ईसाकी आठवीं शताब्दी बतला दिया गया है, जो किसी मूलका परिणाम जान पड़ता है, क्योंकि जिन चामुण्डरायके समय में इस ग्रंथकी रचना हुई है उनका समय ईसाकी दसवीं शताब्दीं है— उन्होंने शक सम्वत् ६०० ( ई० ६७८ ) में 'चामुण्णराय पुराण की रचना समाप्त की है । ग्रंथ में गाथा को जो एक साथ मिलाकर Runn ing matter के तौरपर - छापा गया है वह कुछ ठीक मालूम नहीं हुआ । प्रत्येक गाथाको दो पंक्तियांम छापना अच्छा रहता - थोड़े ही कागजका फर्क पड़ता । गाथाओं की एक अनुक्रमणिका भी यदि ग्रंथ में लगादी जाती तो और अच्छा होता । अस्तु । ग्रन्थकी छपाई सफाई और काग़ज़ सब ठीक है और वह सब प्रकारसे संग्रह करने के योग्य है |
SR No.527160
Book TitleAnekant 1940 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy