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________________ अनेकान्त [फाल्गुन, वीरनिर्वाण सं०२४६६ श्रीमान् दानवीर जैन समाज भूषण स्वर्गीय सेठ पृथ्वी सुरम्य जिसने गज मोतियोंस । ज्वालाप्रसादजी, कलकत्ताकी धर्मपत्नी सेठानी साहिबा ऐसा मगेन्द्र तक चोट करे न उस्पै, के आर्थिक सहयोगसे यह ग्रन्थ प्रकाशित हुअा है। तेरे पदाद्रि जिसका शुभ आसरा है । आपने इसका परा व्यय 'श्री वीर पुस्तक माला' लोहा मंडी आगराको, जिसका यह ग्रन्थ द्वितीय पुष्प है, ___ इन दोनों अनुवादोंकी मूल के साथ तुलना करने से यह स्पष्ट जाना जाता है कि गिरिधर शर्मा नीका अनुवाद प्रदान किया है। और इस तरह एक ग्रंथमालाको अपना कार्य चलानेमें मदद की है, जिसके लिये श्राप धन्यवाद मूल के बहुत अनुकूल तथा भावपूर्ण है । दूसरे पद्योंके, अनुवादकी तुलना परसे भी ऐसा ही नतीजा निकलता के पात्र हैं। आपके दो छोटे छोटे पुत्रोंका चित्र पुस्तक में है और खूबी यह है कि यह अनुवाद भी उसी छंदमें देखकर समाजके हितार्थ लाखों रुपये खर्च करनेवाले किया गया है जिसमें कि मूलस्तोत्र निबद्ध है और सेठ साहबके असमय वियोगकी स्मति ताज़ा होकर दुःख होता है और इन बच्चोंके चिराय होने आदिके श्रा जसे बहुत वर्ष पहले वीरनिर्वाण संवत् २४५१ में मेरी भावनाके साथ छपकर बम्बईसे प्रकाशित भी हो लिये अनायास ही हृदयसे आशीर्वाद निकल पड़ता है। चुका है । ऐसी हालतमें प्रस्तुत पुस्तककी 'दो शब्द' पुस्तक छपाई, सफाई तथा गेट-अपकी दृष्टिसे भी नामकी प्रस्तावनामें साहित्य रत्न पं. भंवरलाल भट्टने अच्छी है और सर्व साधारण के पढ़ने तथा संग्रह करनेके योग्य है। अपने पितामहकी इस कृतिका कीर्तन करते हुए और इसे प्रकाण्ड विद्वत्ता तथा कुशल काव्य ज्ञानका फल (४) श्री आदिनाथ स्तोत्र ( समश्लोकी पद्या बतलाते हुए जो यह कल्पना की है कि समश्लोकी नुवादसे युक्त)--अनुवादक, स्व. पं. लक्ष्मणजी अनवादकी कठिनाई के कारण ऐसे अनवादको असंभव अमरजी भट्ट गरोठ । प्रकाशक, सेठ हज़ारीलाल जी समझकर ही अब तक इस काव्य के समश्लोकी अनुवाद हरसुखजी जैन, सुसारी ( इन्दौर)। पृष्ठ संख्या, ३४ । न किये गये होंगे, वह निःसार जान पड़ती है । अस्तु, मूल्य, नित्य पाठ। यह पुस्तक जैन महिलादर्शके १८वें वर्ष के ग्राहकोंको यह प्रसिद्ध भक्तामर स्तोत्रका उसी छंदमें रचित श्री० सौ० नाथीबाई जी धर्मपत्नी सेठ हरसुखजी रोडमल हिन्दी पद्यानवाद है। मूलकी तरह अनुवादका भी एक जी ससारीकी अोरसे भेटस्वरूप वितरित हुई है। एक ही पद्य है--मूलका संस्कृत पद्य ऊपर और उसके । (५) गोम्मटसार कर्मकांड-(मराठी संस्करण) नीचे अनुवादका पद्य दिया है । अनुवाद साधारण है मूल लेखक, प्राचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती । और कहीं कहीं बहुत कुछ अस्पष्ट जान पड़ता है अनुवादक और प्रकाशक श्री नेमचन्द बालचन्द गांधी मूल के अाशयका पर्ण रूपसे व्यंजक एवं प्रभावक नहीं वकील, धाराशिव । बड़ा साइज पृष्ठ संख्या ५२४ मूल्य है। नमूने के तौर पर 'भिन्नेभकुम्भ' नामक ३६पद्य सजिल्द का ५) रु०। का अनुवाद इस प्रकार है-- यह ग्रन्थ हिन्दी अनुवादादिके साथ अनेक बार शार्दूल जो द्विरद मस्तकसे गिराके, प्रकाशित हो चुका है और जैन समाजका कर्म साहित्य भूभाग भूषित करे गज मौक्तिकोंको। विषयक एक प्रधान ग्रंथ है। अभी तक मराठी भाषामें सो भी प्रहार करदे यदि आश्रितों पै, इसका कोई अनवाद नहीं हुआ था। इसका यह मराठी होता समर्थ न कदापि त्रिलोकमें भी॥ संस्करण अपनी खास विशेषता रखता है। इसमें मूल उक्त पद्यका जो अनुवाद कविवर पं० गिरधर शर्मा ग्रन्थकी गाथाअोंके साथमें क्रमशः अनवाद देनेकी जी ने किया है वह निम्न प्रकार है-- पद्धतिको नहीं अपनाया गया है, बल्कि गाथा अथवा नाना करीन्द्रदलकुम्भ विदारके की, गाथाओंके नम्बर देकर उनके विषयका यथावश्यकता
SR No.527160
Book TitleAnekant 1940 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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