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________________ वर्ष ३, किरण ५] सरल योगाभ्यास के अन्दरकी प्राण-ग्रंथिका प्रदेश एक अजब प्रकारका गई है । जो ईश्वर-प्रेममें लीन रह सकते हैं वे प्रेमके लग जाता है, जिससे जिजीविषाकी वृद्धि सम्पर्ण लाभ ईश्वरप्रेमसे ही प्राप्त कर लेते हैं। प्रेमका होती है । प्रेमीके सहवास में सूखी रोटी भी मीठी लगती असर चाहे वह किसी प्रकारका क्यों न हो स्वास्थ्य और है, प्रेमके भावसे परोसा अन्न शुभ परिपाकको प्राप्त मनपर एक ही प्रकारका होता है। होकर शुभ भावोंको प्रदीप्त करने में बड़ा उपयोगी होता ईश्वरीय प्रेम निरंकुश और स्वतंत्र है, परन्तु अन्य है। इन भावोंके कारण मन अनेक सुखानुभव करताहै, प्रेम अन्य व्यक्तिपर आश्रित है। ईश्वरीय प्रेम प्रत्यत्तर जिससे शरीरका प्रत्येक अवयव संतुष्ट होता है और की अाशा नहीं रखता, परन्तु अन्य प्रकारका प्रेम प्रत्यअपना काम अच्छी तरह करता है। त्तरके बिना नष्ट हो जाता है। इस प्रकारके असंतुष्ट ___इससे पचनेन्द्रियों तथा अनेक संचालक मस्तिष्क प्रेमका असर शरीरपर संतुष्ट प्रेमसे ठीक उल्टा पड़ता के अवयवों पर गहरा लाभदायक असर होता है । इस है। अधिकाँश विधवायें बिना किसी दृष्ट कारणके प्रकार शरीरकी प्रत्येक शक्ति वृद्धिंगत होती है । रक्त, यकृत, हृदय, और फुप्फुसकी बीमारियोंसे पीड़ित रहती मांस, मेद, अस्थि, मजा शुक्र और ज्ञानतंतु पुष्ट होते हैं, इसका कारण असंतुष्ट प्रेम है--वे बेचारी पतिप्रेम हैं और शरीर देखनेमें सुंदर और मधुर हो जाता है। को ईश्वरप्रेममें लीन नहीं कर सकतीं । इसी प्रकार यकृत, पित्ताशय, और स्थलांत्र पर भी प्रेमका बड़ा पुरुष भी असंतुष्ट प्रेमके कारण अनेक बीमारियोंके लाभकारी असर पड़ता है । अनेक यकृत और स्थलांत्र शिकार होते हैं और इंग्लैंड वगैरह देशोंमें तथा भारत के रोगी विवाहसे अच्छे हो गये हैं । उत्कृष्ट और पवित्र में विवाहितों की अपेक्षा कुआरोंकी अधिक मृत्यु संख्या प्रेमका असर हृदयकी बीमारियोंको दूर करने में दिव्यौषधि होनेका कारण भी यही है । असंतुष्ट प्रेम आत्महत्याकी के रूप में होता है। मंदाग्नि और पाचन क्रिया के अनेक त्तिको उत्तेजित करता है। रोग शीघ्र ही दूर हो जाते हैं। प्रेमके विकासका राजमार्ग तो बिवाह ही है ।अन्य ऊपरके वर्णनको पढ़कर कोई यह न समझले कि मार्य साधारण लोगोंके लिए सुलभ नहीं हैं, परन्तु इस ये सब फायदे प्रेमके न होकर वीर्यपातके हैं। ऐसा स- में एक बड़ी भारी अड़चन है। अनेक बार मनुष्य इस मझना नितान्त भूल तथा भ्रम होगा; क्योंकि वीर्यपातसे से तीव्र मोहमें पड़ जाता है और विषयोंका गुलाम हो इन फायदोंमें उलटी कमी होने लग जाती है और प्रेम- जाता है । विवाह विषय-वासनाओंको जीतने का निर्विर के अच्छे असरको वीर्यपातका बुरा असर नष्ट कर देता कार बनने का--मार्ग होना चाहिए, न कि नारकी होने का है। यही कारण है कि जो दम्पति शुरूमें फायदा उठाते इस अवस्था में इन्द्रियां किस प्रकार सम्पर्ण रीलिसे जीती हुए मालूम पड़ते थे वे ही धीरे धारे रोगी और दुर्बल जा सकती हैं तथा नाडि-तन्तुओंमें प्रेमकी विद्युत् उत्पन्न हो जाते हैं। जिन दम्पतियों में असली प्रेम न होकर कर किस प्रकार प्राध्यात्मिक लाभ उठाया जा सकता विषयोंका प्रेम होता है उनकी भी यही दशा होती है । है, इस पर आगे के लेखमें विचार किया जायगा तथा परन्तु अनेकवार प्रेमका फायदा अन्य प्रकारके नक- राजयोग, लययोग और हठयोगकी कछ सानोंकी अपेक्षा अधिक भारी होने के कारण वीर्यपातका बताई जाएगी। यहाँ पर एक सूचना कर देना चाहता नकसान नहीं मालम होता। प्रेमसे अधिकतम लाभ हैं और वह यह है कि पाठक यदि विवाहित होमो उठाने के लिये ब्रह्मचर्यसे रहना ज़रूरी है। प्रेम के बंधन- देखें कि बीच बीचमें कुछ दिन के लिये अपनी स्त्रीको में बंधे हए स्त्री-पुरुष पर्ण नैष्ठिक ब्रह्मचर्य रखते हए उसके मायके भेज देनेसे. किस प्रकार उन कायदे अधिकतम मात्रामें प्राप्त करते हैं। होता है और निर्विकारता आती है। सालमें ऐसा २-३. जिन मनुष्योंकी प्रकृति उन्हें ईश्वरप्रेममें लीन नहीं होने दफे एक एक दो दो महीने के लिये करना अच्छा है। देती उनके लिये ही इस प्रकारके प्रेमकी व्यवस्था की इससे आध्यात्मिक प्रेम, भी बढ़ेगा।
SR No.527160
Book TitleAnekant 1940 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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